बा खबर असरदार/मैडम की सख्ती

हर्षिका सिंह
  • हरीश फतेहचंदानी

मैडम की सख्ती
2012 बैच की आईएएस अधिकारी हर्षिका सिंह जब से मालवा के सबसे बड़े जिले इंदौंर की निगमायुक्त बनी हैं, कागजी घोड़े दौड़ाने वालों की शामत आ गई है। यही नहीं कई बार मैडम के कोप का भाजन नेताओं को भी बनना पड़ता है। ताजा मामला नगर निगम की बैठकों में महिला पार्षदों के बजाए पतियों की मौजूदगी का है। जानकारी के अनुसार, मैडम ने एक विधानसभा के पार्षदों की बैठक बुलाई थी, लेकिन बैठक में तीन पार्षद पति पार्षदों की बजाय खुद पहुंच गए। यह नजारा देखकर मैडम आगबबूला हो उठीं। उन्होंने पार्षद पतियों से कहा कि जब दूसरी महिला पार्षद बैैठक मेें आ सकती हैं, तो उन्हें क्या परेशानी है। पार्षद की जगह उनके पति साइन नहीं कर सकते है। या तो उन्हें बुलाइए या फिर आप बैठक से निकल जाइए। निगमायुक्त का रवैया देख पार्षद पतियों ने बैठक छोड़ना ही उचित समझा।

करे कोई… भरे कोई
करे कोई और भरे कोई वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी, लेकिन वर्तमान में यह महाकौशल के एक जिले के एसपी साहब पर सटीक बैठ रही है। दरअसल, जिले की पुलिस के रवैये का खामियाजा साहब को भुगतना पड़ रहा है। एक मामले में हाईकोर्ट ने साहब को तलब किया है। जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट ने पुलिस महकमे के उस रवैये पर कड़ी नाराजगी जाहिर की जिसमें याचिकाकर्ता का जबरन मोबाइल जब्त कर उसके फोन से सीएम हेल्पलाइन की शिकायत वापस ले ली गई। कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को 26 जून को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होकर हाई कोर्ट को यह बताने के लिए कहा है कि दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई? हालांकि इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था, लेकिन बाद में उन्हें बहाल कर दिया गया।

दबंगई के शिकार हो गए साहब
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में 2007 बैच के एक आईएएस अधिकारी छुट्टी के दिन तबादले होने के कारण चर्चा में हैं। यहां बता दें कि साहब किसी गबन के कारण नहीं, बल्कि दबंगई के शिकार हो गए। दरअसल, साहब सरकार के मुखिया के चहेते संस्थान में पदस्थ थे। यह संस्थान सुशासन की स्थापना के लिए गठित किया गया है। बताया जाता है कि यहां पदस्थापना के बाद साहब खुद सुशासन को भूल गए और यहां के 2 कमरों में ताले डाल दिए थे। बताया जाता है कि साहब का यह दुस्साहस संस्थान के वाइस चेयरमैन को नागवार गुजरा और उन्होंने साहब से सवाल दाग दिया कि तुम कौन होते हो ताला डालने वाले। लेकिन साहब अपनी पर अड़े रहे। बताया जाता है कि संघ के पावरफुल व्यक्ति से टकराना साहब को भारी पड़ा और वे उनकी दबंगई के शिकार हो गए। फिर क्या था, साहब से सारे काम छीनकर मंत्रालय में बिना काम के सचिव पदस्थ कर दिया गया है। अब साहब केवल सुबह से शाम तक कुर्सी तोड़ रहे हैं।

नहीं बन पाए एएसपी
मप्र में पद रिक्त होने पर भी प्रदेश में डीएसपी की एएसपी के पद पर पदोन्नति नहीं हो पा रही है। इसकी वजह यह कि डीपीसी वर्ष में एक बार करने का नियम है। उधर, कई अधिकारी तो पदोन्नति की प्रतीक्षा में सेवानिवृत्त हो चुके हैं। एएसपी स्तर के अभी 40 पद रिक्त हैं। अभी हाल ही में हुई डीपीसी की बैठक में 2012 बैच के 17 उप पुलिस अधीक्षकों को पदोन्नत किया गया था। वहीं अब 2013 बैच के उप पुलिस अधीक्षक भी पदोन्नति की मांग कर रहे हैं। इनमें से दो डीएसपी पदोन्नति का इंतजार करके रिटायर भी हो गए हैं। वैसे जानकारों का कहना है कि पदोन्नति का इंतजार करने वाले 5 से 10 डीएसपी प्रतिवर्ष सेवानिवृत हो रहे हैं। इनमें सीधी भर्ती के अलावा निरीक्षक से पदोन्नत हुए डीएसपी भी शामिल हैं। यह स्थिति तब है, जब एएसपी के 40 पद अभी भी खाली हैं।

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