10 लाख से अधिक काम ठप…श्रमिक पलायन को मजबूर

श्रमिक पलायन

-मनरेगा में 1.19 करोड़ श्रमिक, इनमें हर दिन 11.65 लाख को ही मिल रहा काम

-मप्र में मनरेगा का बजट गड़बड़ाया

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। कोरोना संक्रमण काल में श्रमिकों के लिए संजीवनी बनी मनरेगा में अब लोगों को काम नहीं मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश को मनरेगा का पर्याप्त बजट नहीं मिल पाया है। इस कारण 10 लाख से अधिक कार्य रूके पड़े हैं।
जिसके चलते मनरेगा में पंजीकृत 1.19 करोड़ श्रमिकों में से मात्र 11.65 लाख को ही प्रतिदिन रोजगार मिल पा रहा है।  जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण के दौरान प्रदेश में जिन लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार मिला है उनमें से लाखों की मजदूरी का अभी तक भुगतान नहीं हुआ है। साथ ही ठेकेदारों को भी उनके काम का पैसा नहीं मिला है। इस कारण जहां काम रूके पड़े हैं, वहीं श्रमिकों का शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया है। मंदसौर के ग्राम ढाबला माधौ सिंह के कन्हैयालाल भील मजदूरी के लिए दूसरों के खेत में काम कर रहे हैं। उन्हें गांव में मनरेगा के अन्तगत काम नहीं मिल रहा है। वहीं मजदूरी कम होने से गांव के लोग जयपुर सहित अन्य बड़े शहरों में जाने लगे हैं। यही हाल धार जिले के कुक्षी अन्तर्गत ग्राम ढोलिया में हैं। इसके अलावा बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र में भी काम का संकट बन गया है।
हर दिन 11.65 लाख को ही रोजगार
मप्र मनरेगा के तहत कार्यों को पूरा करने में अन्य राज्यों से आगे रहता है। लेकिन वर्तमान में मनरेगा का बजट गड़बड़ाने से प्रदेश को पर्याप्त फंड नहीं मिल पाया है। इस कारण  वर्तमान में 10 लाख से अधिक काम रुके हैं। इसके पीछे ठेकेदारों का बकाया भुगतान नहीं होना और मजदूरों की मजदूरी समय पर नहीं मिलना प्रमुख कारण सामने आए हैं। प्रदेश में दो साल के भीतर 989 करोड़ से अधिक का भुगतान अटका है। इसमें मजदूरी का 64 करोड़ रूपए है। इसका असर रोजगार पर भी पड़ा है। प्रदेश में मनरेगा के अन्तर्गत 1.19 करोड़ से अधिक क्रियाशील मजदूर हैं। इनमें 8 अक्टूबर की स्थिति में 11.65 लाख श्रमिकों को ही रोज काम मिल रहा है। कोरोना की पहली लहर में अन्य प्रदेशों से प्रवासी मजदूरों के वापस आने पर एक दिन में 22 लाख से अधिक तक मजदूरों को रोजगार दिया गया था।
12 लाख में से 1 लाख का मस्टर रोल जारी
मनरेगा का पर्याप्त बजट नहीं मिलने का असर यह हुआ है कि वर्ष 2021-22 में 12.12 लाख कार्य खोले गए इनमें से इस माह 1,12,990 कार्यों में ही मस्टर रोल जारी किए गए हैं। वहीं पिछले साल 71,85,242 मजदूरों को काम मिला जबकि इस साल 75,58,689 को। मनरेगा आयुक्त सूफिया फारूकी का कहना है कि इस साल लंबे समय तक बारिश हुई। इससे कहीं-कहीं काम प्रभावित हुए। वैसे पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा काम खोले गए। पिछले साल की औसत मजदूरी 179 रुपए से बढ़कर इस साल 186.46 रुपए यानि 6 रुपये अधिक हो गई। इस समय धान का उपार्जन होने से मजदूरों की संख्या में कमी देखी जा रही है। काम को गति देने प्रयास जारी हैं।
मप्र में मजदूरों के पलायन की वजह
प्रदेश में बड़ी संख्या में मजदूर पलायन करते हैं। इसकी वजह है काम का अभाव और कम मजदूरी। वर्तमान में मजदूरों के पलायन की कई वजहें हैं। पीएम आवास योजना में काम नहीं चलने से हितग्राहियों की संख्या घटी है। आवास निर्माण में 90 दिन काम करने पर रोज 193 रुपए से कम मिलते हैं। जबकि ओडिशा में 220 रुपए रोज। अधिक मजदूरी देने के लिए ठेकेदारी प्रथा है। इसलिए लोग मजदूरी के लिए बाहर जा रहे हैं। निर्माण मटेरियल महंगा होने और भुगतान बकाया होने से ठेकेदार हाथ खींच रहे हैं। गांवों में सरपंच और सचिवों की मनमानी से काम नहीं मिल रहा। मजदूरी दर प्रदेश में 193 रुपए है लेकिन वास्तव में 185 रुपए मिलते हैं। एक मजदूर परिवार को सौ दिन काम देने पर सालभर में महज 18,500 रुपए मिलते हैं। इसलिए मजदूर पलायन का मजबूर हो रहे हैं।

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