
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र में सरकारी नौकरी और प्रमोशन में आरक्षण की हांडी धीमी आंच पर पक रही है। कहीं सरकार नौकरी में आरक्षण तय नहीं कर पा रही है, तो कहीं आरक्षण पॉलिसी में दम नहीं नजर आ रहा है। उधर, अदालत में तारीख पर तारीख में मामला इस कदर फंस गया है कि सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है। वहीं सरकारी भर्तियां भी प्रभावित हो रही हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही है। इसी बीच, सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण को लेकर बनाई गई पालिसी भी कोर्ट के पचड़े में फंसती नजर आ रही है। इस मामले को लेकर अब जमकर राजनीति हो रही है। विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं ने सीधे मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है।
गौरतलब है कि मप्र में लंबे समय से पदोन्नति और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उलझा हुआ है। इन्हें सुलझाने के, प्रयास तो हुए पर ये अब तक सफल नहीं हो पाए। पदोन्नति के नए नियम भी बनाए गए लेकिन इसमें ऐसा पेंच फंसा कि मामला फिर कोर्ट में लंबित हो गया। पदोन्नति में आरक्षण के इस विवाद के कारण 80 हजार से अधिक अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त हो गए। यही स्थिति अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को लेकर भी है। कमल नाथ सरकार ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ के दृष्टिगत ओबीसी को सरकारी नौकरी में 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था बनाई, मगर इसका लाभ नहीं हुआ। यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है, जिसके कारण कई पदों पर भर्तियां अटकी हैं।
अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नतियां बंद
वर्ष 2002 के पदोन्नति नियम को विधिसंगत न पाते हुए हाई कोर्ट जबलपुर ने 2016 में इसे रद्द कर दिया था। सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तब से ही यह मामला विचाराधीन है। यहीं नहीं, उसी दौरान से राज्य के अधिकारियों कर्मचारियों की पदोन्नतियां बंद हैं। शिवराज सरकार के समय की बात करें तो तब कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए विकल्प के तौर पर पदोन्नति के पात्र अधिकारियों कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देने की व्यवस्था लागू की गई। इससे कर्मचारियों को कोई आर्थिक लाभ तो नहीं हुआ मगर एक स्टेटस अवश्य मिल गया। वे अपने नाम के आगे प्रभारी लिखने लगे। इसी बीच नए नियम बनाने को लेकर कई बार कवायद हुई। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरकेला से नियम का प्रारूप बनवाया। तत्कालीन गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में समिति बनाई। इसने सभी पक्षों को सुना और अनुशंसा भी दी लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने इसमें रुचि दिखाई। मुख्य सचिव अनुराग जैन, तत्कालीन अपर मुख्य सचिव संजय दुबे ने कई दौर की बैठकों के बाद पदोन्नति नियम-2025 तैयार किए। सरकार ने इन्हें हरी झंडी दी और लागू कर दिए गए लेकिन आरक्षण का मुद्दा फिर खड़ा हो गया। दरअसल, नए नियमों में भी वे सभी प्रविधान रखे गए, जिन्हें लेकर सामान्य (अनारक्षित) वर्ग को आपत्ति थी। हाई कोर्ट में नियमित सुनवाई चल रही है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात रख चुके हैं। 16 दिसंबर को फिर सुनवाई होनी है। उधर, ओबीसी आरक्षण का मुद्दा भी गले की हड्डी बना हुआ है। 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर सब एकमत तो हैं लेकिन मामला ऐसा उलझा हुआ है क्रि सुलझना भी आसान नहीं है। इतना जरूर हुआ कि जब युवा इससे परेशान हो गए तो सरकार ने एक फार्मूला निकाला और 13 प्रतिशत पद रोककर 87 प्रतिशत के परिणाम जारी करवा दिए। इन 13 प्रतिशत पदों के लिए पात्र युवा परेशान हैं क्योंकि आयु बढ़ती जा रही है और दूसरी परीक्षाओं के लिए पात्रता खत्म होती जा रही है। निराकरण में विलंब होता जा रहा है। जबकि, इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की पहल मुख्यमंत्री ने ही की थी। उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाकर एक स्वर में यह संदेश दिया कि ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर हम सब एक हैं लेकिन समाधान अब भी दूर ही नजर आ रहा है।
