अब ओवरऑल नंबर-1 बनेगा मप्र

शिवराज सिंह चौहान
  • शिवराज हैं तो मुमकिन है
  • 2023 तक मप्र बनेगा देश का सिरमौर

जिद करो और दुनिया बदलो की तर्ज पर मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो ठान लेते हैं वो करके दिखाते हैं। उन्होंने मप्र को ओवरऑल नंबर-1 बनाने की घोषणा की है। इसके लिए उन्होंने जमीनी तैयारी भी कर ली है। वैसे अपने 14 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने मप्र को कई मामलों में नंबर-1 राज्य बना दिया है। संभावना जताई जा रही है कि 2023 तक मप्र देश का सिरमौर बन जाएगा।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
2005 में जब शिवराज सिंह चौहान मप्र के मुख्यमंत्री बने थे तो मप्र बीमारू राज्यों में गिना जाता था। यहां सडक़, बिजली, पानी की समस्या तो थी ही स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति भी बदतर थी। किसान बेहाल तो लोग दो वक्त की रोटी के मुहाल थे। आज स्थिति यह है कि मप्र सारी समस्याओं का समाधान कर विकसित राज्य की श्रेणी में आ गया है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी विकास के उदाहरण के रूप में मप्र को प्रस्तुत किया जाता है। दरअसल, यह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नीति और नीयत के कारण ही संभव हो पाया है।
अपने तीन स्वर्णिम कार्यकाल के बाद जबसे शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर यह चौथा कार्यकाल संभाला है परिस्थितियां और सियासी स्थिति पिछली तीन पारियों जैसी नहीं हैं। यह एक कांटों भरा ताज जैसा है। इसके बावजूद शिवराज सिंह चौहान ने एक तरफ अपनी टेंपरेरी सरकार को परमानेंट सरकार में तब्दील किया तो दूसरी तरफ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ-साथ भाजपा नेताओं के साथ बैलेंस बनाए रखा। वहीं कोरोना संक्रमण की 2 लहरों से प्रदेश को निकालकर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति को और मजबूत किया है। इस दौरान हर व्यक्ति को रोटी और रोजगार भी मुहैया कराया गया। यही कारण है कि आज मप्र देश के अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा बन गया है।

मप्र को अव्वल आने की आदत डाली
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने मप्र को अव्वल आने की आदत डाली है। यह शिवराज हैं तभी मुमकिन है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने विकास कार्यों के लिए शिवराज सरकार को 10 में से 10 अंक दिए। वे कहते हैं कि हमारी सरकार ने कोरोना महामारी रोकने में सबसे पहले सफलता पाई। प्रदेश गेहूं उपार्जन में अव्वल, स्व-सहायता समूहों को कर्ज देने में दूसरे, जल जीवन मिशन के कार्यों में तीसरे, आत्मनिर्भर प्रदेश के मामले में दूसरे, फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों को कर्ज देने के मामले में पहले, आयुष्मान कार्ड बनाने में देश में पहले स्थान पर रहा। स्वच्छता, स्मार्ट सिटी में प्रदेश का कोई सानी नहीं है। केंद्र सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन करने में मप्र सबसे आगे है।
मप्र के 2018 विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह को सियासी तौर पर गहरा झटका ही नहीं लगा था बल्कि सत्ता भी चली गई थी। पिछले साल मार्च में कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे के बाद वह सत्ता में लौट आए थे, लेकिन उनके पास अल्पमत की सरकार थी। राज्य की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को 19 सीटों पर जीत मिली जबकि कांग्रेस को 9 सीटों से संतोष करना पड़ा था। शिवराज सिंह चौहान ने इस तरह सदन में सुविधाजनक बहुमत हासिल कर अपनी सरकार की नींव मजबूत की और साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी पार्टी कांग्रेस की सत्ता में वापसी के सारे मंसूबों को ध्वस्त करने का काम किया। शिवराज सिंह चौहान ने 2018 में गंवाई सरकार को 2020 में फिर से सत्ता में परमानेंट करने का काम किया, जो बड़ी उपलब्धि के तौर पर माना जा रहा है।

