
- ईओडब्ल्यू द्वारा प्रकरण दर्ज कर लिए जाने के बाद भी पद पर बने हुए हैं सत्यनारायण दुबे…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश का आबकारी महकमा कैसे अपने चहेते अफसर को बचाने के लिए नियम कानून भी ताक पर रख देता है। इसका ताजा उदाहरण है जबलपुर में पदस्थ सहायक आयुक्त आबकारी सत्यनारायण दुबे का। दरअसल दुबे के विरुद्ध पिछले महीने में 27 जुलाई को ईओडब्ल्यू भोपाल में प्रकरण क्रमांक 35/2021 दर्ज हो चुका है। बावजूद इसके वे अब भी पद पर बने हुए हैं और सेवाएं भी दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई नियम कानून विभाग में है ही नहीं। अफसर अपनी मनमर्जी से विभाग चला रहे हैं। विशेष यह है कि ईओडब्ल्यू के द्वारा शासन को और आबकारी आयुक्त को प्रकरण दर्ज किए जाने की सूचना भी दी जा चुकी है। लेकिन वाणिज्यकर विभाग के द्वारा उनको वर्तमान पदस्थापना जबलपुर से अब तक नहीं हटाया गया है। बता दें कि दुबे एवं उनके खास क्लर्क विवेक उपाध्याय पर थोक सैनिक कैंटीन का लायसेंस जानबूझकर विलंब से देकर स्थानीय ठेकेदारों को भरपूर लाभ कमाने का अवसर देकर शासन को तीन करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया गया है। इस मामले में शिकायत के बाद आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ द्वारा सत्यनारायण दुबे के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है।
ये था राजस्व नुकसान से जुड़ा पूरा मामला
अपने चहेते शराब ठेकेदार को तीन करोड़ का लाभ पहुंचाने के लिए सेना का आबकारी लाइसेंस को लटकाए रखना एक आबकारी अफसर और उनके बाबू को भारी पड़ गया। वहीं पिछले महीने ही इस मामले में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने जबलपुर में पदस्थ आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त सत्यनारायण दुबे और उनके बाबू विवेक उपाध्याय के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया था। इस मामले की जांच एजेंसी की जबलपुर शाखा द्वारा की जा रही है। दरअसल यह पूरा मामला तीन साल पहले वर्ष 2018-2019 का है। यह मामला मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आठ आर्मी डिपो को जारी होने वाले एफएल-7 लाइसेंस को लेकर है। इसके लिए प्रक्रिया पूरी करने के बाद जब लाइसेंस के नवीनीकरण की फाइल सेना के कार्यालय से आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त सत्यनारायण दुबे के पास भेजी गई तो उनके द्वारा इसे 31 मार्च को रिन्यू करने की जगह रोककर रख लिया गया। जब इस मामले में हो हल्ला मचा तब कहीं जाकर एक मई को रिन्यू किया गया। इसकी वजह से पूरे एक माह तक बिना लाइसेंस के आर्मी डिपो में शराब की बिक्री करनी पड़ी। जिसकी वजह से सरकार को इस अवधि में तीन करोड़ रुपए की चपत लग गई। इस मामले में जबलपुर आयुध फैक्ट्री के जीएम और कलेक्टर की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है।
वर्ष 2018-19 का है मामला
ज्ञात रहे कि आबकारी विभाग सेना की कैंटीन से शराब की बिक्री के लिए एफएल-7 लाइसेंस जारी करता है। यह लाइसेंस एक साल के लिए वैध रहता है। हर साल 31 मार्च को लाइसेंस का नवीनीकरण कराना पड़ता है। वर्ष 2018-19 में आबकारी अधिकारियों ने ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए मिलीभगत करते हुए एक महीने देरी से लाइसेंस रिन्यू किया। सेना ने 13 मार्च 2018 को ही लाइसेंस नवीनीकरण का आवेदन दिया था। नियमानुसार 31 मार्च को लाइसेंस रिन्यू कर देना चाहिए था। पर इसे एक मई 2018 को रिन्यू किया गया। आर्मी डिपो की कैंटीन में एक महीने बिना लाइसेंस के शराब बिकती रही।
इस तरह से हुआ नुकसान
ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज किए गए प्रकरण में प्रारंभिक रुप से तीन करोड़ रुपए के नुकसान की बात सामने आयी थी। इसमें सिर्फ जबलपुर में ही सरकार को 90 लाख रुपए के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा था। दरअसल प्रदेश के सेना के आठ डिपो से कैंटीनों में शराब भेजने के लिए थोक का लाइसेंस लिया जाता है। लाइसेंस के अभाव में जहां सरकार को यह नुकसान हुआ वहीं शराब ठेकेदार को इतनी ही राशि का फायदा हुआ है। सूत्रों की माने तो लाइसेंस अटकाने का काम ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए ही किया गया था। ऐसे में सेना के जवानों को कैंटीन की कम कीमत वाली शराब की जगह बाजार से ज्यादा कीमत पर शराब खरीदनी पड़ी। इससे ठेकेदार मुनाफे में रहे और सरकार को घाटा हुआ। अब जब ईओडब्ल्यू ने मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है उसके बावजूद भी दुबे को विभाग के सीनियर अफसर बचाने में लगे हुए है।