
स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021 की रिपोर्ट में खुलासा- किसान घटे, खेतिहर मजदूर बढ़े
अभी हाल ही में आई स्टेट ऑफ इंडियाज इनवायरमेंट 2021 की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि मप्र सहित देशभर में किसान घटे हैं और खेतिहर मजदूर बढ़े हैं। इसके बावजूद मप्र में फसलों का हर साल रिकार्ड उत्पादन हो रहा है और मप्र के किसान देश में सबसे खुशहाल हैं।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। करीब 15 साल पहले कृषि के क्षेत्र में सबसे पिछड़े राज्य के रूप में गिना जाने वाला मप्र आज देश का सबसे बड़ा अनाज उत्पादक राज्य बना हुआ है। हालांकि स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021 की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि देश के अन्य राज्यों की तरह प्रदेश में भी किसानों की संख्या घट रही है। लेकिन इसके बावजूद मप्र के किसान सबसे खुशहाल हैं। इसकी वजह यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी नीतियां किसान हितैषी हैं। वे खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए कृत-संकल्पित होकर किसानों को विभिन्न योजनाओं में लाभांवित कर रहे हैं। मुख्यमंत्री की दूरदर्शिता, संकल्पों को पूरी करने की प्रतिबद्धता और किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण के लक्ष्य का ही परिणाम है कि प्रदेश को राष्ट्रीय-स्तर पर दिया जाने वाला कृषि कर्मण अवार्ड लगातार सातवीं बार प्राप्त हुआ है। इन सबके बावजूद हकीकत यह है कि मप्र में किसान लगातार कम हो रहे हैं, जबकि कृषि श्रमिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आंकड़ों के अनुसार मप्र में कृषि क्षेत्र में करीब 31.6 मिलियन लोग कार्यरत हैं। जिनमें 22 मिलियन किसान हैं। कृषि कार्य में जहां 45 फीसदी किसान लगे हुए हैं,वहीं 55 फीसदी कृषि श्रमिक हैं। स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021 की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि मप्र सहित देशभर में किसानों की संख्या लगातार कम हो रही है।
कोरोना में खेती बनी सहारा
2019 के अंतिम सप्ताह में जब वैश्विक महामारी कोविड-19 ने दुनिया की देहरी पर दस्तक दी तो साल 2020 ने दुनिया की तस्वीर ही बदल दी। भारत में भी मार्च 2020 में इस महामारी ने अपना असर दिखाना शुरू किया और देखते ही देखते ही पूरा देश इसकी चपेट में आ गया। खासकर भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा, तब केवल कृषि ही ऐसा क्षेत्र था, जिसने देश की अर्थव्यवस्था को संभाला। मप्र में कोरोना महामारी के बीच गेहूं और धान का रिकार्ड उत्पादन हुआ। यही नहीं लॉकडाउन के बाद गांव लौटे लोगों को रोजगार देने में कृषि बड़ा संबल बनी। एक ओर जहां कृषि क्षेत्र को इस अभूतपूर्व प्रदर्शन के लिए याद किया जाएगा। वहीं संक्रमण की लहर के बीच मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को संबल देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसका परिणाम यह हुआ है कि जहां एक तरफ देश में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगातार गिरती हिस्सेदारी, किसानों की गिरती आमदनी, कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं, युवाओं का खेती किसानी से मोह भंग होना एवं जलवायु परिवर्तन की वजह से कभी बाढ़, कभी सूखे के प्रकोप के कारण किसान हमेशा मुसीबतों में ही रहा है, वहीं मप्र का किसान इस दौर में भी खुशहाल है।