
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। दिया तले अंधेरा की कहावत हमारे सूबे के वन मंत्री विजय शाह पर पूरी तरह से फिट बैठती है। इसकी वजह है वन महकमे के वे मंत्री होने की वजह से राजनैतिक मुखिया है। इसके बाद भी उनके विधानसभा क्षेत्र हरसूद से सटे जंगल में अतिक्रमणकारियों की पौ बारह बनी हुई है। हालत यह है कि जंगल में लगे कई दशकों पुराने एक दो नहीं बल्किसैकड़ों की संख्या में इन पेड़ों को न केवल माफिया ने काट डाला बल्कि उनका ऐसा सफाया किया कि उनकी बजूद ही पूरी तरह से समाप्त हो गया है। पेड़ कटाई के बाद उस जगह को खेत का रुप देकर खेती करना भी शुरू कर दिया गया है। इसकी वजह से अब लोग यह तक कहने लगे हैं कि जब वन मंत्री विजय शाह के इलाके में वन माफिया इस तरह से बेखौफ है तो प्रदेश में क्या हाल हो रहे होंगे समझा जा सकता है। यही वजह है कि अब तक अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने रहने वाले शाह अब इस मामले में न केवल चर्चा में बने हुए हैं, बल्कि सरकार की भी बदनामी करा रहे हैं। खास बात यह है कि माफिया ने यह सब बीते दो माह में किया है। अगर मंत्री जी को इसकी भनक नहीं है तो यह भी और शर्मनाक है। अगर पता है तो कार्रवाई न होना भी उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है। हद तो यह हो गई जगंल में पेड़ काटने के बाद वन माफिया ने बाकयदा खेत बनाने के बाद उसे पर फसल लेना भी शुरू कर दिया है। अब इस मामले में शिकायत करने के बाद वन अमला हरकत में तो आया है , लेकिन अब तक कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखा पाया है। खास बात यह है कि वन माफिया ने थोड़ी बहुत वन भूमि पर कब्जा नहीं किया है बल्कि वह सैकड़ंो एकड़ बताई जा रही है।
प्रारंभिक जांच के बाद अब विस्तार से जांच
इस मामले में जब विभाग के पास कई शिकायतें आयीं तो वन महकमा हरकत में आया। इसकी प्रारंभिक जांच करने पर पता चला कि जंगल से पेड़काटकर बीते कुछ समय में सैकड़ों एकड़ भूमि पर कब्जा कर लिया गया है। इस खुलासे के बाद अब विभाग द्वारा पूरे मामले की बिस्तार से जांच कराई जा रही है। दरअसल इस पूरे मामले में खंडवा के वन अफसरों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। उल्लेखनीय है कि हरसूद से सटे खंडवा के खालवा के गुड़ी वन परिक्षेत्र में हुआ यह अतिक्रमण वनभूमि पर पट्टों के लिए किया गया है। यही नहीं इसी इलाके में करीब डेढ़ साल पहले भी इसी तरह से अतिक्रमण किया गया था, लेकिन उस समय वन अमले ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उस अतिक्रमण को तत्काल हटा दिया था। अब इस बार वन बल प्रमुख ने कार्य आयोजना आंचलिक कार्यालय इंदौर में पदस्थ अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक बीएस अन्निगेरी को मामले की जांच का जिम्मा सौंपा है।
वन भूमि अतिक्रमण में मप्र पहले स्थान पर
देश में वन भूमि पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण मध्यप्रदेश में हो रहा है। वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक बीते साल तक मप्र में करीब 5,347 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है। इस मामले में दूसरे नम्बर पर असम और तीसरे नम्बर पर उड़ीसा का नाम है। मप्र में वन विभाग के संरक्षण शाखा की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्रति वर्ष साढ़े 7 सौ हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर खेती और आवास बनाने के नाम पर अतिक्रमण हो रहा है। रिपोर्ट में यह चौकाने वाला खुलासा भी किया गया है कि वन भूमि से अतिक्रमण हटाने में मात्र 20 फीसदी ही सफलता मिलती है। इसकी मुख्य वजह वोट बैंक की राजनीति है। रिपोर्ट में पिछले तीन साल के अतिक्रमण आंकड़ों का हवाला देकर कहा गया है कि 13209 हेक्टेयर में अतिक्रमण हुआ। जबकि मात्र 1039 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराई जा सकी है। प्रदेश में कुछ माह पहले खंडवा जिले के गुड़ी वन परिक्षेत्र के आमाखुजरी में अतिक्रमण हटाने गए रेंजर सहित अन्य वन कर्मी और पुलिस कर्मियों को अतिक्रमणकारियों ने हमला कर घायल कर दिया था। इस मामले में राजनीतिक दबाव के चलते उल्टे वन कर्मियों पर ही सरकार ने प्रकरण दर्ज करा दिया गया। यही नहीं इस मामले में डीएफओ सहित कई अधिकारियों का बतौर सजा स्थानांतरण कर दिया गया। हालांकि इस मामले की न्यायिक जांच कराई जा रही है।
आठ गुना बढ़ा अतिक्रमण
इंदौर परिक्षेत्र में एक साल आठ गुना अतिक्रमण हुआ है। इसके पहले इंदौर परिक्षेत्र में 2017 में 23 और 2018 में 25 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण हुआ था। वर्ष 2019 में 492 हेक्टेयर क्षेत्र में अतिक्रमण हुआ। इसके बाद माहज इस क्षेत्र से मात्र 9 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण से मुक्त करवा जा सका। अतिक्रमण के मामले में खंडवा, शिवपुरी, छतरपुर और शहड़ोल सर्किल सबसे आगे हैं। इन सर्किलों में वन भूमि पर हर साल करीब 300 से लेकर एक हजार हेक्टेयर तक अतिक्रमण होता है। छतरपुर जिले में वर्ष 2017 में 5992 हेक्टेयर में अतिक्रमण किया गया, जिसमें से मात्र 22 हेक्टेयर क्षेत्र से अतिक्रमण हटाया गया है।
हर साल खर्च होता है 26 सौ करोड़
वन विभाग वनों की सुरक्षा और विकास के नाम पर प्रति वर्ष विभाग 2600 करोड़ रूपए खर्च करता है। इसके अलावा ग्रन इंडिया मिशन, कैंपा सहित अन्य मदों से विभाग को करोड़ों रूपए प्रति वर्ष दिया जाता है। इसके बाद भी वनों की सुरक्षा पूरी तरह से नहीं हो पा रही है। अतिक्रमण, अवैध कटाई और उत्खनन के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं।
वन माफिया के निशाने पर जंगल
वन अधिकार पट्टा के चलते जंगल अतिक्रमण कारियों के निशाने पर आए हुए हैं। हालात यह है कि प्रदेश में हर साल लगभग दो से तीन हजार हेक्टेयर जंगल की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया जाता है। बुरहानपुर का नेपानगर क्षेत्र लंबे समय से अतिक्रमणकारियों के निशाने पर बना हुआ है। बीते साल नेपानगर में अतिक्रमण हटाने गए वन अमले पर आदिवासियों ने गोफन से पत्थर बरसाकर उन्हें घायल तक कर दिया था। तब मामला इतना बढ़ गया था कि मौके पर वनमंत्री तक को जाना पड़ा था।