
कई जिला अस्पतालों में न तो बच्चों के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ उपलब्ध हैं और न ही चिकित्सकीय सुविधायें…
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। अगले तीन माह बाद कोरोना की तीसरी लहर की संभावना और उसकी भयावहता को लेकर केन्द्र सरकार से लेकर आम जनता में भी अभी से डर का माहौल बना हुआ है, लेकिन प्रदेश सरकार इस मामले में अपनी सुस्ती तोड़ने को तैयार नहीं दिख रही है। प्रदेश में यह हाल तब है जब दूसरी लहर में नाकाफी स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से हाहाकार मच चुका है। तीसरी लहर की तैयारियों को लेकर आए दिन बैठकों के दौर और दावों के बीच अब तक जमीनी तौर पर कुछ भी बदलता नजर नहीं आ रहा है। इस मामले में सिर्फ कागजों में ही पूरी तैयारी नजर आ रही है। यही वजह है कि प्रदेश में न तो ब्लैक फंगस जैसी बीमारी का पूरी तरह से उपचार हो पा रहा है और न ही स्वास्थ सुविधाओं में वृद्धि होती नजर आ रही है। अगर शहरी इलाकों को छोड़ भी दिया जाए तो ग्रामीण इलाकों में तो हालात और भी दयनीय बने हुए हैं। तीसरी लहर का सबसे बड़ा चिंताजनक पहलू यह है कि इसका असर सबसे अधिक बच्चों पर पड़ना तय माना जा रहा है। अब तक बच्चों के लिए वैक्सीन भी नहीं है। जिसकी वजह से अभी से उसकी भयावहता को लेकर लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है। बड़े शहरों में तो फिर भी थोड़ी बहुत बच्चों के इलाज की सुविधा है, लेकिन कस्बों और गांवों में मौजूद सरकारी अस्पतालों में बच्चों के बचाव के लिए अब तक कोई सुविधा देने की ही शुरूआत तक नहीं हो सकी है। वैसे भी पहली लहर के बाद भी सरकार ने पैदा हुई स्थिति से कोई सबक नहीं लिया, जिसकी वजह से दूसरी लहर में सरकार अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों को इलाज नहीं मिलने से पीड़ितों को आसपास के बड़े शहरों में निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ा। प्रदेश के कस्बाई और ग्रामीण इलाकों की बात करें तो अब भी सैकड़ों अस्पताल ऐसे हैं जिनमें डॉक्टर तो ठीक पैरामेडीकल स्टाफ तक नहीं है। दिखावे के लिए इतना जरूर किया गया है कि अस्पतालों में चार -पांच पलंग डाल दिए गए हैं। इसके अलावा कुछ अस्पतालों में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भेज दिए गए हैं। यह बात अलग है कि दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से बने गंभीर हालातों के बाद केन्द्र सरकार की मदद से कई जगहों पर ऑक्सीजन प्लांट जरुर लगाए जा रहे हैं। यह प्लांट वैसे तो बीते ही साल लगाए जाने थे, लेकिन सरकार और उसके अफसरों की लापरवाही की वजह से हुई देरी की वजह से प्रदेश में दूसरी लहर के समय हाहाकार मच गया था। अब उन पर काम किया जा रहा है। हालांकि उनकी स्थापना का काम बेहद मंद गति से चल रहा है। इन ऑक्सीजन प्लांटों को जिला अस्पतालों में स्थापित किया जा रहा है। यही नहीं जिला अस्पतालों में भी अब तक तीसरी लहर को लेकर कोई सक्रियता नजर नहीं आ रही है। यही वजह है कि जिला अस्पतालों में भी अब तक सिर्फ पलंग और ऑक्सीजन के सहारे तीसरी लहर से निपटने की तैयारी की जा रही है, जबकि इससे भी अधिक जरूरी है, अस्पतालों में चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ की पदस्थापना। बता दें कि जब स्टाफ ही नहीं है तो दवाओं सहित अन्य सुविधाओं की बात करना तो बेमानी ही है।
52 में से 32 अस्पतालों में नहीं हैं आईसीयू
प्रदेश में बच्चों के इलाज की कितनी खराब स्थिति है इससे ही समझी जा सकती है कि 52 जिलों में से महज 20 में ही बच्चों के लिए आईसीयू की सुविधा है। इनमें भी उनके लिए पलंगों की उपलब्धता बेहद कम है। यही नहीं प्रदेश के अधिकांश स्वास्थ्य केन्द्रों में आने वाले बच्चों का सिर्फ चैकअप ही होता है। यह हाल प्रदेश में तब है जबकि देश में सर्वाधिक बच्चों की जन्म के बाद मौत मप्र में ही होती है। मप्र में एक हजार बच्चों में से 48 की जन्म के बाद मौत हो जाती है। इसके बाद भी जिलों में बच्चों के इलाज के लिए आईसीयू की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
यह हैं अस्पतालों के हाल
प्रदेश के तहसील और ब्लॉक स्तर के अस्पतालों को छोड़ दिया जाए जिला स्तर के अस्पतालों में भी चिकित्सकों का अभाव बना हुआ है। कई जिला अस्पताल तो ऐसे हैं जिनमें विशेषज्ञ चिकित्सक नही हैं। इसका उदाहरण है मुख्यमंत्री का ही गृह जिला सीहोर। इसी जिले की बुधनी विधानसभा क्षेत्र का विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रतिनिधित्व करते हैं। इस जिले में अप्रैल माह में ऑक्सीजन का प्लांट स्थापित होना था , लेकिन दो माह बाद भी वह बन नहीं सका है। यही नहीं यहां पर बनने वाले 20 बिस्तरों का बच्चों का आईसीयू ही तैयार नहीं हो पाया है। इसके अलावा सीहोर जिले के लिए 9 शिशु रोग विशेषज्ञ के पद स्वीकृत हैं , लेकिन सालों से छह पद रिक्त चल रहे हैं। इसी तरह से देवास जिला अस्पताल का हाल है। वहां पर बच्चों के लिए 10 बिस्तरों का आईसीयू तो बना दिया गया है , लेकिन अतिरिक्त रूप से इसके लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों की व्यवस्था ही नहीं की गई है।
अब तक 54 हजार बच्चे हो चुके हैं संक्रमित
खास बात यह है प्रदेश में अब तक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दोनों लहरों में 54 हजार से अधिक बच्चे संक्रमित हो चुके हैं। यह उन बच्चों का आंकड़ा है जो 18 साल से कम उम्र के थे। बच्चों का इस आंकड़ों को अगर संक्रमण दर से देखा जाए तो 6.9 रही है। खास बात यह है कि इनमें से लगभग हर पांचवे बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है। भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या करीब 12 हजार बताई जा रही है।