मप्र के कृषि मंत्री कमल पटेल कहते हैं कि इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी किसानों के प्रति दरियादिली बड़ा कारण है। वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सशक्त और चमत्कारिक नेतृत्व में सरकार ने किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय ने उन्हें खुशहाल बनाया है। सरकार ने कोरोना की पहली लहर की विपत्ति के बाद भी रिकॉर्ड गेहूं का उपार्जन कर पंजाब को पीछे छोडक़र प्रथम स्थान हासिल किया। चना और सरसों के उपार्जन की मात्रा 20-20 क्विंटल नियत की गई। एक दिन में समर्थन मूल्य पर उपार्जन की अधिकतम सीमा 25 क्विंटल को समाप्त किया गया। मंडियों के बाहर किसानों के घर से सौदा-पत्रक के आधार पर खरीदी करना सुनिश्चित किया गया। इलेक्ट्रॉनिक तौल-कांटे से तुलाई होने पर हम्माल-तुलावटी की राशि वसूलना बंद कराना सुनिश्चित कराया गया। सरकार ने वर्ष 2018 और 2019 की बीमित फसलों के 9 हजार करोड़ रुपए की बीमा राशि किसानों को दिलवाई। फसल बीमा कव्हरेज के लिए स्केल ऑफ फायनेंस को 75 प्रतिशत के स्थान पर 100 प्रतिशत किया गया। इससे किसानों को बड़ी राहत मिली है।
फसलों के नुकसान की भरपाई
मप्र में किसानों की खुशहाली की एक बड़ी वजह यह है कि यहां सरकार फसलों के नुकसान की भरपाई हर हाल में करती है। इससे यहां के किसान मौसमी प्रभाव के कारण खराब होने वाली फसलों की तनिक भी चिंता नहीं करते हैं। पिछले साल अतिवृष्टि से खराब हुई खरीफ फसलों का बीमा किसानों को पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा मिल सकता है। इसके लिए फसलों को हुए नुकसान का आकलन कराकर बीमा दावों को तैयार किया जा रहा है। इन्हें बीम कंपनियों को भेजा जाएगा। आगामी दो-तीन माह में प्रक्रिया पूरी करके बीमा की राशि सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा कराई जाएगी। प्रदेश में पिछले साल 44 लाख से ज्यादा किसानों ने खरीफ फसल का बीमा कराया था। पिछले साल अतिवृष्टि और रोग लगने की वजह से सोयाबीन की फसल सर्वाधिक प्रभावित हुई थी। इसके अलावा मूंग सहित अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचा था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए कृषि और राजस्व विभाग से सर्वे कराकर फसल बीमा और राजस्व परिपत्र पुस्तक के प्रविधान अनुसार राहत उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। इसके मद्देनजर सर्वे कराकर नुकसान का आकलन कराया जा चुका है। अब बीमा दावों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया चल रही है। बताया जा रहा है कि इस बार किसानों को बीमा पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का मिल सकता है। दरअसल, इस बार प्रदेश सरकार की पहल पर बीमा कराने के लिए किसानों को अतिरिक्त समय केंद्र सरकार ने दिया था।
यही वजह है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 44 लाख किसानों ने बीमा कराया थ। कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि किसान ज्यादा से ज्यादा संख्या में बीमा कराएं, इसके लिए सरकार ने प्रेरित किया था। पहली बार वनभूमि पट्टाधारकों को भी इसमें शामिल किया गया है। अतिवृष्टि से जितने भी किसानों की फसल खराब हुई थी, सबको अब बीमा का लाभ मिलेगा। इसके लिए विभाग प्रक्रिया तेजी के साथ प्रक्रिया कर रहा है।
किसानों के हित में कई कदम
शिवराज सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत अभियान के सपने को पूरा करने के लिए आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश बनाने की ओर अग्रसर है। किसान को आत्म-निर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा सभी संभव प्रयास किए जा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा निर्मित किए गए एग्रीकल्चर इन्फ्रा-स्ट्रक्चर फंड योजना के अंतर्गत ऋण प्रदाय किए जा रहे हैं। नवीन फूड प्रोसेसिंग ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) गठित किए जा रहे हैं। मण्डियों को आधुनिक बनाया जा रहा है। फूड पार्क, कोल्ड-स्टोरेज, साइलो, वेयर-हाउसों का निर्माण किया जा रहा है। प्रदेश में एक जिला-एक फसल योजना लागू की जाकर किसानों को बेहतर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। बासमती चावल, शरबती गेहूँ, होशंगाबाद जिले की तुअर दाल इत्यादि को एपीडा के माध्यम से जीआई टैग दिलाने की कार्यवाही की जा रही है।
