कर्ज में डूबी एमपी सरकार प्रॉपर्टी बेचकर भरेगी खजाना

एमपी सरकार
  • केरल से मुंबई तक बिकेगी करोड़ों की बेशकीमती संपत्ति

गौरव चौहान/भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। 4 लाख 64 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी मध्यप्रदेश सरकार अब इससे उबरने की कोशिश में जुटी है। इसके लिए देश के दूसरे राज्यों में मौजूद एमपी के अलग-अलग विभागों की संपत्ति बेचने और उसे किराए पर देने की तैयारी है। वित्त विभाग ने सभी विभागों को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है। जिसमें पूछा है कि किस राज्य में कितनी संपत्ति किस रूप में है, और उसका मूल्य क्या है? अगर किसी प्रॉपर्टी का कोर्ट में केस चल रहा है, किसी तरह का विवाद है तो इसकी भी जानकारी दी जाए। इस कवायद का मकसद प्रदेश के बाहर मौजूद अलग-अलग विभागों की संपत्ति का डेटा जुटाना है। ताकि उसे बेचकर या किराये पर देकर राशि जुटाई जा सके। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इन जानकारियों के आधार पर लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग पूरे देश में फैली इन संपत्तियों का एक व्यापक डेटाबेस तैयार कर रहा है। यह विभाग इन संपत्तियों के मुद्रीकरण यानी मॉनेटाइजेशन की रणनीति बनाएगा। केरल के वायनाड से लेकर मुंबई के पॉश इलाकों और उत्तर प्रदेश के झांसी तक, मध्य प्रदेश सरकार की करोड़ों-अरबों की संपत्तियां हैं, जो या तो विवादों में फंसी हैं या उनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है।
सौदा तैयार, कैबिनेट की मुहर का इंतजार
मध्य प्रदेश सरकार की कंपनी, प्रोविडेंट इंवेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड के अधिकार में केरल के वायनाड जिले में 554.05 एकड़ की विशाल बीनाची एस्टेट है। इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा (453.96 एकड़) केरल प्राइवेट फॉरेस्ट एक्ट, 1971 के तहत केरल सरकार के अधीन कर दिया गया था, जिसके खिलाफ पीआईसीएल ने केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लंबे चले इस विवाद के बाद, 3 नवंबर 2023 को हाईकोर्ट ने दोनों राज्यों को आपसी सहमति से मामला सुलझाने का आदेश दिया। इसके बाद दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों के बीच कई दौर की बैठकें हुईं। 12 फरवरी 2021 को हुई अंतिम बैठक में यह तय हुआ कि- बीनाची एस्टेट को एक उचित मुआवजे के आधार पर केरल सरकार को सौंप दिया जाएगा।
मुआवजे की राशि दोनों राज्यों के अधिकारी मिलकर तय करेंगे, और सहमति न बनने पर एक आर्बिट्रेटर नियुक्त किया जाएगा। संपत्ति सौंपने के बाद केरल सरकार वहां बसे 160 अतिक्रमणकारी परिवारों को भूमि आवंटित करने पर विचार करेगी।
केरल सरकार ने इन बिंदुओं पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी है, लेकिन अब इस सौदे पर मध्य प्रदेश कैबिनेट की अंतिम मुहर लगनी बाकी है। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि केरल में मार्च 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में मोहन सरकार को इस पर जल्द ही फैसला लेना होगा ताकि सौदे को अंतिम रूप दिया जा सके। इस जमीन की कीमत अरबों में आंकी जा रही है।
बीएमसी ने किया खतरनाक घोषित
