
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। कभी डाकूओं के लिए प्रसिद्व मप्र का चंबल अंचल अब लाल पत्थरों के लिए देश के साथ ही दुनिया में अपनी प्रसिद्धी के झंडे गाड़ रहा है। इस अंचल का लाल पत्थर अब करीब तीन दर्जन देशों की पंसद बन चुका है। यह पत्थर इस अंचल के बीहड़ों द्वारा उगले जा रहे हैं। इसकी वजह है इस अंचल से निकलने वाले पत्थरों का लाल रंग के होने के साथ ही उनका बेहद मुलायम होना, जिसकी वजह से उन पर आसानी से नक्काशी हो जाती है। इस पत्थर की एक और खासीयत है कि इसे आरामशीन से लकड़ी की तरह आसानी से चिरा जा सकता है। इस पत्थर की पसंद इससे ही समझी जा सकती है कि कोरोना काल से पहले 50 देशों में इसकी डिमांड थी और सालाना कारोबार 500 करोड़ का आंकड़ा छूने लगा था। करीब डेढ़ साल में कोरोना की वजह से यह कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ था, लेकिन इसके बाद अब एक बार फिर इसकी विदेशों में मांग बढ़ने लगी है। यही वजह है कि अब इस लाल पत्थर का निर्यात तीन दर्जन देशों में होने लगा है और इसका कारोबार 250 करोड़ तक पहुंच गया है। एक निर्यातक के मुताबिक एक बार फिर से कई देशों में कोरोना का खतरा फिर बढ़ने लगा है, जिसकी वजह से मांग कम बनी हुई है। इसके बाद भी कई देशों में सरकारी इमारतों और घरों में इसका उपयोग शुरू हो चुका है।
लकड़ी की तरह हो जाती है चिराई
इस पत्थर की खास बात यह है कि इसकी चिराई आसानी से आरा मशीनों पर लकड़ी की तरह हो जाती है। इसकी वजह है इस पत्थर का बेहद मुलायम होना। इसकी वजह से चिराई में कोई भी दिक्कत नहीं आती है। इसकी वजह से इस पत्थर पर चिराई मशीनों से आधुनिक लुक देना आसान रहता है। इस पत्थर की कटिंग, छिलाई और पॉलिश कर उसे कई तरह की डिजाइन और आकार में तैयार किया जाने लगा है। यह पत्थर ब्राउन, ग्रे, यलो और रेड रंग में खदान से निकलता है। डिजाइन और आकार में लगाने के बाद यह देखने में बहुत सुंदर लगता है।
खाड़ी देशों में है खास मांग
इस पत्थर की मध्य पूर्व के खाड़ी देशों में बेहद मांग है। इसके अलावा यूरोप और आॅस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों में भी इसकी मांग बनी हुई है। यही वजह है कि इस पत्थर के फिलहाल हर माह औसतन एक हजार कंटेनर विदेश भेजे जा रहे हैं। अब इनकी संख्या में भी मांग बढ़ने के साथ धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। कोरोना की दूसरी लहर के बाद अब तक कारोबारियों को करीब 250 करोड़ रुपए की डिमांड मिल चुकी है। भारत के विभिन्न राज्यों में इसी पत्थर का उपयोग हो रहा है। इस कारोबार से अंचल में शिवपुरी से लेकर मुरैना तक 5 हजार से ज्यादा लोगों को भी रोजगार मिला हुआ है। इसके अलावा इसके कारोबार से 15 हजार लोग अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका चला रहे हैं।

 
											 
											 
											