
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। बीते दो साल से प्रदेश का ग्वालियर -चंबल अंचल देशभर में गाहे-बगाहे चर्चा में बना रहता है। इसकी वजह है प्रदेश की राजनीति में इस अंचल का दबदबा और असमय घटने वाली घटनाएं। इसी इलाके से भाजपा के करीब आधा दर्जन दिग्गज नेता आते हैं। इन नेताओं का अब तक केंद्र और प्रदेश में पूरी तरह से प्रभाव माना जाता है, लेकिन अब श्रीमंत के भाजपा में आने के बाद न केवल उनका प्रभाव तेजी से कम हो रहा है, बल्कि कई नेताओं के तो अस्तित्व पर ही खतरा पैदा होने लगा हैं। इसकी वजह से अब यह सभी नेता एक दूसरे के विरोधी होने के बाद भी लामबंद होने लगे हैं।
हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले श्योपुर के दौरे के समय जिस तरह से केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का विरोध हुआ। उसे इस से ही जोड़कर देखा जा रहा है। इसे प्रशासनिक कम और राजनैतिक चश्में के रूप में अधिक देखा जा रहा है। दरअसल इसी अंचल के अलग-अलग इलाकों से तोमर के अलावा प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ,पूर्व मंत्री द्वय अनूप मिश्रा और जयभान सिंह पवैया भी आते हैं। यह वे सभी नेता हैं जिनका पार्टी में अपना एक कद है।
करीब दो साल पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले श्रीमंत उस समय अपने लाव लश्कर को भी भाजपा में ले आए थे। पूर्व से तय की गई शर्तों के तहत उनके लाव लश्कर में शामिल सभी तत्कालीन विधायकों को उपचुनावी मैदान में भाजपा ने टिकट देकर उतारा था, किस्मत देखिए की आम विधानसभा चुनाव के बाद उपचुनाव में भी श्रीमंत के वे समर्थक चुनाव जीतने में सफल रहे, जो भाजपा के दिग्गज इलाकों से फिर से चुनावी मैदान में उतरे थे। इसकी वजह से मूल रुप से भाजपा के दिग्गज नेताओं का प्रभाव अपने इलाके के साथ ही सत्ता व संगठन में तेजी से कम हो रहा है। यह नेता जानते हैं कि जिस तरह से केन्द्रीय सत्ता व संगठन की राजनीति में श्रीमंत का कद तेजी से बढ़ रहा है, उससे इन नेताओं के लिए अब अगली बार श्रीमंत समर्थक मौजूदा विधायकों की जगह टिकट मिलना भी मुश्किल है। यही वजह है कि अब यह नेता दिखावे के रुप में तो श्रीमंत के साथ ही खड़े दिखते हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर उनके खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। यह वे नेता हैं जो अंचल की राजनीति में पहले एक दूसरे के विरोधी के रुप में जाने जाते रहे हैं।
सरकार लगी मरहम लगाने में
अपने ही इलाके में भारी विरोध एवं मीडिया रिपोर्टों में जिस तरह से उन पर निशाना साधा गया है उससे तोमर बेहद नाराज बताए जा रहे हैं। उनकी नाराजगी को देखते हुए आनन-फानन में सरकार द्वारा कलेक्टर, एसपी के अलावा कई अन्य अफसरों का तबादला कर इसे प्रशासनिक अक्षमता बताने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार की इस कार्यवाही को उन्हें खुश करने वाला कदम माना जा रहा है। खास बात यह है कि इसके तत्काल बाद जिस तरह से केंद्रीय मंत्री श्रीमंत ने इस अंचल का दौरा किया और उसमें शांती बनी रही उसे भी इससे से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक हलकों में बाढ़ पीड़ितों की राहत के नाम पर हो रहे दौरों व घटनाक्रमों को अब पूरी तरह से वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा जाने लगा है।
श्रीमंत पकड़ और मजबूत करने में जुटे
इसी अंचल में पीढ़ी दर पीढ़ी राजनीति करने वाल केंद्रीय मंत्री श्रीमंत अब अपनी पकड़ को और मजबूत करने में लगे हुए हैं। दरअसल वे पूरी तरह से जानते हैं कि कांग्रेस में रहते उनके घोर विरोधी रहे भाजपा के प्रभावशाली नेता भी उन्हीं के अंचल से आते हैं। इस अंचल में पूर्व से ही भाजपा के दिग्गज नेता और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का उनके भाजपा में आने से पहले तक एकछत्र रहा है। अब उन्हें भी श्रीमंत से चुनौती मिलती दिख रही है। भाजपाई बनने के बाद से जिस तेजी से श्रीमंत कद बढ़ा है उसकी वजह से वे डेढ़ साल के अंदर ही तोमर के समकक्ष खड़े हो चुके हैं। यही वजह है कि अब उनके अंचल में न केवल प्रदेश सरकार को जिलों के प्रभारी मंत्री के रुप में तैनती करते समय श्रीमंत की पसंद का पूरा ख्याल रखना पड़ा है, बल्कि प्रशानिक अमले की तैनाती में भी श्रीमंत अपनी पसंद नापसंद का ख्याल रखवा चुके हैं। यही असर उनके द्वारा संगठन में भी दिखाया जा चुका है। यही वजह है कि अब इस अंचल के नेताओं को अपनी पुरानी अदावद भुलाकर न केवल एक होना पड़ रहा है, बल्कि अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। अब हालत यह है कि तोमर के बेहद करीबी माने जाने वाले मुख्यमंत्री तक को दोनों ही नेताओं को एक साथ लेकर चलने में पसीना बहाना पड़ रहा है।
मीडिया के निशाने पर भी आए तोमर
श्योपुर के मामले में जिस तरह से मीडिया ने तोमर को लेकर खबरें चलाई हैं, उसे एक साजिश के रुप में देखा जा रहा है। प्रदेश की मीडिया व जनता का रुख देखकर राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला इसलिए और अधिक गंभीर हो जाता है, क्योंकि तोमर प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष के अलावा कई प्रभावशाली मंत्रालयों की लंबे समय तक कमान संभाल चुके हैं, जिनमें जनसंपर्क विभाग भी शामिल है। यही नहीं वे पूर्व की मोदी सरकार के बाद इस बार भी कई महकमों के मंत्री रहने के साथ अब कृषि जैसा महत्वपूर्ण विभाग देख रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की माने तो उन्हें निशाना बनाने के पीछे उन्हें कमजोर करने का प्रयास है। यह घटनाक्रम भी ऐसे समय हुआ है , जब संसद सत्र के बीच किसान आंदोलन भी चल रहा है। खास बात यह है कि यह घटना ऐसे समय हुई है, जब मुख्यमंत्री एवं गृह मंत्री बाढ़ ग्रस्त इलाकों का दौरा कर रहे थे उसके बाद भी इस तरह के हालात बने तो उस पर सवाल उठना लाजमी हैं।