
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र सरकार के इंकार के बाद प्रदेश के गोदामों में रखे गेहूं के विक्रय की सरकारी स्तर पर एक फिर कवायद शुरू कर दी गई है। पिछली बार विवादों के चलते इसके टेंडर को रद्द करना पड़ा था। यह वो गेहूं है , जिसे प्रदेश सरकार ने दो साल पहले खरीदा था, लेकिन केन्द्र की एक शर्त नहीं मानने की वजह से उसे केन्द्र सरकार ने लेने से ही माना कर दिया था। इसकी वजह से प्रदेश में भंडारण की न केवल समस्या बनी हुई है , बल्कि सरकार का अरबों रुपए भी फंसा हुआ है। पूर्व में जिम्मेदार अफसरों ने इस गेहूं को बेचने की आड़ में बड़ा खेल करने की तैयारी कर ली थी, लेकिन मामले में हो हल्ला बचने के बाद सरकार को उस समय की नीलामी प्रक्रिया को निरस्त करना पड़ा था। अब इस मामले को लेकर सरकार को नई नीति लानी पड़ी है। इसके तहत ही अब नए सिरे से उक्त गेहूं विक्रय के लिए टेंडर जारी करने की तैयारी की जा रही है। इसके तहत अब पूरा गेहूं एक साथ विक्रय करने की जगह उसे अलग-अलग सत्तर लॉट बनाकर टेंडर किए जा रहे हैं। इसके लिए ग्लोबल टेंडर जारी कर छह सितंबर तक गेहूं खरीदने वाली एजेंसियों से प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। दरअसल प्रदेश सरकार ने वर्ष 2019-20 में यह गेहूं खरीदा था। विक्रय किए जाने वाले गेहूं की मात्रा 6 लाख 45 हजार क्विंटल है। पूर्व में इसके विक्रय के लिए जो टेंडर जारी किया गया था उसमें इस तरह की शर्तें शामिल कर दी गई थीं, जिससे की सिर्फ एक ही कंपनी तकनीकी और फाइनेंशियल बिड में खरी उतर सकी थी। इस टेंडर की शर्तों को लेकर न केवल जमकर शिकायतें हुई थीं, बल्कि उसे लेकर बेहद हो हल्ला भी मचा था। उस समय विभाग पर एक कंपनी को उपकृत करने तक के भी लगे थे। इसके बाद नागरिक आपूर्ति निगम को निरस्त करना पड़ गया था। यही वजह है कि इस बार अब सत्तर लाट बनाकर टेंडर जारी किया गया है। इसकी वजह से अब इस टेंडर में बड़े सभी व्यापारी, एजेंसियां खरीदी के लिए पात्र हो जाएंगी। खास बात यह है कि इसमें उन्हें भी पात्रता मिल गई है, जिनके पास मंडी का लाइसेंस है।
होगा 250 रुपए प्रति क्विंटल का घाटा
खास बात यह है कि इस गेंहू के लिए जो विक्रय दर तय की गई है उसके हिसाब से सरकार को हर एक क्विंटल पर 250 रुपए का नुकसान होना तय है। यह नुकसान तब हो रहा है जब उसकी रिजर्व प्राइस दस रुपए क्विंटल बढ़ा दी गई है। पहले जारी किए गए टेंडर में रिजर्व प्राइज 1580 रुपए रखी गई थीं, जिसमें अब नए टेंडर में 10 रुपए की वृद्धि कर दी गई है। इस गेहूंको दो साल पहले 1840 रुपए क्विंटल की दर से खरीदा गया था। हालाकि इस गेहूं के परिवहन और भंडारण पर राज्य सरकार को काफी राशि खर्च करना पड़ी है।
केन्द्र ने इसलिए कर दिया था इंकार
प्रदेश सरकार ने दो साल पहले वर्ष 2019-20 में 72 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूं की खरीदी की थी। इसमें से केंद्र ने 66 लाख मीट्रिक टन गेहूं ले लिया था। इस खरीदी के दौरान तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने जय किसान समृद्धि योजना के नाम पर किसानों को 160 रुपए प्रति क्विंटल के मान से प्रोत्साहन राशि दी थी। इसकी वजह से अनुबंध का उल्लंघन होने से केन्द्र ने 6 लाख 45 हजार टन अधिक गेहूं सेंट्रल पूल में लेने से मना कर दिया था। इसकी वजह से अब राज्य सरकार को उक्त बचा हुआ गेहूं खुद ही बेचना पड़ रहा है। इसके लिए जून 2021 में एक-एक लाख टन के दो लाट बनाकर दो लाख टन गेहूं नीलाम करने निविदा बुलाई गई थी। इसमें सौ करोड़ के वार्षिक टर्नओवर वाली कंपनियों को भी टेंडर में भाग लेने की शर्त तय कर दी गई थी। इसकी वजह से तीन बड़ी कंपनियां ही निविदा में शामिल हुई और अंतिम रूप से केवल एक ही कंपनी इसमें शामिल रह पायी थी।