
भोपाल/रवि खरे/ बिच्छू डॉट कॉम मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों के दस आदिवासी उत्पादों की जीआई टैगिंग के बाद अब इन उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान और मार्केट उपलब्ध कराया जाएगा। इसको लेकर प्रदेश के जनजातीय विभाग द्वारा योजना तैयार की गई है। खास बात है कि इस योजना के तहत यह उत्पाद ग्लोबल स्तर पर आॅनलाइन उपलब्ध हो सकेंगे। यही नहीं इन उत्पादों को टैग मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय मार्केट में इनकी कीमत और महत्व भी बढ़ जाएगा।
मध्य प्रदेश के जनजातीय इलाकों के इन उत्पादों की देश-विदेश में बिक्री होगी। बता दें कि जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग का काम उस खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाली वस्तुओं का दूसरे स्थानों पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में पहली बार दार्जिलिंग चाय को यह टैग मिला था। खास बात यह ह कि इस टैग को देने के लिए उस वस्तु की पूरी जानकारी के साथ उसकी भौगोलिक स्थिति को भी देखा परखा जाता है। प्रदेश के आदिम जाति विभाग की प्रमुख सचिव डॉ पल्लवी जैन गोविल के अनुसार प्रदेश के दस आदिवासी उत्पादों की जीआई टैगिंग कराई जा रही है। टैगिंग होने से इन उत्पाद से जुड़े आदिवासियों को रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिलेगी।
इन उत्पादों की होगी टैगिंग
छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट के भारिया जनजाति द्वारा संग्रहित औषधीय वन उत्पाद सफेद मूसली, अलीराजपुर जिले के भील-भीलाला का हस्तशिल्प पोतमाला व गलशन माला (आभूषण), डिंडोरी, अनूपपुर जिले का वाद्य यंत्र बाना, डिंडोरी के प्रधान जनजाति का वाद्य यंत्र चिकाड़ा, धार, झाबुआ जिले की चित्रकला पिथौरा पेंटिंग, झाबुआ जिले के हस्तशिल्प आदिवासी गुड़िया, अनूपपुर जिले का काष्ठ शिल्प मुखौटा, डिंडोरी और बालाघाट जिले का कृषि उत्पाद कोदो-कुटकी और बड़वानी, खरगोन जिले के भील-भीलाला का हस्तशिल्प बोलनी (ढक्कन वाली टोकरी)।