नक्सली जिले की जगह अब शहद के रूप में पहचाना जाएगा बालाघाट

नक्सली जिले

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही बालाघाट को नक्सल प्रभावित जिले के रूप में अब तक देश में जाना जाता हो, लेकिन अब उसकी दूसरी पहचान शहद उत्पादक के रूप में होने जा रही है।  इसकी वजह है अब तक इस जिले में शहद का उत्पादन खूब होने के बाद भी उसे पहचान नहीं मिल पा रही थी। इसकी वजह है अब तक बिचौलिए शहद को औने-पौने दामों पर खरीदकर बड़ी कंपनियों को बेच देते थे। कंपनियां उसे अपने नाम से बेच दिया करती हैं, लेकिन अब इस शहद का उत्पादन से लेकर बेचने तक का काम यहां के लोगों द्वारा ही किया जाएगा। इसके लिए वन विभाग द्वारा यहां पर पहली व्यावसायिक उत्पादन यूनिट वन परिक्षेत्र दक्षिण सामान्य चरेगांव में शुरू की गई है। इसकी खास बात यह है कि इसका संचालन 15 ग्रामों में गठित किए गए 15 स्व सहायता समूह के 300 सदस्यों द्वारा किया जाएगा। खास बात यह है कि इस शहद के विक्रय से होने वाले लाभ का हिस्सा भी इन्हीं लोगों को ही मिलेगा। यह वो जिला है जो पूरी तरह से वनआच्छादित है। जिले के आदिवासियों द्वारा बड़ी मात्रा में लगातार आठ माह तक जंगल से नवंबर से जून तक शहद को एकत्रित करने का काम किया जाता है। इसके बाद उसे बिचौलियों को बेच दिया जाता है। यह बिचौलिए इस शहद को कम दामों पर खरीदकर उसे कंपनियों को बेच कर मुनाफा कमाते हैं। इसे देखते हुए ही अब इस तरह के प्रयास शुरू किए गए हैं। इससे न केवल बालाघाट जिले को नई पहचान मिलेगी, बल्कि शहद को एकत्र करने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों को उसके सही दाम मिलने की वजह से आर्थिक लाभ भी मिल सकेगा। खास बात यह है कि इस शहद की ब्रांडिंग का काम वन विभाग द्वारा किया जाएगा। इसके लिए ही वन विभाग द्वारा प्रधानमंत्री वन धन शहद प्रसंस्करण केंद्र की शुरुआत की गई है। जंगल से एकत्रित की जाने वाली यह शहद न केवल पूरी तरह से शुद्ध होती है बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर होती है।

Related Articles