
- संसाधनों की कमी रही तो किताबी डाक्टर ही होंगे तैयार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में पहली बार पीपीपी (जन-निजी भागादारी) आधारित चार नए मेडिकल कालेज शुरू होने जा रहे हैं। इनमें से धार और बैतूल के मेडिकल कालेज का भूमिपूजन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के हाथों मंगलवार को हो भी गया। अब वे 27 दिसंबर को पन्ना और कटनी मेडिकल कालेज ने का भूमिपूजन करेंगे। राज्य सरकार अगले तीन वर्ष में पीपीपी से नौ और छह शासकीय मेडिकल कालेजों में प्रवेश प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। इसके साथ प्रदेश में कुल 52 मेडिकल कालेज हो जाएंगे, जिनसे हर वर्ष करीब 7450 डाक्टर निकलेंगे। चिकित्सा विशेषज्ञों की चिंता यही है कि अधिक से अधिक मेडिकल कालेज खोलने के चक्कर में मेडिकल कालेजों की स्थिति भी इंजीनियरिंग और नर्सिंग कालेजों जैसी न हो जाए। गुणवत्ता के लिए सबसे जरूरी फैकल्टी (प्राध्यापक, सह प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापक) हैं, पर इस वर्ष प्रारंभ हुए श्योपुर और सिंगरौली मेडिकल कालेज मात्र 10 प्रतिशत फैकल्टी के सहारे चल रहे हैं। फैकल्टी की कमी से नुकसान मात्र विद्यार्थियों का ही नहीं बल्कि मरीजों को भी उठाना पड़ रहा है। मेडिकल कालेज के नाम पर आसपास के जिला अस्पतालों से रोगियों को मेडिकल कालेज रेफर किया जाता है, सर सुविधाओं के अभाव में उन्हें उचित उपचार नहीं मिल पाता है। फैकल्टी की कमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिंगरौली में फैकल्टी के 116 पदों में से 12 यानी 10 प्रतिशत ही पदस्थ हैं। इसी तरह से श्योपुर में 118 पदों में से 13 पदस्थ हैं।
दोनों जगह इसी सत्र (2025-26) से एमबीबीएस की सौ-सौ सीटों पर प्रवेश प्रारंभ हुआ है। वर्ष में दो से तीन बार भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ करने के बाद भी डाक्टर आने को तैयार नहीं हैं। चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने पिछले दो सत्र में प्रारंभ हुए सिवनी, मंदसौर, नीमच, शिवपुरी सिंगरौली और इसके पहले शुरू हुए सतना मेडिकल कालेज में फैकल्टी के 465 पदों पर भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ की है। यानी इनं कालेजों में औसतन 77 पद रिक्त हैं। वर्ष 2009 यानी 16 वर्ष पहले प्रारंभ हुए सागर मेडिकल कालेज में प्राध्यापक के नौ, सह प्राध्यापक के 30 और सहायक प्राध्यापक के 60 पद रिक्त हैं। छिंदवाड़ा में फैकल्टी के 50 प्रतिशत पद
रिक्त हैं।
इसलिए नहीं मिल रहे फैकल्टी
क्लीनिकल विषयों के डाक्टर प्रैक्टिस के मोह में बड़े शहर नहीं छोडऩा चाहते। स्वशासी कालेजों से सरकारी कालेजों में फैकल्टी का स्थानांतरण भी नहीं किया जा सकता। दूरस्थ जिलों के मेडिकल कालेजों के डाक्टरों के लिए कोई प्रोत्साहन पैकेज नहीं है। निजी मेडिकल कालेजों में सेवानिवृत आयु 70 वर्ष है, जबकि सरकारी में 65 वर्ष।
सरकार को चाहिए कि पहले शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करे, इसके बाद नए मेडिकल कालेज खोले जाएं। फैकल्टी के रिक्त पदों को भरने के लिए सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने, प्रोत्साहन पैकेज सहित अन्य प्रविधान किए जा सकते हैं।
– डा. एके श्रीवास्तव, पूर्व संचालक, चिकित्सा शिक्षा, मध्य प्रदेश