टीकाकरण में शीर्ष पर
मप्र में करीब 15 साल में ऐसे कई अभियानों की सफलता का देश गवाह रहा है, जो सरकारी होकर भी जनभागीदारी की मिसाल बने और सफलता प्रदेशवासियों के खाते में गई। इनके पीछे एक ही नाम रहा- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। हालांकि कांग्रेस ऐसे आयोजनों की आलोचना के लिए चौहान को इवेंट मैनेजमेंट सीएम कहती रही है। इस बार चौहान के खाते में कोरोना टीकाकरण में लक्ष्य से 67 प्रतिशत आगे जाते हुए पूरे देश में एक दिन में सबसे अधिक टीकाकरण में शीर्ष रहने की उपलब्धि है। दरअसल, चौहान ने मार्च 2020 में चौथी बार प्रदेश की कमान सम्हाली तो प्रदेश में कोरोना दस्तक दे चुका था। वह राजभवन में शपथ ग्रहण कर सीधे मंत्रालय पहुंचे और कोरोना से मुकाबले के लिए तैयारियों में प्रशासनिक टीम के साथ जुट गए। लॉकडाउन की सख्ती के साथ लोगों को जरूरी सामग्री मुहैया कराने की व्यवस्था हो या सैंपल के बाद संक्रमित को लेने पहुंची टीम पर हमले, चौहान हर मोर्चे पर डटे रहे। प्रदेश के गरीबों को राहत से लेकर प्रवासियों की मदद और मप्र के बाहर फंसे विद्यार्थियों, श्रमिकों व गरीबों की वापसी तक कठिन चुनौतियों से निपटते रहे। टीम के साथ तालमेल से लेकर प्रदेश की जनता को जोड़ लेने का कौशल ही किसी भी अभियान की सफलता का शिवराज फॉर्मूला है। लाड़ली लक्ष्मी से लेकर संबल योजना तक, तो प्रदेशव्यापी पौधरोपण से लेकर खाद्यान्नों की रिकॉर्ड पैदावार तक, स्वच्छता से लेकर टीकाकरण तक देश में शीर्ष पर रहने के पीछे चौहान का यही कौशल काम करता है।
कोरोना की पहली लहर से मप्र को उबारने की कोशिशों पर लापरवाही भारी पड़ गई और दूसरी लहर ने दस्तक दे दी। इस बीच जब टीकाकरण की शुरुआत हुई, तो चौहान ने इसे जनअभियान बनाने की चुनौती स्वीकार कर ली। जब पंजाब, दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्य टीकाकरण को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे थे, तब मप्र में चौहान अपनी टीम के साथ वृहद अभियान का खाका खींच रहे थे। साथ ही सहयोग के लिए धर्म, समाज, संगठन और मीडिया के संपर्क में बने रहे। इसी का नतीजा रहा कि एक दिन में सर्वाधिक टीकाकरण में मप्र ने शीर्ष स्थान हासिल किया है। 15 साल से अधिक के मुख्यमंत्रित्व काल में चौहान ने जनहित के कई अभियानों को सरकारी आयोजन के टैग से बाहर निकालकर जनउत्सव बनाया है, जिससे ये सफल भी रहे हैं। कोरोना टीकाकरण को सख्ती से लागू करने के बजाय चौहान ने इसे उत्सव का स्वरूप देकर पूरे देश, विशेषकर उन राज्यों को संदेश दिया है, जो टीकाकरण को लेकर तब भी उदासीन बने हुए हैं, जब तीसरे लहर का अंदेशा है।

खेती-किसानी में कोई मुकाबिल नहीं
शिवराज सिंह चौहान खेती को लाभ का धंधा बनाने के अभियान में सफल हो चुके हैं, जिसका परिणाम रहा कि पांच वर्षों तक मप्र को फसल की अधिक पैदावार के लिए कृषि कर्मण अवार्ड मिला, वहीं पिछले साल गेंहू की पैदावार में मप्र ने पंजाब को पछाड़ दिया। कोरोना काल में किसानों में भरोसा जगाने के चलते उपार्जन भी भरपूर हो सका। पिछले कार्यकाल में चौहान ने नर्मदा परिक्रमा यात्रा कर नदियों, जलस्रोतों के संरक्षण और पर्यावरण के लिए व्यापक पैमाने पर पौधरोपण को जनअभियान बना दिया था।
शिवराज चौहान खुद को किसान हितैषी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शिवराज सरकार ने इस बार के कार्यकाल में प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों के खातों में मुआवजा राशि भेजी। किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना की ही तरह राज्य के किसानों को अतिरिक्त चार हजार रूपए प्रतिवर्ष सम्मान निधि दी। इस तरह से किसानों को अब 10 हजार रुपए सालाना मिल रहा है। इसके अलावा किसानों को बिना ब्याज दर पर फसल ऋण उपलब्ध कराने की योजना भी शुरू की गई है। राज्य में अधिकतर फसलों का एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर है। यह उन चंद राज्यों में शामिल है जहां सरकार ने किसानों की उपज का एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए भावांतर योजना लागू कर रखी है। यानी यदि किसानों को अपनी उपज एमएसपी से कम दर पर बेचनी पड़े तो मूल्य के अंतर की भरपाई सरकार करती है। यह वजह है कि किसान प्रधान प्रदेश होने के बावजूद एमपी में किसानों ने पंजाब और हरियाणा की तरह किसान आंदोलन खड़ा नहीं किया।

