
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। जैसे- जैसे दवा दी मर्ज वैसे ही वैसे बढ़ता गया, यह कहावत पूरी तरह से प्रदेश की बिजली कंपनियों पर पूरी तरह से लागू होती है। इन कंपनियों को कर्ज मुक्त कर फायदे में लाने के लिए अब तक कई सौ अरब रुपए की मदद दी गई, लेकिन अपने कुप्रबंधन की वजह से वे घाटे के साथ ही कर्ज से बाहर ही नहीं आ पा रही है। इसकी वजह से न केवल सरकार पर बल्कि आम ईमानदार उपभोक्ताओं पर लगातार भारी पड़ रहा है।
यही वजह है कि कंपनियों द्वारा लगातार लिए जाने वाले कर्ज की वजह से इन कंपनियों द्वारा लिए गए कर्ज पर हर साल नौ सौ करोड़ रुपए तो ब्याज के रूप में देना पड़ रहे हैं। खास बात यह है कि इसकी वसूली भी कंपनियों द्वारा आम उपभोक्ताओं से की जा रही है। इसके बाद भी इन कंपनियों का प्रबंधन अपनी कार्यशैली सुधारने को तैयार नहीं है, जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। खास बात यह है कि सरकार भी इन बिजली कंपनियों के लगातार घाटे को कम करने की लगाम कसने में नाकाम साबित हो रही है। इसकी वजह से उधार की रकम पर बढ़ने वाले ब्याज का बोझ जनता पर बढ़ता ही चला जा रहा है। इन कंपनियों को सरकार की ओर से एक दशक में करीब 26 हजार करोड़ रुपए की मदद दी जा चुकी है, लेकिन इसके बाद भी यह कंपनियां औसतन 40 हजार करोड़ से अधिक की कर्जदार बनी हुई हैं। इसके बाद भी यह कंपनियां कुप्रबंधन की वजह से आत्मनिर्भर नहीं बन पा रही हैं। हालत यह है कि आय वृद्धि और फिजूलखर्ची पर रोक के कदम उठाने की जगह कंपनियों द्वारा लगातार कर्ज लेने के प्रयास किए जा रहे हैं।
हर साल औसतन लिया जा रहा 6 हजार करोड़ का कर्ज
बिजली कंपनियां लाइन लॉस कम कर अपना घाटा कम करने के प्रयासों की जगह कर्ज लेने के प्रयासों में ही लगी रहती है, जिसकी वजह से हर साल औसतन 6 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा रहा है। इसकी वजह से इन कंपनियों को कर्ज पर औसतन हर साल अकेले नौ सौ करोड़ रुपए का ब्याज देना पड़ रहा है। खास बात यह है कि यह कर्ज भी कंपनियों द्वारा सरकार की गारंटी पर लिया जाता है। इसमें भी चौंकाने वाली बात यह है कि यह तीनों बिजली कंपनियां अलग-अलग ब्याज दर पर कर्ज लेती हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने अब राज्य के अतिरिक्त कर्ज लिमिट में भी चार प्रमुख मापदंडों में बिजली इंफ्रास्ट्रक्चर एक मापदंड तय किया हुआ है, जिसके बहाने बिजली सेक्टर में कर्ज तेजी से लिया जा रहा है।
केंद्र के मॉडल का लिया सहारा
केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में उदय योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत राज्य सरकार को बिजली सेक्टर का 75 फीसद कर्ज समाप्त करना था। इसका सहारा लेते हुए प्रदेश की शिव सरकार ने बिजली कंपनियों के 35 हजार करोड़ के कर्ज में से 26 हजार करोड़ का कर्ज सरकार ने चुकाने के लिए हर साल औसत 7 हजार करोड़ रुपए कंपनियों को पूंजी मद में देना तय किया। इसकी दो किस्त 2017 व 2018 में तुरंत दे दी गई लेकिन बिजली कंपनियों ने फिर भी कर्ज वृद्धि जारी रखी।