दिलचस्प यह है कि एक ओर जहां हर साल सरकार खाद्यान्न का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन का जश्न मान रही है। वहीं, दूसरी ओर किसानों की संख्या कम हो रही है और कृषि श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है। आंकड़े बताते हैं कि भारत के 52 प्रतिशत जिलों में किसानों से अधिक संख्या कृषि श्रमिकों की है। बिहार, केरल और पदुचेरी के सभी जिलों में किसानों से ज्यादा कृषि श्रमिकों की संख्या है। उत्तर प्रदेश में 65.8 मिलियन (6.58 करोड़) आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन कृषि श्रमिकों की संख्या 51 फीसदी और किसानों की संख्या 49 फीसदी है। सरकार का दावा है कि वह 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देगी, लेकिन लगभग एक साल बचा है, अब तक सरकार यह नहीं बता रही है कि अब तक किसानों की आमदनी कितनी हुई है। जबकि किसानों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में खेती की लागत इतनी बढ़ गई है कि आमदनी दोगुनी होना तो दूर, कम हो गई है। गैर कृषि कायों में भी किसानों को फायदा होता नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि जानकार मानते हैं कि आमदनी घटने के कारण किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है। ऐसे में कॉरपोरेट की नजर अब कृषि क्षेत्र पर है और कृषि कानूनों में इस तरह की व्यवस्था की गई है, जिससे इस क्षेत्र में कॉरपोरेट का वर्चस्व बढ़ता जाएगा।
राज्यों में यह है स्थिति
राज्य कृषि क्षेत्र में कार्यरत आबादी (मिलियन में) कुल किसान (मिलियन में) किसान (प्रतिशत में) कृषि श्रमिक (प्रतिशत में)
उप्र 65.8 39 49 51
महाराष्ट्र 49.4 26.1 48 52
आंध्रप्रदेश 39.4 23.5 28 72
प बंगाल 34.8 15.3 33 67
बिहार 34.7 25.5 28 72
तमिलनाडु 32.9 13.9 31 69
मप्र 31.6 22 45 55
राजस्थान 29.9 18.5 73 27
कर्नाटक 27.9 13.7 48 52
गुजरात 24.8 12.3 44 56
ओडिशा 17.5 10.8 38 62
छत्तीसगढ़ 12.2 9.1 44 56
पंजाब 9.9 3.5 55 45
फिर भी श्रमिकों का टोटा
मप्र सहित देशभर में किसानों की संख्या घट रही है और खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ रही है, उसके बाद भी कृषि क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों का टोटा बना हुआ है। कोरोना आपदा के दौरान बीते एक साल में दो बार शहरों से मजदूरों के वापस गांवों को लौटने के हालात बन गए। इसके बावजूद गांवों में फसलों के कटाई जैसे तमाम खेती-किसानी के काम के लिए मजदूर नहीं मिल रहे या उनकी कमी है। लिहाजा, ये सवाल लाजिमी है कि आखिर क्या वजह है कि किसान और खेतिहर मजदूर खेती-किसानी से दूर होते चले जा रहे हैं? ये किसी से छिपा नहीं है कि औद्योगिक विकास, शैक्षिक विस्तार, सर्विस सेक्टर के विकास, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के सामूहिक प्रभाव की वजह से भारत में किसानों की संख्या कम होती जा रही है। हालांकि भारत अब भी कृषि प्रधान देश ही है, क्योंकि आज भी हमारी बहुत बड़ी आबादी खेती से इससे जुड़े काम-धंधों से ही अपनी रोजी-रोटी कमाती है। ये भी सच है कि बदलते दौर के साथ हमारे कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में भी सुधार आया है, लेकिन दूसरी ओर खेतिहर मजदूरों की संख्या और उनका शहरों तथा अन्य पेशों की ओर पलायन भी बढ़ा है। इसका खेती में बढ़ते मशीनीकरण से सीधा नाता है। कहीं मशीनीकरण इसलिए बढ़ा क्योंकि मजदूरों की उपलब्धता घट रही थी तो कहीं लागत को घटाने और कम वक्त में ज्यादा काम करने की जरूरत ने भी खेती का पारम्परिक ताना-बाना बहुत बदल दिया है।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड की 2016-17 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं। ये देश के कुल परिवारों का 48 फीसदी है। राज्यवार परिवार के औसत सदस्यों की संख्या का अलग-अलग होना स्वाभाविक है। लेकिन राष्ट्रीय औसत 4.9 सदस्य प्रति परिवार है।
