
इंदौर/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। सिंडिकेट बनाकर शराब माफियाओं के मकड़जाल ने पूरे शहर में ड्रग्स का कारोबार चालू कर दिया है और आए दिन हत्याएं हो रही हैं। इस नशे के कारण इसमें आबकारी विभाग की सहमति हो सकती है या नहीं यह विचारणीय है?
अब विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इंदौर वृत्त की जितनी भी देशी-विदेशी शराब दुकानों के संचालन की जिम्मेदारी आबकारी अधिकारी से लेकर इन्सपेक्टरों को सौंपी गई है, वे इन दुकानों के माध्यम से ठेकेदारों के पैटर्न पर व्यापार कर, अपना निजी हित साध रहे है।
यही नहीं ये आबकारी विभाग के बड़े अधिकारी बड़े ठेकेदारों के साथ मिलकर अन्तरप्रांन्तीय व्यापार कर, अपनी निजी जेबें लबरेज कर रहे है, तो वहीं दुकानों के संचालन प्रभारी लोकल शराब माफियाओं की शरणमगच्छामी होकर निज हित साध रहे है। इस तरह आबकारी विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से, अपनी अपनी जुगत से ठेकेदारों के पैटर्न पर व्यापार कर शासन की राजस्व रॉयल्टी को जमकर चूना लगा रहे हैं। अब लगता है कि, अधिकारी ठेकेदार बन गये हैं, और माफियाओं को अपने संरक्षण में जमकर खुली लूट की खुली छूट ने इस क्षेत्र में अवैध शराब के गढ़ को मजबूत किये जा रहे है, जिसमें जगह जगह शराब की वे फैक्ट्रियां पुनर्जीवित हो गई, शराबबंदी वाले राज्यों में अवैध परिवहन पुलिस-आबकारी के संयुक्त तत्वावधान में शराब माफियाओं की पौ बारह हो रही है, जिसके चलते, शासन के टैक्स की करोड़ों रुपए की राजस्व हानि हो रही है। अब सब चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर आबकारी के दुकान प्रभारियों की पांचों उंगलियां घी में वाली कहावत चरितार्थ कर रही है।