
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की शिव सरकार वैसे तो कई विभागों में अपने नवाचार और बेहतर क्रियान्वयन के लिए जानी जाती है लेकिन मत्स्य विकास और मछुआरों के अधिकार को लेकर सरकार का रवैया अन्य राज्यों से अलग है। यहां पिछले तेरह साल पहले बनी नीति आज भी चल रही है। इसमें संशोधन की मांग यदाकदा उठती रही लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि पिछली कांग्रेस सरकार ने जरूर फरवरी 2020 में मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास के लिए मंत्री परिषद उप समिति बनाई थी लेकिन इससे पहले की यह नई समिति नीति पर कुछ काम कर पाती कांग्रेस की सरकार ही गिर गई।
खत्म कर दिया गया मछुआ कल्याण बोर्ड
उल्लेखनीय है कि करीब डेढ़ दशक से मत्स्य महासंघ के चुनाव भी नहीं हुए हैं। साथ ही मछुआ कल्याण बोर्ड को खत्म कर दिया गया है। पूर्व मछुआ कल्याण मंत्री लाखन सिंह यादव के मुताबिक मछुआरों के हितों के लिए हम नई इबारत लिखने वाले थे लेकिन सरकार गिरा दी गई। महासंघ के चुनाव कराने तथा मछुआ बोर्ड को लेकर भी काम चल रहा था। उन्होंने कहा कि सरकार गिरने के बाद भी हम विधानसभा में अपने वचन को मजबूती से नहीं रख पाए। सूत्रों की माने तो मंत्री उप समिति की एक भी बैठक नहीं हो सकी। साथ ही मछुआ कल्याण बोर्ड दो बार बना तो लेकिन मछुआ कल्याण के लिए एक भी अनुशंसा नहीं की गई। वहीं विधानसभा चुनाव के समय बोर्ड ही खत्म कर दिया गया।
केंद्र की मत्स्य संपदा योजना
बहरहाल इस क्षेत्र के लिए राज्य के पास न तो कोई ठोस नीति है और न ही कोई योजनाएं फिर भी केंद्र सरकार स्तर पर बनी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना एक बड़ा सहारा है। इसके तहत कई कंपोनेंट है। सहकारी बैंकों से शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण की सुविधा है। दूसरी ओर किसानों की तर्ज पर ही फ्री क्रेडिट कार्ड बनाए गए हैं। हालांकि इसका लक्ष्य पंद्रह हजार का था लेकिन अब तक मात्र दस हजार क्रेडिट कार्ड ही बन सके हैं।
बजट में किया इजाफा
प्रदेश में मछली उत्पादन के लिए 4.33 हजार हेक्टेयर जलक्षेत्र है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक इसके 99 प्रतिशत क्षेत्र में मछली पालन किया जा रहा है। वहीं जहां तीन साल पहले 1.43 लाख मीट्रिक टन और उत्पादन था जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 1.80 लाख मीट्रिक तक उत्पादन हो गया है। साथ ही अगर बजट की बात की जाए तो विभाग के लिए वर्ष 19-20 में 104 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया था जिसे बढ़ाकर अब 120 करोड़ कर दिया गया है।
मछुआरों की इन मांगों पर किया जाना था विचार
प्रदेश भर में करीब दो लाख से ज्यादा मछुआरे हैं। ये सरकार से लगातार अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। उनकी मांग थी कि मत्स्य पालन को मछुआरों के अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। साथ ही उच्च स्तरीय मत्स्य अनुसंधान केंद्रों की स्थापना हो। केवल मछुआरों और आदिवासी समितियों को ही मत्स्य पालन का अधिकार मिले तथा कृषकों की पूंजी लागत के लिए कृषि सम्मान शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराए जाए कि व्यवस्था हो। मत्स्य कृषकों को समस्याओं एवं मत्स्य उद्योग की संभावना तलाशी जाना चाहिए। वहीं जो सबसे अहम बात है कि इसका सालाना बजट बढ़ाकर उसे अन्य राज्यों की ही तरह साढ़े चार सौ से लेकर पांच सौ करोड़ रुपए किया जाए।