कोरोना कर्फ्यू के सबसे ज्यादा साइड इफेक्ट मध्यम वर्ग पर

कोरोना कर्फ्यू

-बिजली के फिक्स चार्ज को लेकर सरकार अपने ही बनाए नियम को मानने को तैयार नहीं है

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। महामारी हो या फिर कोई अन्य आपदा इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव मध्यमवर्गीय परिवारों पर ही पड़ता है। इसकी वजह है सरकारों द्वारा पूरी तरह से उनकी उपेक्षा की जाना। कोरोना काल में भी लगभग यही हाल हैं। हालात यह है कि सरकार ने कोरोना कर्फ्यू लागू कर रखा है , जिसकी वजह से दुकानें पूरी तरह से बंद हैं।
ऐसे में उनकी आय पूरी तरह से बंद हो चुकी है। इस बीच अब उन पर बिजली विभाग भी कहर ढाने को तैयार है। दरअसल बिजली विभाग ने अब फिक्स चार्ज वसूलने की तैयारी कर ली है। हालत यह है कि बड़े व्यापारियों को तो प्रशासन व सरकार ने माला सप्लाई करने की छूट दे रखी है और छोटे व्यापारियों की दुकानों को पूरी तरह से बंद करा रखा है। यह वे व्यापारी हैं, जो किराए की दुकान में अपना कारोबार करते हैं। कोरोना कर्फ्यू के चलते उनकी दुकानों को बंद करा दिया गया है। ऐसे में उन्हें न केवल किराया देना पड़ रहा है , बल्कि कामकाज बंद होने की वजह से कर्ज न चुका पाने का दंश भी झेलना पड़ रहा है। ऐसे में उन्हें बिजली बिल तो चुकाना ही पड़ रहा है। अब बिजली विभाग ने अपनी वसूली के लिए फिक्स चार्ज जोड़कर उसकी वूसली करने की तैयारी कर ली है, जिससे ऐसे लोगों व छोटे व्यापारियों पर आर्थिक भार पड़ना तय है।
माना जा रहा है कि बिजली विभाग हर कनेक्शन पर न्यूनतम एक हजार रुपए का फिक्स चार्ज वसूलने की तैयारी कर रही है। दरअसल अभी बिजली कंपनियों द्वारा व्यवसायिक कनेक्शनों पर हर माह बतौर लोड 20 यूनिट बिजली के दाम फिक्स चार्ज के तौर पर वसूले जाते हैं। इसकी दर 10 रुपए प्रति यूनिट तय की हुई है। इसमें भी खास बात यह है कि जिस मीटर पर जितना अधिक लोड स्व्ीकृत होगा उस हिसाब से फिक्स चार्ज वसूला जाएगा। इस वजह से कई दुकानों का अधिक फिक्स चार्ज आएगा। इस दौरान बड़े व्यापारियों को तो कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है। उनका व्यापार तो निर्वाध रुप से चल ही रहा है, लेकिन छोटे व्यापारियों की आर्थिक संकट के बाद भी जेब कटना तय है। इसके अलावा मध्यमवर्गीय लोगों के लिए भी यह समय बड़ा मुसीबत वाला बना हुआ है। उनका काम धंधा तो बंद है ही साथ ही उन्हें सरकार के तमाम करों के अलावा अन्य कई तरह के बिलों का भुगतान तो करना ही पड़ रहा है। यह वो वर्ग है जिसे सरकार से भी मुसीबत के समय कोई मदद नहीं दी जाती है। उन्हें न तो इलाज की सुविधा मिलती है और न ही इस तरह की मुसीबत के समय अन्य कोई रियायत।
हालत यह है कि यही वो वर्ग है जो पूरी तरह ईमानदारी से तमाम करों का भुगतान कर सरकार के खजाने को भरने का काम करता है , लेकिन यही वर्ग पूरी तरह से सरकारी उपेक्षा का शिकार रहता है। उधर सरकार व बिजली कंपनियां बिजली चोरी और अन्य तरह की लापरवाहियों का पूरा भार भी इसी वर्ग पर डाल दिया जाता है।
यह है फिक्स चार्ज का नियम
खास बात यह है कि विद्युत अधिनियम 2003 में इस बात का पहले से ही प्रावधान है कि किसी भी व्यापार, को शासकीय प्रशासकीय आदेश की वजह से अगर बंद रखा जाता है तो उस सिथति में उस अवधि का व्यापारी से बिजली फिक्स चार्ज नहीं वसूला जाएगा। खास बात यह है कि सरकार अपने ही बनाए इस नियम को मानने को तैयार नही है। बीते साल भी कोरोना के समय करीब ढाई माह तक बाजार बंद रहने के बाद भी सरकार ने अपने ही इस नियम को नहीं माना था और फिक्स चार्ज को वसूला था। उस समय भी व्यापारियों ने इसका विरोध किया था।

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