
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की दमोह उपचुनाव में हार को लेकर जहां नेताओं में आपसी खींचतान, आरोप-प्रत्यारोप का माहौल बना है वहीं संघ और संगठन कमलनाथ के दमोह फार्मूले को लेकर हतप्रभ है। दरअसल नाथ ने दमोह में प्रत्याशी चयन से लेकर चुनावी प्रबंधन की जो रणनीति बनाई थी उसे भेदने में भाजपा के दिग्गज ही नहीं बल्कि संघ भी नाकाम रहा है। फिलहाल भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की है। सत्ता और संगठन के निर्णयों पर असंतुष्टों के स्वर थम नहीं रहे बल्कि इनकी संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। महाकौशल से उठे विरोध के स्वर विंध्य फिर बुंदेलखंड और अब मालवांचल तक इसमें शामिल हो गया है। मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी, अजय विश्नोई, गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, कुसुम मेहदेले, हिम्मत कोठारी के साथ भंवर सिंह शेखावत भी संगठन के निर्णयों से असंतुष्ट बताए जाते हैं। ऐसे में संगठन की चिंता अब यह भी है कि यदि कांग्रेस दमोह में अपनाई रणनीति को प्रदेश के आगामी चुनावों में भी लागू करेगी तो भाजपा और मुश्किल में आ जाएगी। दरअसल प्रदेश खंडवा लोकसभा, जोबट, रैगांव और पृथ्वीपुर विधानसभा चुनाव के साथ ही नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव भी होना है।
इन चार उपचुनावों पर होगा फोकस
प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट के साथ ही अब जोबट, रैगांव और पृथ्वीपुर में भी विधानसभा उपचुनाव होंगे। खंडवा के सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के कारण यह सीट रिक्त हुई है जबकि पृथ्वीपुर विधानसभा सीट के रिक्त होने का कारण पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर का निधन है। इसी तरह जोबट की विधायक कलावती भूरिया और रैगांव के विधायक जुगल किशोर बागरी का आकस्मिक निधन होने से इन दोनों सीटों पर विधानसभा उपचुनाव की स्थिति है।
यह चारों ही दिवंगत नेता कोरोना के कारण काल कवलित हुए हैं। कांग्रेस की ओर से खंडवा लोकसभा सीट पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को टिकट मिलना लगभग तय है। यानी जब भी चुनाव का ऐलान होगा अरुण यादव के नाम पर मुहर लग जाएगी। यही वजह है कि यादव वहां पहले से ही सक्रिय हो चुके हैं। पृथ्वीपुर में बृजेंद्र सिंह राठौर के परिवार में से ही किसी को टिकट दिया जाएगा यह भी पार्टी ने लगभग तय कर लिया है। जबकि आदिवासी सुरक्षित सीट जोबट में एक बार फिर कांग्रेस भूरिया परिवार पर भरोसा जताएगी। कांतिलाल भूरिया यहां आदिवासियों के बड़े नेता हैं।
नाथ को मिली मजबूती
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ अपनी दोहरी भूमिका प्रदेश में निभाते रहेंगे। वे मजबूती के साथ प्रदेश कांग्रेस को चलाते रहेंगे। इसके संकेत हाल ही दिल्ली से मिले हैं। हालांकि कमलनाथ को दिल्ली में महत्वपूर्ण पद का ऑफर था जिसे उन्होंने विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया। खास बात है कि प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर उनका महत्व बना रहेगा।
भाजपा, संघ और संगठन में कहां है कमी
भाजपा वैसे तो कॉडर बेस पार्टी है। अनुशासित और प्रशिक्षित कार्यकर्ता इनकी मजबूती का आधार हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इनको प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से न केवल मजबूती प्रदान करता है बल्कि चुनावों में भाजपा की जीत के लिए रणनीति और प्रबंधन भी करता है। मध्यप्रदेश में भाजपा का संगठन मजबूत माना जाता है। शिवराज सिंह चौहान की सरकार भी यहां मजबूती के साथ जमी है। ऐसे में दमोह सीट पर करारी शिकस्त मिलने के पीछे क्या कारण रहे हैं। क्या भाजपा अपने नेताओं को एकजुट रखने में नाकाम रही है। क्या प्रदेश संगठन की कसावट में कमी रही है। क्या असंतुष्टों की नहीं सुनी गई। क्यों आरएसएस का पहले जैसा जादू नहीं चल रहा। इन सब सवालों के जवाब फिलहाल आना बाकी हैं।
दमोह की जीत से उत्साहित नाथ फिर सक्रिय
दमोह विधानसभा उपचुनाव की शानदार जीत ने कमलनाथ को नया आत्मविश्वास दिया है। दमोह उपचुनाव में प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रचार अभियान तक सारी कमान कमलनाथ के हाथ में थी। यदि पार्टी दमोह में हारती तो उसका पूरा खामियाजा कमलनाथ को ही उठाना पड़ता, लेकिन कमलनाथ के बेहतरीन चुनाव प्रबंधन के कारण दमोह में पार्टी के प्रत्याशी अजय टंडन 18 हजार मतों से जीते। इस जीत से प्रदेश के कांग्रेसियों में उत्साह की लहर तो है ही, अब वे और बढ़े हुए मनोबल के साथ मैदान में हैं। यही नहीं प्रदेश कांग्रेस में दमोह की जीत के कारण कमलनाथ का दबदबा और बढ़ गया है। मध्यप्रदेश में अब उनके नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं है। यही वजह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव को लक्ष्य बनाकर कमलनाथ प्रदेश में सक्रिय हैं।
अब फिर जुटेंगे तैयारी में
उल्लेखनीय है कि दमोह उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन की शानदार जीत से उत्साहित कमलनाथ अभी से 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी करना चाहते हैं। हालांकि 2023 विधानसभा चुनाव के पहले खंडवा लोकसभा, जोबट, रैगांव तथा पृथ्वीपुर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। इन चुनावों की तैयारी के साथ साथ नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव की भी तैयारी कमलनाथ के मार्गदर्शन में की जा रही है। हालांकि यह सभी चुनाव साल के अंत तक होंगे।