मप्र विधानसभा में माननीयों का मौन चर्चा में

  • मालवा-निमाड़ 28 विधायकों ने नहीं पूछे सवाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
 मप्र विधानसभा का पांच दिनी शीतकालीन सत्र समाप्त हो गया। इन पांच दिनों में कांग्रेस विधायकों ने सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश की। वहीं सरकार का बचाव करते हुए भाजपा विधायक भी आक्रामक दिखे। लेकिन मप्र की राजनीति का केंद्र माने जाने वाली मालवा-निमाड़ के विधायकों का मौन चर्चा का केंद्र बना हुआ है। मालवा-निमाड़ के 66 विधायकों में से सिर्फ 38 ने ही जनता का आवाज को सदन में उठाया, उन्होंने सवाल पूछे। शेष 28 विधायकों ने सत्र में कोई सवाल नहीं उठाया।
मप्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भले ही चार दिन बैठकें हुई, लेकिन विधायकों ने जमकर सवाल दागे और जनता से जुड़े समस्याओं को सरकार के सामने उठाया। 4 दिन चले सत्र को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वह बेहद चौंकाने वाले हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि लोकतंत्र के इस मंदिर के लिए चुने जाने वाले कई सदस्यों ने पूरे सत्र के दौरान समस्याओं के नाम पर 4 दिन तक चुप्पी साधे रखी। प्रदेश के कई विधायकों ने पूरे बजट सत्र के दौरान एक भी सवाल विधानसभा में नहीं पूछा। जबकि क्षेत्र की समस्या को उठाने और उसे सरकार के ध्यान में लाने के लिए विधानसभा ही सबसे अच्छा मंच होता है। इनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायक भी शामिल हैं. उधर कई विधायकों ने ताबड़तोड़ सवाल दागे।
मालवांचल के 38 ने उठाई जनता की आवाज
गौरतलब है कि जिन जनप्रतिनिधियों को जनता इस उम्मीद से चुनकर विधानसभा में भेजती है कि वे लोकतंत्र के इस मंदिर में आपकी आवाज बनेंगे। विधानसभा में आपके क्षेत्र के जनहित के मुद्दों या जन समस्याओं को मुखरता से उठाएंगे, वे विधानसभा में क्या कर रहे हैं, यह जानना भी बेहद आवश्यक है। मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधायकों के परफॉर्मेंस का ऑडिट किया गया तो पता चला कि अकेले मालवांचल में ही दो दर्जन से अधिक विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने न तो एक प्रश्न पूछा और न ही सदन में अपना मुंह खोला। मालवा-निमाड़ क्षेत्र से 66 विधायक हैं। पांच दिन चले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में न तो इनकी शत प्रतिशत उपस्थिति रही, न ही इन सभी ने जनता की कोई आवाज उठाई। 66 विधायकों में से सिर्फ 38 ने ही जनता का आवाज को सदन में उठाया, उन्होंने सवाल पूछे। शेष 28 ने मान लिया कि उनके विधानसभा क्षेत्र में सब कुछ बढ़िया है, किसी सुधार की आवश्यकता नहीं, सवाल उठाने का जरूरत नहीं। मालवा-निमाड़ की 66 विधानसभा सीटों में से नौ सीटें इंदौर से आती हैं, लेकिन यहां के सिर्फ एक विधायक महेंद्र हार्डिया ने विधानसभा में सवाल उठाया। प्रश्नकाल में उपस्थिति की बात करें तो दोनों मंत्रियों को छोडकऱ शेष कोई विधायक इस दौरान उपस्थित नहीं हुआ। इंदौर जिले से सिर्फ सवाल पूछने वालों में सिर्फ विधानसभा क्षेत्र पांच के विधायक महेंद्र हार्डिया का नाम शामिल है। उन्होंने खजराना महाविद्यालय से जुड़े सवाल पूछे थे। हार्डिया के अलावा इंदौर के किसी विधायक ने सरकार से सवाल पूछने की आवश्यकता महसूस नहीं की। इंदौर के ज्यादातर विधायक न किसी चर्चा में शामिल हुए न प्रश्नकाल में उपस्थित हुए। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के गृह जिले उज्जैन से विधानसभा में 50 से ज्यादा सवाल आए।
ये विधायक रहे मुखर
विधानसभा में मालवा-निमाड़ क्षेत्र के जिन विधायकों ने सत्र में सवाल उठाए हैं, उनमें अनिल जैन (तीन), सतीश मालवीय (पांच), राजेंद्र मंडलोई (आठ), मोंटू सोलंकी (पांच), श्याम बरडे (तीन), मंजू दादू (नौ), अर्चना चिटनीस (सात), महेंद्र हार्डिया (चार), आशीष शर्मा (आठ), मुरली भंवरा (सात), वीरसिंह भूरिया (दो), छाया मोरे (दो), सचिन बिडला (सात), झुमा हरदीपसिंह डंग (चार), नीना वर्मा (चार), भवरसिंह शेखावट (छह), सोलंकी (दो) सचिव यादव (दो), अनिरुद्ध मारू (चार) शामिल हैं। शाजापुर जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। यहां से किसी भी विधायक ने सरकार से सवाल पूछने की आवश्यकता महसूस नहीं की जबकि धार के सातों विधायकों ने विधानसभा में सवाल पूछे। यहां की विधानसभा की सात सीटों में से दो पर भाजपा और पांच पर कांग्रेस पार्टी के विधायक हैं। सबसे ज्यादा सवाल भी धार जिले से ही आए। यहां के विधायकों ने 81 सवाल पूछे। सिर्फ सवाल पूछने के मामले में ही नहीं उपस्थिति के मामले में भी मालवा-निमाड़ के विधायकों का प्रदर्शन कमजोर रहा। सत्र में हनी बघेल ने 12, प्रताप ग्रेवाल ने 16, उमंग सिंघार ने 16, विक्रांत भूरिया ने 11, कंचन तनवे ने 15, विपिन जैन ने 16, सेना पटेल ने 10, तेजबहादुर सिंह चौहान ने 14, दिनेश जैन बोस ने 14, महेश परमार ने 16, बाला बच्चन ने 16, दिलीपसिंह परिहार ने 16, राजेंद्र पांडे ने 14, कमलेश डोडियार ने 12, कालूसिंह ठाकुर ने 13 और भैरव सिंह बापु ने 11 सवाल पूछा।

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