जमींदारी का असर
एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल खेती योग्य जमीन का 54 फीसदी मालिकाना हक महज 10 फीसदी परिवारों के पास है। जाहिर है, इस जमीन पर खेती का दारोमदार या तो मशीनों पर है या फिर ऐसे भूमिहीन खेतिहर मजदूरों और बहुत छोटी जोत वाले किसानों पर, जिनके पास बाकी बची 46 फीसदी भूमि का मालिकाना हक है। लेकिन ये तबका बहुत बड़ा है। खेती-किसानी से जुड़े 90 फीसदी परिवार इसी तबके के हैं। कृषि प्रधान देश के विशाल आबादी की खेती पर ऐसी अतिशय निर्भरता की वजह से किसानों के करोड़ों परिवार आर्थिक बदहाली में जीने के लिए मजबूर हैं। उन्हें गांवों में नियमित रूप से रोजगार नहीं मिल पाता तो शहरों की ओर पलायन करना पड़ता है। इस तरह गांवों के खेतिहर मजदूर शहरों में पहुंचकर अन्य किस्म के मजदूर बन जाते हैं। शहरों में उन्हें अपेक्षाकृत बेहतर मजदूरी मिलती है। वैसी कमाई गांवों में है नहीं, क्योंकि इससे खेती की लागत बढ़ जाती है और मुनाफा इतना भी नहीं मिलता कि गुजारा हो सके। मजदूर की यही किल्लत मशीनों की मांग बढ़ाती है। मशीन के आते की खेतिहर मजदूरों की संख्या और बढ़ जाती है।
भारत में करीब 86 फीसदी छोटे और सीमान्त किसान हैं। इनके पास 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ से भी कम कृषि भूमि है। छोटी जोत के किसानों की परेशानी ये है कि अगर वो खेतिहर मजदूरों से काम कराते हैं तो फसल की लागत बढ़ जाती है और मुनाफा घट जाता है। इसीलिए छोटी जोत के किसान परिवार के बुजुर्गों और लाचार सदस्यों को छोडक़र शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। गांवों की सामाजिक ताना-बाना ऐसा है कि छोटी जोत वाले लोग औरों के खेतों में मजदूरी करना पसंद नहीं करते, इसीलिए गांव ही छोड़ देते हैं। छोटे किसान या खेतिहर मजदूर इसलिए भी घट रहे हैं क्योंकि खेती-बाड़ी में फसल की बुआई और कटाई के मौसम में कुछ दिनों के काम ज्यादा निकलता है। जबकि घर-परिवार चलाने के लिए मजदूरों को भी तो नियमित रोजगार की जरूरत होती है। लिहाजा, यदि खेतिहर मजदूर वापस गांवों की और खेती की ओर लौटना भी चाहें तो भी ये उनके लिए व्यावहारिक नहीं हो पाता। कुल मिलाकर, सारा चक्र ऐसा है, जिससे दिनों-दिन खेती-किसानी की चुनौतियां बदलती जाती हैं।
कृषि यंत्र बने जरूरी
इन दिनों खरीफ की फसलों की बुवाई का मौसम है। गांवों से मजदूरों की किल्लत की जानकारियां मिल रही हैं। प्रदेश के किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। मजदूरों की किल्लत की वजह से काम धीमा चल रहा है। ऐसे में सवाल है कि किसान करे तो करे क्या? इसका जवाब है कृषि यंत्रों का इस्तेमाल और अपनी खेती खुद करना। हालांकि, कृषि उपकरणों के बढ़ते प्रचलन से खेतिहर मजदूरों के लिए बचा-खुचा रोजगार भी कम होता चला जाएगा, लेकिन मशीनों के इस्तेमाल के बगैर लागत को काबू में रखना मुश्किल है। यही वजह है कि कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार तरह-तरह की सब्सिडी देती है और इन्हें बेचने वाली कंपनियां भी किसानों को किस्तों में भुगतान की सुविधा देती हैं।
