
- दागी कंपनी साइंस हाउस पर स्वास्थ्य विभाग की मेहरबानी
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। ईडी की जांच में घिरी साइंस हाउस कंपनी को 943 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग ने विधानसभा में दी है। स्वास्थ्य विभाग ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि मध्यप्रदेश सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजी जांचों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं। विभाग ने माना कि पिछले चार साल में निजी कंपनी साइंस हाउस को 12.38 करोड़ जांचों का भुगतान करते हुए कुल 943 करोड़ रुपए दिए गए हैं। वहीं, इस दौरान मरीजों की ओर लगातार शिकायतें मिलीं, जिनमें जांच दरों में अंतर, फर्जी बिलिंग, अनावश्यक टेस्ट और जीएसटी जोडकऱ अधिक वसूली जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार जिला-सिविल अस्पताल के साथ सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पैथोलॉजी सेवाएं दे रही निजी कंपनी साइंस हाउस ने 3 साल 11 महीने में 12 करोड़, 84 लाख 32 हजार 216 लोगों की जांचें कर दीं। इसकी एवज में स्वास्थ्य विभाग ने कंपनी को 943 करोड़ का भुगतान कर दिया। विधानसभा में कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के सवाल पर विभाग ने 68 हजार पन्नों में जवाब सौंपा है। इसमें ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। जानकारी के अनुसार आयकर छापों के दौरान सुर्खियों में आई यह कंपनी साइंस हाउस दो नामों से संचालित हो रही है। पीओसीटी साइंस हाउस प्रा.लि. (वेटलीज रियेजेंट रेंटल) और साइंस हाउस प्रा.लि. (हब एंड स्पोक)। दस्तावेजों की पड़ताल में पता चला कि कंपनी ने आउटसोर्स के जरिए जो सेवाएं दी, उसके अलग-अलग रेट लगाए और सरकार से भुगतान लिया। यह भी कहा गया कि कंपनी ने सामान्य रेट से 25 प्रतिशत ज्यादा पैसा वसूला। यह भी सामने आया कि दोनों फर्मों ने विभाग को भेजे बिल में एसजीएसटी और सीजीएसटी 9-9त्न ले लिया। जबकि लैब द्वारा की जाने वाली जांचों ब्लड टेस्ट, यूरीन जांच, एक्सरे, एमआरआई, सीटी स्केन और अन्य जांचों को हैल्थ केयर सर्विसेज की श्रेणी में रखा गया, जिसे जीएसटी से छूट है। इसी तरह हर जांच का पच्चीस प्रतिशत ज्यादा पैसा लिया गया जो एनएबीएल सर्टिफाइड रेट से ज्यादा है। यह सवाल भी आया कि टेंडर के अनुसार कंपनी के 5 साल पूरे हो रहे हैं, इस जानकारी के बाद भी नए टेंडर करने की बजाय कंपनी को ही एक साल का एक्सटेंशन दे दिया गया।
कांग्रेस विधायक को 68 हजार पेजों का जवाब
विधानसभा में कांग्रेस विधायक जयवद्र्धन सिंह के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य विभाग ने 68 हजार पेजों का जवाब दिया है। साइंस हाउस ने 12 करोड़, चार साल में 32 करोड़ जांचें हुईं। इन पर किए गए खर्च में 943 करोड़ तक की गड़बड़ी सामने आई है। विधानसभा पटल पर रखी सूचना के अनुसार एक ही जांच के अलग-अलग अस्पतालों में अलग-अलग रेट लिए जा रहे थे। विधायक जयवर्धन सिंह के सवाल पर स्वास्थ्य विभाग ने पेन ड्राइव में जानकारी भेजी। दस्तावेजों के अनुसार, हेल्थकेयर सेवाओं पर जीएसटी नहीं लगता है, लेकिन कई जगहों पर मरीजों से जीएसटी वसूला जा रहा था। कई जांचें गैर-जरूरी होते हुए भी मरीजों पर थोप दी गईं। इससे मरीजों के बिल काफी बढ़ गए। कई मामलों में जांच दर से 25 प्रतिशत तक ज्यादा वसूला गया। दस्तावेज बताते हैं कि कई अस्पतालों में मरीजों से ऐसे टेस्ट कराए गए जिनकी डॉक्टर ने जरूरत नहीं बताई। एक ही मरीज के खून का सैंपल बार-बार लेकर 3-4 टेस्ट एक ही दिन करा दिए गए। कुछ मामलों में मरीजों की रिपोर्ट तक में गड़बड़ी सामने आई। सोशल मीडिया पर की गई शिकायतों में भी मरीजों ने बिल बढ़ाए जाने और गलत रिपोर्ट दिए जाने की बात रखी थी। स्वास्थ्य सेवाओं पर जीएसटी लागू नहीं है, फिर भी दस्तावेजों में दर्ज 18 मई 2024 के एक बिल में 100 रुपए की जांच पर 5 प्रतिशत जीएसटी जोड़ा गया। ऐसे कई बिल मिले जिनमें जीएसटी जोडकऱ राशि बढ़ाई गई। यह नियमों के पूरी तरह खिलाफ है।
एक ही जांच के अलग रेट
टीएसएच, टी-3, टी-4, ट्रोपोनिन-ढ्ढ, सीरम क्रिएटिनिन और अल्कलाइन फॉस्फेटेज जैसे टेस्ट अलग-अलग अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अलग-अलग रेट पर किए गए। यह सिस्टम में गंभीर खामी और नियंत्रण की कमी दिखाता है। दस्तावेजों में 2020 से 2024 तक के भुगतान विवरण शामिल हैं। इनमें कई बिल ऐसे पाए गए हैं जिनमें मरीजों से निर्धारित शुल्क से 25 प्रतिशत अधिक राशि वसूली गई। एक ही जांच—जैसे टी-3, टी-4, ट्रोपोनिन-1, क्रिएटिनिन आदि—विभिन्न जिलों में अलग-अलग रेट पर किए जा रहे थे। अनुपपुर जिले में मार्च 2024 में ईओडब्ल्यू द्वारा की गई जांच में पाया गया कि करीब 1800 जांचें ऐसी थीं जिनकी रिपोर्ट उपलब्ध ही नहीं थी। अस्पतालों ने दावा किया कि मशीनें बंद थीं, इसलिए 80 प्रतिशत जांचें बाहर कराई गईं, लेकिन बिलों में इन्हें अस्पताल द्वारा की गई जांच दिखाया गया, जिससे भुगतान बढ़ गया। फोटोस्टेट दस्तावेजों में पाया गया कि मई 2020 में साइंस हाउस को सरकारी अस्पतालों में वेट-लीज़ मॉडल पर जांच सेवा देने का ठेका दिया गया। 2020 से 2023 के बीच कई अस्पतालों में मशीनें खराब होने के बावजूद कागजों पर जांचें जारी दिखाई गईं। विभागीय अफसरों ने माना कि निगरानी बेहद कमजोर थी और कंपनी को लगातार भुगतान होता रहा।
