
- गृह निर्माण सहकारी समितियों में वर्षों से कुंडली मारकर बैठे प्रशासक
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार ने गृह निर्माण सहकारी समितियों में गड़बड़ी रोकने के लिए जिन लोगों को प्रशासक के तौर पर नियुक्त किया, अब वही सदस्यों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। नियम विरुद्ध 13-13 साल से समितियों में कुंडली मारकर बैठे प्रशासक अपनी मनमानी पर उतारू हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि समिति के सदस्यों को न तो प्लॉट मिल पा रहा है और न ही इसकी कोई प्रक्रिया शुरू हो पा रही है।
गौरतलब है कि सरकार ने 182 गृह निर्माण सहकारी समितियों में तरह-तरह की गड़बड़ियों को रोकने प्रशासक की नियुक्ति की लेकिन ये फैसला अब सदस्यों पर भारी पड़ रहा है। बरसों पहले प्लॉट आवंटन के लिए राशि जमा करने वालों को न तो प्लॉट मिल रहे हैं और न ही इसकी कोई प्रक्रिया शुरू हुई। अवैध सदस्यों की सदस्यता पर भी प्रशासक ने निर्णय नहीं लिया। प्रशासक का कार्यकाल छह माह का होता है लेकिन कई समितियों में तो 13 साल गुजर जाने के बाद भी प्रशासक ने अपना पद नहीं छोड़ा।
राजनीति में अटका चुनाव
समितियों के चुनाव कराने की प्रक्रिया भी शुरू नहीं की। नतीजे में पात्र सदस्य यहां-वहां चक्कर काट रहे हैं लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। दरअसल सहकारी संस्थाओं में चुनाव कराए जाने का मामला राजनीतिक कारणों से उलझा है। नियमानुसार इन समितियों है का कार्यकाल समाप्त होने के तीन माह पहले चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी जाना चाहिए थी, जो अब तक आरंभ नहीं हुई। इस कारण समितियों में प्रशासकों का राज चल रहा है। न तो सदस्यों को समिति के कार्यकलापों की जानकारी मिल रही और सामान्य सभा नहीं बुलाए जाने से वास्तविक सदस्य संख्या एवं लेखा स्थिति से भी सदस्य वंचित है।
इसका एक उदाहरण बावड़िया कलां स्थित गौरव गृह निर्माण सहकारी समिति है। यहां फर्जीवाड़े की शिकायत के बाद करीब दो साल पहले तत्कालीन सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह ने 16 रजिस्ट्रियों को शून्य करने के निर्देश दिए थे। इसके लिए 28 जनवरी 2020 को प्रशासक की नियुक्ति की गई थी। प्रशासक आरएस उपाध्याय ने कार्यभार तो संभाल लिया लेकिन किया कुछ नहीं।
प्रशासकों ने नहीं किया नियमों का पालन
नियम है कि कार्यभार संभालते ही प्रशासक को संस्था का रिकॉर्ड नियंत्रण में लेना होता है। रिकॉर्ड के आधार पर सदस्यता सूची बनाना होता है। मतदाता सूची के आधार पर आमसभा बुलानी पड़ती है। आमसभा में चुनाव कराने की घोषणा करनी पड़ती है। रिकॉर्ड के आधार पर ऑडिट करवाना होता है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। जबकि यदि प्रशासक द्वारा आमसभा नहीं बुलाई जाती है तो प्रशासक के ऊपर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाने का अधिकार सहकारिता उपायुक्त को है। लेकिन जिले में उपायुक्त ने किसी प्रशासक के खिलाफ न जुर्माना लगाया और अन्य कोई कार्रवाई की है। सहकारिता एवं पंजीयक सहकारी संस्थाएं आयुक्त नरेश पाल का कहना है कि भोपाल जिले में कितनी हाउसिंग सोसायटी में कितने प्रशासक नियुक्त हैं, छह महीने होने के बाद इनको क्यों नहीं हटाया गया, इस बारे में सहकारिता उपायुक्त से रिपोर्ट तलब की जाएगी।
अवैध रूप से जमे प्रशासक
प्रशासक का कार्यकाल छह माह का होता है लेकिन कई समितियों में तो 13 साल गुजर जाने के बाद भी प्रशासक ने अपना पद नहीं छोड़ा। गौरव सोसायटी में प्लॉट की लड़ाई लड़ रहे रहवासी विवेक दीक्षित का आरोप है कि सोसायटी में अवैध रूप से प्रशासक कार्य कर रहे हैं। ये नियम का उल्लंघन है। नियमानुसार इनके ऊपर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाना चाहिए। यह जिम्मा उपायुक्त सहकारिता का है लेकिन आज तक उपायुक्त भोपाल जिले में किसी भी प्रशासक पर कोई जुर्माना नहीं लगाया।