बा खबर असरदार/नमक का कर्ज उतारने का वादा

राजनीतिक और प्रशासनिक

हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम।

नमक का कर्ज उतारने का वादा
प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों एक राजनेता और एक आईएएस अधिकारी की घनिष्ठता काफी चर्चा में है। आलम यह है कि नेताजी जब भी राजधानी में रहते हैं उनके भोजन की थाली आईएएस अधिकारी के घर से तैयार होकर आती है। बताया जाता है कि साहब की आवभगत से नेताजी इस कदर खुश हैं कि उन्होंने उनसे नमक का कर्ज अदा करने का वादा तक कर डाला है। दरअसल, जिन नेताजी की यहां बात हो रही है, वे भले ही इन दिनों मप्र की राजनीति में बड़े पद को संभाल रहे हैं, लेकिन वे रहने वाले दक्षिण भारत के एक राज्य के हैं। वहीं भारतीय प्रशासनिक सेवा के उक्त अधिकारी भी दक्षिण भारत के ही हैं। दोनों के राज्य भले ही अलग-अलग हैं, लेकिन पहले ये दोनों राज्य एक ही थे। इस कारण नेताजी और 2009 बैच के आईएएस अधिकारी में घनिष्ठता दांत काटी रोटी की तरह हो गई है। सूत्रों का कहना है कि जबसे माननीय को प्रदेश की राजनीति में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है, तबसे दक्षिण भारतीय अफसरों की चांदी कटने लगी है। ऐसे में 2009 बैच के आईएएस अधिकारी को भी उम्मीद है कि माननीय उन्हें कोई मालदार कुर्सी जरूर दिलाएंगे।

मनमाफिक कलेक्टरी पर चंद्रग्रहण
मप्र में निकाय चुनाव की आचार संहिता हटते ही तबादलों का दौर शुरू होगा। ऐसे में हर अधिकारी इस कोशिश में लगा हुआ है कि उसे मनचाही पदस्थापना मिले। सूत्रों का कहना है कि अफसरों की मंशा को भांपते हुए सरकार ने भी खेल-खेला और नगरीय निकाय चुनाव के दौरान मनचाही पोस्टिंग चाहने वाले अफसरों को महापौर प्रत्याशी के प्रचार-प्रसार के लिए चंदा जुटाने का टारगेट थमा दिया। जितना बड़ा जिला, उतना बड़ा टारगेट अफसरों को थमा दिया। सूत्र बताते हैं कि राजधानी में एक बड़ी जिम्मेदारी संभालने वाले साहब ने अपनी मनपसंद जिले की कलेक्टरी के लिए 5 करोड़ रुपए जुटाने की बोली लगा दी। बताया जाता है कि साहब ने इसके लिए अपने पदस्थापना वाले विभाग में मातहतों को काम पर लगा दिया और जल्द से जल्द टारगेट पूरा करने को कहा। साहब के आदेश के बाद उनके मातहतों ने शहरवासियों को तरह-तरह की नोटिस भेजकर वसूली का अभियान तेज कर दिया। लेकिन साहब की सारी कोशिश पर उस समय पानी फिर गया, जब महीनों की मेहनत के बाद भी आधा टारगेट ही पूरा हो पाया। अब देखना यह है कि आधा टारगेट पूरा करने वाले साहब को उनकी मंशानुसार जिले की कलेक्टरी मिल पाती है या नहीं। गौरतलब है कि 2011 बैच के ये आईएएस अधिकारी किसी बड़े जिले का कलेक्टर बनने के लिए लंबे समय से जुगाड़ लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक वे उसमें सफल नहीं हो पाए हैं।

थ्री स्टार से कप्तान परेशान
2010 बैच के आईपीएस अधिकारी इन दिनों प्रदेश के बड़े जिले की कप्तानी कर रहे हैं। साहब निर्विवाद और दबंग शैली के अफसरों में गिने जाते हैं।  इसलिए साहब जहां भी पदस्थ होते हैं वहां उनका जलवा कायम हो जाता है। लेकिन साहब ने जबसे वर्तमान जिले की कप्तानी संभाली है, 2 थ्री स्टार ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है। दरअसल, ये दोनों महिला इंस्पेक्टर पसंदीदा थाने में पोस्टिंग के लिए हदें पार कर रही हैं। आलम यह है कि जहां एक तरफ तमाम महिला अधिकारियों ने समय-समय पर पुलिस विभाग का मान बढ़ाया, उन्हें किसी थाने की कमान सौंपने के लिए अधिकारियों को ज्यादा सोचना नहीं पड़ा, वहीं इन थ्री स्टार दो महिलाओं से अधिकारी पीछा छुड़ाते नजर आ रहे हैं। थाने की कुर्सी पाने के लिए उनके मुंह से लार टपक रही है। महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से दोनों को दूर रखा जाता है परंतु कहीं ड्यूटी लगा दी गई तो बाद में झेलना अधिकारियों को पड़ता है। इनमें से एक महिला निरीक्षक की देहात थाने में चुनाव ड्यूटी लगाई गई थी। मैडम की मनोदशा से परेशान जवानों ने हड़ताल के अंदाज में चुनाव ड्यूटी करने से हाथ खड़े कर दिए थे। कप्तान को एएसपी को मौके पर भेजना पड़ा। अधिकारी यह सोचकर परेशान हैं कि यदि दोनों की पोस्टिंग कर दी गई तो उन थानों तथा वहां के लोगों का क्या होगा।

घर की लड़ाई सड़क पर आई
एक आईपीएस अधिकारी अपनी पारिवारिक लड़ाई के कारण परेशान हैं। दरअसल, मामला साहब से संबंधित नहीं है, लेकिन परिवार से संबंधित होने के कारण साहब की चिंताएं बढ़ी हुई हैं। इसकी वजह यह है कि साहब जिस जिले में एक बड़े पद पर पदस्थ हैं, उसी जिले के एक थाने में उनकी पारिवारिक लड़ाई का केस दर्ज हुआ है। सूत्रों का कहना है कि साहब की पदस्थापना वाले जिले के पड़ोसी जिले की जिला अस्पताल की अधीक्षिका ने अपनी भांजी और भांजे पर गंभीर आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई है। भांजी-भांजे ने अधीक्षिका से पिछले दिनों जरूरत बताकर तीन लाख रुपए की मांग की थी। रकम नहीं देने पर आरोपी वाट्सएप पर उन्हें धमका रहे हैं। दरअसल, आरोपी और फरियादी पक्ष में प्रापर्टी को लेकर विवाद है। बताया जाता है कि जिन दो परिवारों में लड़ाई हो रही है, उनसे साहब के खून के रिश्ते हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अनजान लोगों को न्याय दिलाने वाले साहब के घर की लड़ाई सड़क पर कैसे आ गई। हालांकि साहब के करीबी लोगों का कहना है कि उन्होंने इस लड़ाई से अपने आप को पहले ही अलग कर लिया है।

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