साध्वी कहीं असंतुष्ट… भाजपाइयों की परिवर्तनकारी नेता तो नहीं बनना चाहती?

भाजपाइयों

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र भाजपा की राजनीति में इन दिनों
असंतोष की आग सुलग रही है। भाजपा के नेता कभी बिजली, कभी सड़क, कभी पानी, कभी आरक्षण, तो  कभी अन्य किसी वजह से सत्ता और संगठन पर सवाल उठा रहे हैं। दरअसल, राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए इन नेताओं में अजब सी छटपटाहट दिख रही है।
इनमें से साध्वी उमा भारती की छटपटाहट सबसे अधिक है।  जिस तरह साध्वी लगातार असंतोष व्यक्त कर रही हैं उससे लग रहा है कि वे असंतुष्ट भाजपाइयों की परिवर्तनकारी नेता तो नहीं बनना चाहती हैं? साध्वी उमा भारती चुनावी राजनीति में वापस लौटना चाहती हैं। उमा भारती इन दिनों मप्र में ज्यादा सक्रिय हैं। लेकिन न तो सत्ता और न ही संगठन उन्हें महत्व दे रहा है। ऐसे में साध्वी दिन पर दिन आक्रामक होती जा रही हैं।
उनकी छटपटाहट का आकंलन इसी से किया जा सकता है कि उन्होंने ब्यूरोक्रेसी की आड़ में अपनी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इसके पहले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे स्व वीरेन्द्र कुमार सकलेचा के मंत्री पुत्र ओम प्रकाश सकलेचा भी नौकरशाही को लेकर अपनी ही सरकार की आलोचना कर चुके हैं। इससे पहले साध्वी ने शराबबंदी के लिए अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का ऐलान किया है। यही नहीं उन्होंने कहा है की शिवराज-वीडी कहते हैं कि जागरूकता से शराबबंदी होगी, लेकिन मैं कहती हूं लट्ठ से ही शराबबंदी होगी।  दरअसल, उमा भारती मध्यप्रदेश में अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी चाहती हैं।
वह पहले भी कई बार पार्टी के सामने स्पष्ट कर चुकी हैं कि मप्र में भाजपा की वापसी उनके कारण हुई थी। उनकी मेहनत के हिसाब से उन्हें तवज्जो नहीं मिली हैं। शिवराज के आने के बाद वह मप्र की राजनीति में नेपथ्य में चली गई हैं। यही वजह है कि वह उत्तर प्रदेश से आकर एक बार फिर से मप्र में अपनी जगह बनाना चाहती हैं। उमा की ही तरह कई अन्य भाजपा नेता भी हैं जो सत्ता-संगठन से नाराज चल रहे हैं और समय-समय पर अपनी आवाज उठाते रहते हैं। इनमें से एक है प्रदेश के पूर्व मंत्री और विधायक अजय विश्नोई। विश्नोई लगातार शिवराज सरकार पर निशाना साध रहे हैं। कभी सड़क तो कभी बिजली के बहाने मुख्यमंत्री को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। इनके अलावा मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी कभी अलग विंध्य प्रदेश तो कभी बिजली को लेकर लगतार सरकार को घेरने में लगे हुए हैं। वे तो इन दिनों अलग विंध्य प्रदेश का झंडा उठाए घूम रहे हैं। टीकमगढ़ के भाजपा विधायक राकेश गिरी ने भी सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर बिजली मामले में सवाल-जवाब किया है।
यही नहीं गाहे बगाहे प्रदेश के बरिष्ठ मंत्री और उमा भारती के करीब माने जाने वाले गोपाल भार्गव भी कभी -कभी अपने तेवर दिखा देते हैं। विधायकों के गरम तेवर को देखकर मुख्यमंत्री ने मंत्रियों और विधायकों से जब वन-टू-वन किया तो यह बात सामने आई थी कि अफसर इनकी सुन नहीं रहे हैं। मुख्यमंत्री ने सबको आश्वासन दिया था कि अब अफसर आपकी बातों को नहीं टालेंगे लेकिन स्थिति जस की तस है।  उल्लेखनीय है कि भाजपा में असंतोष का एक दौर उस समय भी शुरू हुआ था जब बंगाल चुनाव के बाद कैलाश विजयवर्गीय मप्र आए थे।
 उन दिनों करीब एक पखवाड़े तक दिल्ली से लेकर भोपाल तक नेताओं के मेल मुलाकात का दौर तेज चला था। जिन नेताओं के बीच मेल मुलाकात का दौर चला था वे या तो मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे या शिवराज के विरोधी माने जाते हैं। राजनीतिक मुलाकातों का यह दौर परवान चढ़ता उससे पहले ही केंद्रीय नेतृत्व ने मुलाकातों की श्रृंखला पर नकेल कस दी। लेकिन नेताओं के बीच असंतोष कहीं न कहीं जरूर पनप रहा है।
90 के दशक की याद
मप्र भाजपा की राजनीति में जिस तरह असंतोष की लहर देखी जा रही है वह 90 के दशक की याद दिला रही है। उस समय के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के खिलाफ तत्कालीन वरिष्ठ भाजपा नेता प्यारेलाल खंडेलवाल ने मोर्चा खोल रखा था। खंडेलवाल के साथ उस समय पटवा से नाराज चल रहे नेता साथ आ गए थे। जिसे राजनीतिक वैज्ञानिकों ने परिवर्तनवादी गुट का नाम दिया था। हालांकि खंडेलवाल कुछ खास नहीं कर पाए थे। इसी तरह उमा भारती ने सत्ता और संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।

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