
भोपाल/हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए अब एक बार फिर से पूरी भाजपा सक्रिय हो गई है। इसके लिए भाजपा संगठन से लेकर सरकार में तक मंथन का दौर जारी है। सरकार व संगठन ने इसकी जिम्मेदारी एक बार फिर वरिष्ठ मंत्री व कुशल रणनीतिकार भूपेन्द्र सिंह को सौंप दी है। यही वजह है कि वे तत्काल सक्रिय होकर इसके लिए रास्ता निकालने के लिए तमाम संगठनों से मिलकर मंथन का दौर शुरू कर चुके हैं। उधर, इस मामले में भाजपा व कांग्रेस में जारी वाकयुद्ध के बीच इस मामले में शह और मात का खेल चल रहा है, जिसमें अब तक कांग्रेस का दांव उलटा पड़ता दिख रहा है। दरअसल पंचायत चुनाव के आरक्षण के मामले को लेकर कांग्रेस ही कोर्ट में गई थी। इसकी वजह से ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा त्रिस्तरीय पंचायत और निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक का आदेश दिया गया है। इस कारण से अब प्रदेश की आबादी में आधे से अधिक की सहभागिता वाले इस वर्ग में माना जा रहा है कि इसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीधे राज्य निर्वाचन आयोग को इस संबंध में आदेश दिया है। यह बात अलग है कि इस मामले में सरकार की जल्दबाजी और गैर रणनीतिक रुप से लिया गया फैसला भारी पड़ा है। यदि सरकार इन चुनाव को लिए नए सिरे से आरक्षण कराकर कराने का फैसला करती तो न तो कांग्रेस को कोर्ट में जाने का मौका मिलता और न ही ओबीसी आरक्षण का मामला इस तरह से सामने आता। अब इस निर्णय के बाद प्रदेश में ओबीसी की राजनीति एक बार फिर से पूरी तरह से गर्मा चुकी है। यही वजह है कि इस वर्ग को अपने साथ बनाए रखने के लिए आनन-फानन नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने रविवार को अपने निवास पर पिछड़ा वर्ग के विभिन्न् संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर आगामी कदमों को लेकर विचार विमर्श किया। उनका कहना है कि सरकार का स्पष्ट मानना है कि पंचायत हो या नगरीय निकाय चुनाव, ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। मध्य प्रदेश में 2003 में भाजपा सरकार ने ओबीसी को आरक्षण देने का निर्णय लिया था और उसी आधार पर अभी तक चुनाव हो रहे थे। सिह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने महाराष्ट्र का उदाहरण दिया था, उसी आधार पर ही मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगाई गई है। न्यायालय अपने मन से कोई निर्णय नहीं करता है। इससे साफ है कि कांग्रेस पिछड़ा वर्ग विरोधी है। हम प्रयास कर रहे हैं कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ हर हाल में मिले। इसके लिए सभी कानूनी पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है। उनका कहना है कि इस मामले में आयोग ने भी सरकार से अभिमत नहीं मांगा, बल्कि सीधे सात दिन में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षित सीटों को पुन: अधिसूचित करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण शून्य करने के लिए कहा है। भाजपा सरकार पिछड़ा वर्ग के हित में काम कर रही है। नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण के आधार पर नियुक्तियां की हैं। सरकार ने ओबीसी की सामाजिक, शैक्षिणक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग भी गठित किया है। उधर इस मामले में कांग्रेस का पक्ष रखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील रोटेशन लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण निरस्त करने का फैसला सुनाया, तो उस समय उस पर अपना पक्ष रखने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग और मप्र सरकार के वकीलों की थी। यह वकील कोर्ट में उपस्थित थे, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सरकार का कोई पक्ष नहीं रखा। उन्होंने कहा कि इससे साफ है कि मप्र की सरकार जानबूझकर ओबीसी का आरक्षण समाप्त करना चाहती है। इसीलिए जानबूझकर पंचायत चुनाव की प्रक्रिया ही इस तरह बनाई गई कि उसमें बहुत सारी संवैधानिक कमियां रह जाएं। कमलनाथ ने कहा कि भाजपा नेता सिर्फ झूठा प्रचार करने में लगे हुए हैं। कमलनाथ ने कहा सुप्रीम कोर्ट में अवकाश चल रहा है। ऐसे में सरकार अगर वाकई ओबीसी के आरक्षण के साथ चुनाव कराना चाहती है, तो उसे तत्काल सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन लगानी चाहिए, इस काम में कांग्रेस पार्टी सरकार का पूरा सहयोग देगी।
ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने का दावा
मंत्री भूपेन्द्र सिंह का कहना है कि इस मामले में फांसी भी लग जाए तो चिंता नहीं, ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाकर रहेंगे। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि जो भी किया धरा है सब कांग्रेस का किया हुआ है। उनका कहना है कि हमारी सरकार ने आरक्षण दिया पर कांग्रेस ने कोर्ट जाकर रूकवा दिया। मुख्यमंत्री और सरकार ओबीसी को यह आरक्षण दिलाकर ही रहेंगे। उन्होंने कहा कि 52 फीसदी लोगों के साथ कांग्रेस ने अन्याय किया है। कोर्ट अपने मन से नहीं, तथ्यों के आधार पर निर्णय करता है। कांग्रेस पिछड़ा वर्ग की विरोधी है और इसीलिए उसने आरक्षण पर रोक लगवाने का काम किया है।
ओबीसी वर्ग की चुनावी बहिष्कार की चेतावनी
सिंह ने दावा किया है कि ओबीसी वर्ग के विभिन्न संगठनों का कहना है कि यदि हमारे हितों की अनदेखी है तो फिर चुनाव में भाग नहीं लेंगे और बहिष्कार करेंगे। उनका कहना है कि वे विभिन्न संगठनों से चर्चा कर रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी की भूमिका सुनिश्चित होनी चाहिए।
असमंजस की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव लड़ने वालों के लिए असमंजस की स्थिति बन गई है। इसकी वजह है चुनाव आयोग की वह घोषणा जिसमें उसके द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर अन्य में चुनाव कराने का ऐलान किया गया है। इसकी वजह से अब यह हालात बन गए हैं कि हर पंचायत में सत्ताइस फीसदी पंच के पद के लिए भी चुनाव नहीं होगा। यही स्थिति जनपद व जिला पंचायत सदस्यों को लेकर भी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में यह भी कहा कि चुनावी प्रक्रिया न्यायालय के अधीन रहेगी और यदि गलत तरीके से चुनाव होता है तो न्यायालय पूरी प्रक्रिया को निरस्त भी कर सकता है। चुनाव के बाद मतगणना होगी या न्यायालय के फैसले के बाद होगी यह भी तय नहीं है। सरकार के रुख पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि चुनावी प्रक्रिया कितनी जल्दी या कितनी देर में पूरी होगी। लेकिन दो बार में चुनाव कराने से खर्च दो गुना बढ़ जाएगा और तब तक आदर्श चुनाव आचार संहिता जारी रह सकती है। इससे गांवों के विकास के कार्य प्रभावित होंगे। इसका सीधा असर गांव के लोगों पर पड़ेगा।