
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदेश में हो रहे पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण को निरस्त किए जाने के बाद से अब मप्र में पूरी तरह से पंचायती रायता फैल चुका है। हालत यह है कि अब इन चुनावों को लेकर सरकार से लेकर दावेदारों तक में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इन हालातों को लेकर सरकार व संगठन स्तर तक पर विचार मंथन का लगातार दौर चल रहा है। अब तक सरकार की ओर से इन हालातों को लेकर पहले शहरी विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह भी पिछड़ा वर्ग के तमाम संगठनों के प्रतिनधियों से चर्चा कर चुके हैं तो अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी तमाम अफसरों, मंत्रियों के अलावा विधि विशेषज्ञों के साथ भी मंथन किया है, लेकिन अब तक इस मामले में कोई स्पष्ट राय नहीं बन सकी है। उधर अब साध्वी उमाभारती के कूद जाने के बाद यह मामला और तूल पकड़ गया है।
फिलहाल सरकार ने इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों से इस बात को लेकर राय मांगी है कि अगर निणर्य के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में पुर्नविचार याचिका लगाए तो किस तरह की स्थिति बन सकती है। दरअसल इस मामले में पार्टी के पिछड़ा वर्ग नेताओं के साथ ही सरकार पर आधी आबादी से अधिक वाले इस वर्ग का बेहद दबाव बना हुआ है। उधर इस मामले में सत्ता व विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर भी लगातार जारी है। बीते रोज त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण समाप्त करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से निर्मित स्थिति पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते रोज बैठक बुलाई थी। इस बैठक में गृह मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा, नगरीय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया, महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, प्रमुख सचिव विधि एवं विधायी गोपाल श्रीवास्तव सहित अन्य अधिकारियों को भी बुलाया गया था। इस दौरान मुख्यमंत्री द्वारा ओबीसी आरक्षण को लेकर कानूनी सलाह मांगी और कहा कि सभी पहलुओं पर विचार किया जाए। सूत्रों की माने तो बैठक में इस पर विचार किया गया कि पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर जो निर्णय आया है, उसको लेकर अब क्या किया जा सकता है। सरकार यदि सुप्रीम कोर्ट में पुर्नविचार याचिका दायर करती है तो क्या संभावनाएं हैं। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि सभी कानूनी पहलुओं पर अध्ययन किया जाए क्योंकि सात दिन के भीतर राज्य निर्वाचन आयोग को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित पदों को पुन: अधिसूचित करके देना है। इधर, पंचायत चुनाव में आरक्षण को लेकर विधानसभा में कांग्रेस के स्थगन प्रस्ताव पर आज चर्चा प्रस्तावित है। माना जा रहा है कि दोनों पक्षों में सहमति 27 फीसदी आरक्षण पर बन जाएगी और इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया जाएगा।
आज हाईकोर्ट में सुनवाई
उधर कांग्रेस नेता सैयद जाफर और जया ठाकुर द्वारा आरक्षण में रोटेशन को लेकर लगाई गई याचिका पर हाईकोर्ट जबलपुर में आज मंगलवार को सुनवाई है। इस मामले में कोर्ट के रूख पर भी सरकार की नजर बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि इस याचिका पर सुनवाई करते हुए पहले हाईकोर्ट ने चुनाव पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। फिर याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को फिर से याचिका पर सुनवाई करने को कहा है।
70 करोड़ अधिक खर्च करने होंगे आयोग को
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ओबीसी के लिए आरक्षित पंचायत सीटों पर रोक लगाने की वजह से अब आयोग के इस चुनावी खर्च में 70 करोड़ रुपए की वृद्धि तय है। इसकी वजह है करीब 70 हजार ओबीसी वाली सीटों पर बाद में मतदान कराया जाना। इसकी वजह से पंचयात चुनाव कराने में आयोग का खर्च लगभग 140 करोड़ तक पहुंच जाएगा। इस स्थिति की वजह से आयोग को फिर से वही व्यवस्थाएं जुटानी होगी , जो अभी जुटाई गई हैं। इसके अलावा मतदाताओं को एक बार फिर से मतदान के लिए जाना होगा। यही नहीं एक बार फिर से तीन चरणों में यह चुनाव कराने होंगे जिसकी वजह से फिर से चुनावी दिनों में आचार संहिता लागू होने की वजह से ग्रामीण इलाकों में विकास के नए काम नहीं हो सकेंगे। मतदान से लेकर मतगणना तक के लिए फिर से कर्मचारियों की तैनाती भी करनी होगी और मतदान के लिए 55 हजार ईवीएम मशीनों की भी व्यवस्था करनी होगी।
पिछड़ा वर्ग आरक्षण मामले में अब उमा भी उतरीं
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी अब पिछड़ा वर्ग आरक्षण के विवाद में कूद गई हैं। उनका कहना है कि पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण पर लगी न्यायिक रोक चिंता का विषय है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से फोन पर बात कर उनसे उनसे आग्रह किया है कि ओबीसी आरक्षण के बिना मध्यप्रदेश में पंचायत का चुनाव प्रदेश की लगभग 70 फीसदी आबादी के साथ अन्याय होगा।