स्वच्छता में गाड़ा सफलता का झंडा
मप्र स्वच्छता में लगातार अपनी सफलता का झंडा गाड़ रहा है। स्वच्छता अभियान में भी इंदौर लगातार शीर्ष पर है, वहीं भोपाल भी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा अभियान को उत्सव बनाने से गैर एनडीए शासित प्रदेशों को सबक लेना चाहिए। देश के ‘नगरपालिका प्रदर्शन सूचकांक 2020’ में इंदौर ने 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में शीर्ष स्थान हासिल किया है। इंदौर नगर निगम आयुक्त प्रतिभा पाल ने कहती हैं कि नगरपालिका प्रदर्शन सूचकांक में इंदौर के शीर्ष स्थान हासिल करने से हमारा हौसला बढ़ा है और हम बेहतर काम के लिए प्रेरित हुए हैं। हम बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कई अहम परियोजनाएं पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। स्थानीय नागरिकों को अलग-अलग सेवाओं की सुविधाजनक आपूर्ति की दिशा में भी हमने अच्छा काम किया है। नगरपालिका प्रदर्शन सूचकांक की स्पर्धा में हमें इन कारकों का फायदा मिला। इस श्रेणी में दूसरा स्थान सूरत और तीसरा स्थान भोपाल ने हासिल किया। ये नतीजे ऐसे समय घोषित किए गए हैं, जब लगातार चार बार देश के सबसे साफ शहर का खिताब अपने नाम कर चुका इंदौर वर्ष 2021 के आसन्न स्वच्छता सर्वेक्षण में जीत के इस सिलसिले को कायम रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। केंद्र सरकार के वर्ष 2017, 2018, 2019 और 2020 के स्वच्छता सर्वेक्षणों के दौरान इन्दौर देश भर में अव्वल रहा था। मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इस शहर की मौजूदा आबादी 30 लाख से ज्यादा आंकी जाती है।
यही नहीं स्मार्ट सिटी की रैंकिंग में भी मप्र का दम दिखा है। राज्यों की कैटेगरी में मप्र यूपी के बाद दूसरे नंबर पर जगह बनाने में कामयाब रहा है। प्रदेश के पांच शहरों को विभिन्न श्रेणियों में 11 पुरस्कार मिले हैं। जबकि सबसे खास बात यह रही कि देश के स्मार्ट शहरों में इंदौर नंबर-1 बन गया है। स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत पूरे देश में फिलहाल 100 स्मार्ट सिटी पर काम किया जा रहा है। जबकि सरकार ने 4 हजार स्मार्ट सिटी विकसित करने का लक्ष्य बनाया है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से जारी सूची में विभिन्न कैटेगरी में मप्र के खाते में भी कई पुरस्कार आए हैं। पिछले चार बार से स्वच्छता में नंबर वन इंदौर शहर वैक्सीनेशन में भी नंबर वन बन चुका है। इसके साथ ही स्मार्ट सिटी की सूची में देश में इंदौर नंबर वन बना है। इसे सूरत के साथ संयुक्त रूप से पहला पुरस्कार मिला है। इसके साथ ही इंदौर के खाते में कई पुरस्कार रहे। इंदौर की स्मार्ट सिटी में बाधा बनी 56 दुकानों की भी काया पलटकर इंदौर ने उपलब्धि हासिल की है। 56 दुकान पर अक्सर ही जाम लगा रहता था, लोग परेशान रहते थे। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत इसे 56 दिन में ही पूरा कर लिया गया। यहां पैदल चले के लिए फुटपाथ समेत अन्य सुविधा जोड़ दी गई। सुविधा बढ़ीं तो बाजार में हर दिन 6 हजार की बजाय 15 हजार लोग आने लगे। रेवेन्यू भी बढऩे लगा। इंदौर ने इंटिग्रेटेड कंट्रोल सेंटर भी बनाया, इसका फायदा प्रापर्टी और वाटर कलेक्शन में, कोरोनाकाल में सीसीटीवी से पूरे शहर पर निगरानी समेत ट्रैफिक सिस्टम मैनेजमेंट आदि की सुविधा हुई। मप्र के भोपाल, सागर, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर को भी अलग-अलग कैटेगरी में कुल 11 पुरस्कार मिले हैं। मप्र के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह कहते है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विकास की लगातार कोशिशों के चलते ये शहर इस सफलता को हासिल कर सके।