मुंबई के प्राइम लोकेशन पर मध्य प्रदेश सरकार की तीन मंजिला प्रिंसेज बिल्डिंग है, जिसका कुल एरिया 2295.16 वर्गमीटर है। इस भवन में 153 किराएदार रहते हैं। बृहन्मुंबई नगर निगम ने 20 फरवरी 2023 को इस इमारत को खतरनाक घोषित कर दिया था। इसके बाद, इस भवन के पुनर्निर्माण के लिए महाराष्ट्र बिल्डिंग रिपेयर्स एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड से संपर्क किया। अब इस जमीन पर एक रीडेंसीफिकेशन स्कीम तैयार की जा रही है। इसके लिए मेसर्स हैबिनोवा डेवलपर्स एलएलपी को डेवलपर के रूप में अनुमोदित किया गया है, और डेवलपर ने मुआवजे की राशि 3.76 करोड़ रुपए का भुगतान भी पीआईसीएल को कर दिया है। इस योजना के तहत पुराने भवन को तोडकऱ एक नई, आधुनिक इमारत बनाई जाएगी, जिससे सरकार को बड़ा राजस्व मिलने की उम्मीद है।
2.5 एकड़ जमीन पर कब्जा, 77 करोड़ का किराया बकाया
मुंबई के गोरेगांव जैसे पॉश इलाके में मध्य प्रदेश सरकार की लगभग 2.5 एकड़ (10,460 वर्गमीटर) जमीन है, जिस पर टेक वेंचर लिमिटेड नामक कंपनी का कब्जा है। इस जमीन का बाजार मूल्य 1.28 लाख रुपए प्रति वर्ग मीटर से भी अधिक है। सूत्रों के मुताबिक, इस कंपनी पर सरकार का 77.15 करोड़ रुपए का किराया बकाया है। दरअसल, पीआईसीएल बोर्ड ने 30 सितंबर 2025 को इस प्रॉपर्टी का किराया 60 गुना बढ़ा दिया था। जब कंपनी ने नया किराया नहीं चुकाया, तो पीआईसीएल ने उसे बेदखल करने के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। स्थानीय तहसीलदार, पुलिस और बिजली विभाग को पत्र लिखकर कंपनी का बिजली-पानी कनेक्शन काटने और परिसर को खाली कराने के लिए कहा गया है।
बस डिपो की जमीन पर कानूनी जीत, पर नामांतरण का इंतजार
नागपुर में मध्य प्रदेश सडक़ परिवहन निगम ने 1956 में रक्षा विभाग से 37,107 वर्गफुट जमीन खरीदी थी, लेकिन 2018 में स्थानीय भूमि अभिलेख अधीक्षक ने इसे महाराष्ट्र सरकार के नाम कर दिया। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 3 जुलाई 2025 को उप संचालक, भूमि अभिलेख ने यह आदेश निरस्त कर दिया और जमीन पर मध्य प्रदेश का हक बहाल किया। हालांकि, आदेश की प्रमाणित प्रति न मिलने के कारण अभी तक जमीन का नामांतरण निगम के नाम पर नहीं हो सका है। अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। नागपुर में इस 3 एकड़ जमीन की अनुमानित कीमत 150 करोड़ रुपए लगाई गई है।
19 एकड़ जमीन पर यूपी का कब्जा, सरकार वापस ले रही
झांसी में मध्य प्रदेश सरकार की करीब 19 एकड़ जमीन है, जिस पर वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार का कब्जा है। यह जमीन ग्वालियर रियासत के समय की है और कोठी परान के नाम से जानी जाती थी। 1948 के रिकॉड्र्स में भी यह मध्य प्रदेश (तब मध्य भारत) की संपत्ति के रूप में दर्ज है। अब लोक निर्माण विभाग ने इस जमीन पर अपना स्वामित्व फिर से लेने के लिए कार्रवाई तेज कर दी है और सरकार स्तर पर पत्राचार किया जा रहा है।
जमीन पर कोर्ट का यथास्थिति का आदेश
झांसी में ही बस डिपो की 1373.80 वर्गमीटर जमीन को लेकर भी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच विवाद है। यह जमीन 1994 में खरीदी गई थी। मामला फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में है, जिसने 28 मई 2025 को अंतरिम आदेश देते हुए संपत्ति पर यथास्थिति  बनाए रखने का निर्देश दिया है।
नेपा मिल की 1200 एकड़ जमीन पर दावा
केंद्र सरकार जब बुरहानपुर की ऐतिहासिक नेपा लिमिटेड (मिल) को बेचने की तैयारी कर रही है, तब मध्य प्रदेश सरकार ने उसकी 1199 एकड़ जमीन में से 527 एकड़ सरप्लस भूमि पर अपना दावा ठोक दिया है।

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