
भोपाल/हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के दो बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा को लेकर अब भी र्आइपीएस व आईएएस अफसरों के बीच लेकर मतभेद बने हुए हैं। पूर्व आईपीएस लॉबी जहांं मुख्यमंत्री की इस घोषणा से खुश है तो पूर्व आईएएस लॉबी इसको लेकर सवाल खड़ा कर रही है। इन दोनों ही सेवाओं के अफसरों के इसको लेकर अपने-अपने तर्क भी हैं। इन तर्काें को मौजूदा लॉबी से जोड़कर देखा जा रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने को लेकर इन दोनों ही संवर्ग के अफसरों में बीते साढ़े तीन दशक में भी सहमति नहीं बन पाई। रही है। आम आदमी भी इस प्रणाली को लेकर उत्साहित नजर नहीं आ रहा है। वैसे भी पुलिस की छवि पहले से ही खराब मानी जाती है, इसकी वजह से इस नई व्यवस्था को लेकर आम आदमी के मन में तमाम शंकाएं पैदा होने लगी हैं। अगर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने की घोषणा पर अमल होता है तो भोपाल व इंदौर इसे लागू करने वाले 69 वें और 70 वें शहर बन जाएंगे। इस मामले में पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि-मुंबई में अंग्रेजों के समय से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है लेकिन मुंबई में ही दाउद पनपा है। हाल ही में गृहमंत्री और पुलिस का बार से उगाही का गठजोड़ भी उजागर हो चुका है। मुंबई में कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद कौन से अपराध कम हो गए हैं। बिहार में कुछ समय पहले ही पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया गया है। चूंकि यह एक ट्रेंड बन गया है, इसलिए मप्र के मुख्यमंत्री भी हवा के विरुद्ध नहीं चल सकते। पुलिस सुधार के नाम पर कमिश्नर सिस्टम को लागू करने का अपराध से कोई संबंध नहीं है। यदि ऐसा होता तो बेंगलुरु और दिल्ली में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद अपराधों में कमी आनी चाहिए थी, लेकिन उन दोनों ही शहरों में महिला अपराधों में वृद्धि हुई है। उनका कहना है कि इस प्रणाली से फायदा कम नुकसान ज्यादा है। उनका मानना है कि इसके बाद सुनवाई को लेकर काफी दिक्कतें आएंगी। अभी जिला दंडाधिकारी के निर्णय को ऊपर चुनौती दी जा सकती है लेकिन पुलिस आयुक्त प्रणाली आने से एक ही फोरम रहेगा जिससे लोगों को तकलीफें होंगी। उधर पूर्व मुख्य सचिव रहीं निर्मिला बुच का कहना है कि आयुक्त प्रणाली की मांग सालों से चल रही है। इसमें नया क्या है, सब पुराना ही है। नफा-नुकसान की बात सबके सामने आ जाएगी। इधर इस मामले में पूर्व डीजीपी नंदन दुबे का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है। इससे पुलिस की कार्रवाई मजबूत होगी। यह आईएएस और आईपीएस का मुद्दा नहीं है। सरकार के इस निर्णय से पुलिस में काफी सुधार होगा। पुलिस के पास कई अहम अधिकार आ जाएंगे। इससे वह कार्रवाई मजबूती के साथ कर सकेगी। अभी कुछ मामलों में हीला-हवाली भी होती है। अब जो गलती करेगा, उसे भुगतना पड़ेगा, क्योंकि बहाना नहीं रहेगा कि प्रशासन के अफसरों ने यह गलती की है। इसी तरह से पूर्व डीजीपी डीसी जुगरान का कहना है कि पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करना बहुत अच्छा कदम है। इसके लिए बहुत प्रयास हुए हैं, पुलिस ने कई बार सरकार से इसकी मांग की है। जब मैं डीजीपी था, तब भी प्रयास किए थे। इसके लिए भी शिवराज सिंह चौहान और डीजीपी विवेक जौहरी को बधाई के पात्र भी बता रहे हैं। उनका कहना है कि अपराध का जो तरीका बदला है, उस पर नियंत्रण के लिए यह सिस्टम जरूरी है। जल्दी इसके सार्थक परिणाम दिखाई देंगे। पुलिस की जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। इस मामले में पूर्व डीजीपी रहे अरुण गूर्टू का कहना है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली का सर्वाधिक इफेक्ट तब देखने में आता है, जब बलवा या सांप्रदायिकता के चलते हालात बिगड़ते हैं। हालात कंट्रोल करने से लेकर त्वरित गिरफ्तारियां होने के अलावा अन्य प्रतिबंधात्मक कार्रवाई हो सकती है। साथ ही आर्गनाइज्ड क्राइम को कंट्रोल करने में भी यह सिस्टम प्रभावी होता है। पब्लिक का एक से दूसरे ऑफिस में चक्कर काटने का समय और जनधन की बचत होती है। जबकि पूर्व डीजीपी नंदन दुबे का कहना है कि यह तो चालीस साल पहले लागू हो जाना था, लेकिन तकनीकी कारणों से लंबित होता रहा। यह देर से उठाया गया सही कदम है, जो कि प्रदेश के लिए बेहद जरूरी हो गया था। इससे लॉ एंड ऑर्डर बेहतर होने के साथ ही पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय हो सकेगी। पूर्व आईपीएस शैलेन्द्र श्रीवास्तव का कहना है कि इससे पुलिस की जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी। पुलिस को जनआकांक्षाओं और सरकार की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए अधिक मेहनत करना होगा।
19 महानगरों में से अभी 14 में है लागू
फिलहाल देश के 19 महानगरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा है। इनमें से 14 महानगरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। बीस लाख से ज्यादा आबादी वाले छह शहर हैं, जहां पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू नहीं है। इनमें मध्यप्रदेश के भोपाल और इंदौर जैसे शहर भी शामिल हैं। बिहार का पटना और उत्तर प्रदेश का कानपुर और गाजियाबाद भी हैं, जबकि 34 शहर ऐसे हैं, जिनकी आबादी 10 से 20 लाख के बीच है। इनमें से 26 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। देश में 31 शहर ऐसे भी हैं, जहां की आबादी 10 लाख से कम है। इसके बाद भी उन शहरों में कमिश्नर सिस्टम लागू है।
एसपी से ऊपर का एक पद बढ़ेगा, नीचे का कम होगा
पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद एडीजी स्तर के आईपीएस की बतौर कमिश्नर तैनाती की जाएगी। महानगर को कई जोन में विभाजित किया जाकर हर जोन में डीसीपी की तैनाती होगी, जो एसएसपी की तरह उस जोन में काम करेंगे और उस पूरे जोन के लिए जिम्मेदार होंगे। एसपी स्तर के अधिकारी डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस डीसीपी बनाए जाएंगे। अभी एसपी के ऊपर डीआईजी और आईजी अथवा एडीजी यानी दो सीनियर होते हैं। अब कमिश्नर के अलावा ज्वाइंट कमिश्नर और एडीश्नल कमिश्नर यानी तीन सीनियर होंगे। एसपी के नीचे एएसपी और डीएसपी होते हैं।
डीएसपी स्तर के सिर्फ असिस्टेंट कमिश्नर होंगे।