युवाओं-आदिवासियों पर फोकस
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने चौथे कार्यकाल में सबसे अधिक फोकस युवाओं और आदिवासियों पर किया है। दरअसल, कोरोना संक्रमण का सबसे अधिक असर युवाओं पर पड़ा है। इसलिए उन्होंने प्रदेश की सरकारी नौकरियों को सिर्फ और सिर्फ प्रदेश के युवाओं के लिए 100 फीसदी आरक्षित कर दिया। इतना ही नहीं शिवराज सिंह ने अधिकारियों को सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों पर भर्ती का निर्देश दिया था। गृह, राजस्व, जेल, लोक निर्माण, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विभागों में खाली पड़े पद भरे जा रहे हैं। वहीं, शिवराज सरकार आदिवासी समुदाय के बीच दोबारा से अपनी जड़ें जमाने के लिए तमाम कवायद करती नजर आई है। सरकार ने प्रदेश में साहूकारों के कर्ज से आदिवासी समुदाय को मुक्ति दिलाने के लिए कानून बनाया है। साथ ही सरकार ने आदिवासियों के 15 अगस्त 2020 से पहले के सभी कर्जे माफ कर दिए हैं। इसके अलावा प्रदेश में बिना लाइसेंस के कोई साहूकार किसी व्यक्ति को कर्ज नहीं दे सकेगा और ना ही उसकी वसूली कर सकेगा। सिर्फ रजिस्टर्ड साहूकार ही कर्ज दे सकेंगे। सरकार ने अनुसूचित जनजाति मुक्ति विधेयक और साहूकारी संशोधन विधेयक 2020 को पारित कराया है। ऐसे में अब कोई साहूकार दबाव डालता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी।

शिवराज अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भाजपा की कार्य संस्कृति का अहम हिस्सा रही है, जिसे पार्टी अब राज्य सरकारों के बीच लाने की कवायद करने जा रही है। भाजपा शासित राज्य सरकारों के बीच जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रतिस्पर्धा के संकेत खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिए हैं। उन्होंने शिवराज सरकार की प्रशंसा करते हुए स्पष्ट किया है कि भाजपा शासित राज्यों के बीच ऐसी कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की ऐसी प्रतिस्पर्धा हो, जिससे गरीब, श्रमिक, किसान, महिला व कमजोर वर्ग का कल्याण हो। वह जानते हैं कि ऐसे में सत्ता और संगठन भी मजबूत होंगे। नड्डा ने शिवराज सरकार के सेवा, समर्पण और सहयोग की तारीफ की, तो उसमें पार्टी के दूसरे राज्यों में सरकारों को प्रोत्साहित करने का भाव निहित था। उन्हें पता है कि यदि अधिकतर राज्यों में जन कल्याणकारी योजनाओं का मप्र जैसा उत्तम क्रियान्वयन होगा, तो गरीब, मजदूर, महिला और किसानों कल्याण के नए युग की शुरुआत होगी। ऐसे ही मौके हैं, जब शिवराज अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकल जाते हैं। समाज के हर वर्ग की चिंता करना और कल्याण की योजनाएं बनाना, उन्होंने अपने पहले ही कार्यकाल से शुरू कर दिया है, जिसके चलते वह 2018 तक सत्ता में बने रहे। शिवराज की सत्ता संचालन की शैली ही ऐसी है, जिसमें गांव, गरीब, गौमाता, बच्चे, महिलाएं और उपेक्षित तबके को प्राथमिकता मिलती रही है। शुरुआती दौर में जब वह विधायक या सांसद हुआ करते थे, तभी से गरीब व अनाथ बालिकाओं की शिक्षा व शादी का जिम्मा उठाते रहे हैं। बतौर सांसद वह गरीब कन्याओं का विवाह कराते थे। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने सबसे पहले लाड़ली लक्ष्मी और कन्यादान जैसी योजनाएं शुरू कीं। बालिकाओं के लिए मुफ्त शिक्षा से लेकर किताबें, गणवेश और साइकिल की सुविधा दी। बाद में ये सुविधाएं बालकों को भी दी जाने लगीं। जाति भेद दूर करते हुए उन्होंने मेधावी विद्यार्थी योजना शुरू की, जिसमें किसी भी वर्ग के मेधावी विद्यार्थी की उच्च शिक्षा की फीस प्रदेश सरकार देती है। 12वीं के प्रतिभावान बच्चों को मुफ्त लैपटॉप भी प्रदान किया जाने लगा।
महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के शिवराज ने महिला समूहों को आर्थिक मदद देकर बढ़ावा दिया, वहीं सरकारी भर्ती में 33 प्रतिशत और स्थानीय निकायों के चुनाव में 50 प्रतिशत तक आरक्षण देकर आगे आने का मौका दिया। बुजुर्गों के लिए मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना ने भी चौहान को अलग पहचान दी। कर्मचारी वर्ग की नाराजगी भी डीए बढ़ा कर दूर की गई, जबकि 15 महीने की कमलनाथ सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया था। शिवराज सरकार में जब भी कभी डीए का मसला आया, समय रहते निर्णय लेकर कर्मचारी हितों का ध्यान रखा गया। प्रदेश की आर्थिक स्थिति देखें तो दिग्विजय सरकार में अक्सर ओवर ड्राफ्ट की स्थिति बन जाती थी, जो शिवराज सरकार में देखने में नहीं आई। दो दशक पहले प्रदेश का बजट 35 हजार करोड़ रुपए के हुआ करता था, वो अब ढाई लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। कोरोना संकट काल में भी प्रदेश में राजस्व की क्षति नहीं होना बड़ी उपलब्धि है। शिवराज के कार्यकाल में इन्हीं कल्याणकारी योजनाओं ने भाजपा को मप्र में मजबूत बनाया, जिस पर अब केंद्रीय नेतृत्व ने भी मुहर लगाकर दूसरे राज्यों को संदेश दिया है।