मप्र सरकार प्रदेश में खेतों की जुताई, बुवाई, सिंचाई, फसल की कटाई और फिर उसके बेचने की पूरी व्यवस्था करती है। इसलिए मप्र में खेती लाभ का धंधा बन गई है। तमाम प्राकृतिक आपदा-विपदा के बाद भी मप्र का किसान खेती की ओर अग्रसर है। जबकि अन्य प्रदेशों में किसान भगवान भरोसे हैं। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन, कृषि, शहरों और बुनियादी ढांचे के लिए भूमि में बड़े पैमाने पर किया जा रहा बदलाव अब तक करीब 20 फीसदी भूमि को प्रभावित कर चुका है। वहीं हर साल दुनिया भर 1.2 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा भूमि सूखा, मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण की भेंट चढ़ जाती है। इसका मतलब है कि दुनिया में करीब 200 करोड़ हेक्टेयर भूमि की गुणवत्ता आज पहले जैसी नहीं रह गई है, उसमें गिरावट आ गई है। इसमें कुल कृषि भूमि का भी 50 फीसदी हिस्सा शामिल है। यही नहीं, हर साल शुष्क भूमि के हो रहे क्षरण के चलते दुनिया भर में सालाना 2,400 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो जाती है। जिसका सबसे ज्यादा असर खाद्य उत्पादन और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ रहा है। वहीं इन तमाम विषम परिस्थिति के बावजूद मप्र के किसान रिकार्ड अनाज उत्पादन कर मालामाल हो रहे हैं।
जैविक खेती को बढ़ावा
मप्र में कृषि लागत को कम करने के लिए सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। वहीं देश के अन्य राज्यों सहित विश्वभर में रासायनिक खादों का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। यदि 21वीं सदी की शुरुआत से देखें तो वैश्विक रूप से हर साल हो रहा औद्योगिक रसायनों का उत्पादन बढक़र दोगुना हो चुका है जोकि 230 करोड़ टन हो चुका है। जिसके 2030 तक 85 फीसदी बढऩे का अनुमान है। जिसका मतलब है कि यदि आज इस पर ध्यान न दिया गया तो भविष्य में मृदा प्रदूषण और बढ़ जाएगा। साथ ही जिस तरह से एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का इस्तेमाल कृषि में बढ़ रहा है और यह दवाएं मृदा को प्रदूषित कर रही हैं, खतरा कहीं ज्यादा बढ़ गया है। साथ ही प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल भी अपने आप में एक बड़ी समस्या है।
कृषि मंत्री कमल पटेल कहते हैं कि मप्र के किसानों को अब फूड प्रोसेसिंग से भी जोड़ा जा रहा है, जिससे उनके द्वारा उत्पादित कच्चे माल का उपयोग फूड प्रोसेसिंग में कर रोजगार भी बढ़ाये जायेंगे। जैविक खेती को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिले की उद्यानिकी फसल को पहचान दिलाने की कोशिशें भी प्रांरभ की गई हैं। किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए सहकारी बैंक का भरोसा बेहद जरूरी है। इस दिशा में मुख्यमंत्री ने 1500 करोड़ रुपये भरने का एलान कर दिया है। देश के करोड़ों किसानों के आत्मविश्वास, सम्मान, सुरक्षा और पारदर्शिता का नाम है फसल बीमा योजना। प्राकृतिक आपदाओं से फसल खराब होने का संकट हमारे देश मे लगातार बना रहता है। हमारे किसान और उनके परिवार के जीवन-निर्वहन का साधन खेती है। हम सभी भलीभांति जानते हैं कि प्राकृतिक आपदा के चलते भारत में किसानों को प्रतिवर्ष काफी नुकसान उठाना पड़ता है। बाढ़, आंधी, ओले और तेज बारिश से उनकी फसल खराब हो जाती है। उन्हें ऐसे संकट से राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की थी। यह योजना वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी बीमा सुरक्षा प्रदान करती है। शिवराज सिंह सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लाभ के साथ ही किसानों के लिए अन्य किसान कल्याण के कार्य भी लगातार करती रही है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के किसान को यह सुविधा भी दी है कि किसान चाहे तो अपने खेत से या अपने घर से भी अपनी उपज बेच सकते हैं। मुख्यमंत्री खेती को लाभ का धंधा बनाने को कृतसंकल्पित हैं और नर्मदा का जल मालवा क्षेत्र में लाकर लाखों किसानों को इसका फायदा पहुंचे,इस पर काम तेजी से चल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के सपने को साकार करने के लिए किसानों पर भरोसा जताते हैं और इस दिशा में किसानों को अनेकों योजनाओं से लाभान्वित भी कर रहे हैं। किसानों का यह प्रदेश आत्म निर्भरता और खुशहाली के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।