मजबूरी का चेहरा शिवराज
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमेशा से भाजपा के लिए मजबूती का चेहरा रहे हैं। पिछले साल मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों द्वारा पाला बदल लिए जाने के बाद भाजपा की राज्य की सत्ता में वापसी हुई थी। शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। इससे पहले, शिवराज सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने दो बार लोकसभा और दो बार विधानसभा का चुनाव जीता था। वो पार्टी का भरोसेमंद चेहरा माने जाते रहे हैं। भाजपा के लौह पुरुष माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए रखा था। मप्र में भाजपा लगातार पंद्रह साल सत्ता में रही। इसमें तेरह साल सरकार का नेतृत्व शिवराज सिंह ने किया। लेकिन 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में उनके हाथ से सत्ता फिसल गई। लंबे समय बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई।
मगर कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पंद्रह माह ही चल पाई। भाजपा की सत्ता में वापसी के हालात ऐसे थे कि पार्टी नेतृत्व को शिवराज सिंह चौहान के विकल्प पर विचार करने का समय नहीं मिला। कोरोना संक्रमण फैलने के कारण यह हालात बने थे। वैकल्पिक चेहरे के तौर पर नरेंद्र सिंह तोमर का नाम चर्चा में था। लेकिन, राजनीतिक, प्रशासनिक हालात शिवराज के पक्ष में थे। 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी। शिवराज का चेहरा वोटरों के बीच लोकप्रिय चेहरा है। प्रदेश में वो मामा के नाम से भी जाने जाते हैं। इसका पार्टी को फायदा भी हुआ है। आज मप्र भाजपा का गढ़ इसलिए बना हुआ है कि शिवराज ने सत्ता और संगठन में समन्वय का ऐसा गठजोड़ बनाया है जो अटूट है।

दिग्विजय सिंह के दावे और हकीकत
गतदिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट कर कहा था कि मप्र भाजपा में मुख्यमंत्री के लिए केवल दो ही उम्मीदवार दौड़ में रह गए हैं। नरेंद्र मोदी के उम्मीदवार प्रहलाद पटेल और संघ के उम्मीदवार वीडी शर्मा। दरअसल दिग्विजय सिंह सियासी शगूफे छोड़ते रहते हैं। हकीकत यह है कि मप्र में शिवराज सत्ता, संगठन और संघ के सर्वमान्य नेता हैं। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आशीष अग्रवाल कहते हैं कि दिग्विजय सिंह तो वर्ष 2005 से ही शिवराज सिंह चौहान को बदले जाने का दावा कर रहे हैं?
दिग्विजय सिंह के बारे में यह सर्वविदित है कि वो बिना किसी आधार के सार्वजनिक बयानबाजी नहीं करते? मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल भाजपा के सभी नेताओं से दिग्विजय सिंह के रिश्ते बेहद अनौपचारिक हैं। दिग्विजय सिंह मप्र में नेतृत्व परिवर्तन के मसले को हवा देकर राज्य की भाजपा में कलह को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। शिवराज सिंह के पुन: मुख्यमंत्री बनने से कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदें खत्म सी हो गई हैं। मप्र में उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद कमान सम्हालने वाले शिवराज सिंह चौहान के नाम न सिर्फ सत्ता बचाने की उपलब्धि दर्ज है, बल्कि उन्होंने 15 साल तक भाजपा सरकार चलाई। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन महज 15 महीने में उसे जाना पड़ा और एक बार फिर कमान शिवराज के हाथों में है। कहा जाता है कि भाजपा में सभी अनुषांगिक संगठनों की समान भागीदारी के उद्देश्य से निर्णय लेने की परपंरा रही है। इसका असर सत्ता के अवसर में भी दिखता रहा है। साथ ही पार्टी ने जब राज्यों में सरकारें बनाने का मौका पाया तो उसने ऐसे चेहरों को सामने करने की कोशिश की, जो सत्ता संचालन में ऐसी मिसाल पेश कर सकें, जो कांग्रेस की सरकारों से बेहतर दिखाई दे, साथ ही संगठन को भी मजबूत करें। ऐसे में विधानसभा के एक ही कार्यकाल में अपनी ही सरकार में भाजपा को बदल-बदलकर तीन मुख्यमंत्री तक बनाने पड़े। हालांकि मप्र को छोड़ दिल्ली और उत्तर प्रदेश में ये नुकसान भरा जोखिम साबित हुआ। इसकी वजह यह है कि शिवराज समन्वयकारी नेता हैं। वे सत्ता का संचालन बिना भेदभाव के करते हैं। इसलिए वे आम जनता के साथ ही संघ और भाजपा संगठन के प्रिय नेता हैं।

भू-माफिया, गुंडों, अतिक्रामकों पर शिकंजा
शासन और प्रशासन का इकबाल तभी बुलंद होता है, जब अपराध और अपराधियों में कानून का खौफ दिखे। मप्र में इन दिनों माफिया की दुनिया में शासन-प्रशासन का खौफ दिखाई दे रहा है। प्रदेश में भूमाफिया, गुंडा तत्वों और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों पर पुलिस-प्रशासन ने शिकंजा कस दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर अभी तक करीब 10,000 करोड़ रुपए की जमीन मुक्त कराई गई है। भोपाल, इंदौर, खरगौन, टीकमगढ़, पन्ना, देवास, रायसेन और बड़वानी जिलों में जमकर कार्यवाही की गई। प्राकृति सौंदर्य और खनिज संपदा से भरपूर मप्र का जितना अवैध दोहन हुआ है उतना किसी और राज्य का नहीं हुआ है। 3,08,252 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले मप्र में लाखों हैक्टेयर जमीन भू माफिया और रसूखदारों ने सीलिंग एक्ट की आड़ में कब्जा कर रखी है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की एक बड़ी आबादी आज भी भूमिहीन है। भू-माफिया ने वन भूमि, चरनोई भूमि, ग्रीन बेल्ट, मरघट, कब्रिस्तान, खेल मैदान, नदी, तालाब आदि पर कब्जा कर रखा है। शासकीय अधिकारियों की मिलीभगत से बड़े स्तर पर गोलमाल किया गया है। सरकार अब सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की जिलावार सूची बनवाकर उनके कब्जे से जमीन छुड़वा रही है। प्रदेश में अपने रसूख के दम पर सरकारी जमीनों पर अवैध रुप से बड़े होटल, रेस्टोरेंट, गोदाम, घर बनाकर ठप्पे से रहने वाले भूमाफिया, ड्रग माफिया, शराब माफिया और अवैध कामों में लिप्त लोगों पर सख्त कार्यवाही की जा रही है। आपराधिक तत्वों को पनाह देने वाले इन असामाजिक तत्वों का साम्राज्य नेस्तनाबूत करने अब पुलिस और प्रशासन मिलकर सख्त कार्यवाही कर रहे है। ऐसे मामलों में राजनीतिक सिफारिशोंं को नजरअंदाज करने और पुलिस और प्रशासन को फ्री हैंड देने के अच्छे नतीजे सामने आए है।

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