
- 8 साल में मानदेय घोटाले की जांच पूरी नहीं कर पाई सरकार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी की आठ महिला एवं बाल विकास परियोजनाओं में सितंबर 2017 में सामने आए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मानदेय घोटाले की जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने आरोपितों के खिलाफ अलग-अलग थानों में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी पर संबंधितों की गिरफ्तारी भी नहीं हुई। राजधानी में पकड़ी गई इस गड़बड़ी की जब परतें खुलीं तो प्रदेश के आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में 26 करोड़ रुपये से अधिक का फर्जी मानदेय भुगतान होने का पता चला। प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं के मानदेय घोटाले को सामने आए आठ साल बीत चुके हैं लेकिन अब तक दोषी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अब तक इस घोटाले की जांच पूरी नहीं हो पाई है। दोषी पाए गए अधिकारियों में से अधिकतर अब भी शासकीय सेवा में बने हुए हैं।
गौरतलब है कि भोपाल की आठ महिला बाल विकास परियोजनाओं में सितंबर, 2017 में सबसे पहले सामने आया आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मानदेय घोटाला बाद में 25 से अधिक जिलों तक फैला पाया गया। 26 करोड़ों रुपये से अधिक का फर्जी मानदेय भुगतान होने का पता चला था। मामले में सिर्फ छोटे कर्मचारियों (लिपिक-लेखापाल) पर कठोर कार्रवाई (बर्खास्त करना) हुई, जबकि परियोजना अधिकारियों को सिर्फ निलंबित किया गया। महिला एवं बाल विकास विभाग ने आरोपितों के विरुद्ध अलग-अलग थानों में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी, मगर संबंधितों की गिरफ्तारी तक नहीं हुई। कुछ अधिकारियों ने तो घोटाले की राशि सरकार के खाते में जमा करवा दी और विभाग ने उन्हें बचा लिया। महालेखाकार ने भी गड़बड़ी होने की पुष्टि की, तब वित्त अधिकारी से जांच कराई गई और फिर घोटाला सामने आया। इसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दोहरा मानदेय और केंद्रों के भवनों का किराया दे रहे थे।
किन खातों में गई राशि, छुपा रहा विभाग
सूत्र बताते हैं कि आरोपित अधिकारी फर्जी भुगतान पत्रक बनाकर दूसरी बार का मानदेय अपने परिचितों, रिश्तेदारों के बैंक खातों में जमा करा देते थे। यह बात जांच में तो शामिल हुई पर विभाग यह बताने से कतरा रहा है कि किन लोगों के खातों में राशि डाली जा रही थी। इसमें बड़े नाम भी शामिल हैं। बहाली की कोशिश कर रहे आरोपित जिन अधिकारियों पर सरकारी राशि का गलत उपयोग करने का आरोप लगाया है और इस मामले में निलंबित हैं। वे बहाली की कोशिश में लगे हैं। कमल नाथ सरकार में इन निलंबित अधिकारियों ने माहौल बनाया था और विभाग भी लगभग बहाली को तैयार हो गया था पर नाथ सरकार चली गई। सबसे पहले भोपाल के जिन आठ परियोजना क्षेत्री में घोटाला पकड़ा गया। लगभग 70 अधिकारी व कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है। वे भी अब बहाली की कोशिश कर रहे हैं। बता दें, मानदेय घोटाले के अधिकांश प्रकरणों में कोर्ट से स्थगन मिला हुआ है।
6 हजार करोड़ के भुगतान पर उठे सवाल
प्रदेश में किसानों और राजनीतिक दबाव को देखते हुए सरकार ने किसानों से ग्रीष्मकालीन मूंग तो खरीद ली पर इसमें गड़बड़ी सामने आई है। नर्मदापुरम, हरदा और नरसिंहपुर जिले में कचरा मिश्रित और अधिक नमी, की मूंग का उपार्जन हो गया। राज्य भंडार गृह निगम ने तीनों जिलों में प्रदेश और क्षेत्रीय कार्यालय से अधिकारियों का दल बनाकर जांच कराई, जिसमें यह बात सामने आई है। अब संबंधित अधिकारियों को नोटिस देने की तैयारी है। मध्य प्रदेश सरकार के प्रस्ताव पर भारत सरकार ने 3.31 लाख टन मंग उपार्जन का लक्ष्य दिया था। 2,94,488 किसानों ने समर्थन मूल्य 8,682 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर मूंग बेचने के लिए पंजीयन कराया। इसमें से 2,74,775 किसानों से 7,72,433 टन मूंग खरीदी गई। आशंका यह है कि गुणवत्ताहीन मूंग लेने से भारत सरकार द्वारा इन्कार किया जा सकता है। इससे नुकसान यह होगा कि उपार्जित मूंग का वित्तीय भार राज्य सरकार को वहन करना पड़ेगा क्योंकि किसानों को भुगतान (लगभग छह हजार करोड़ रुपये) किया जा चुका है। निगम के अधिकारियों का कहना है कि जो निरीक्षण रिपोर्ट प्राप्त हुई है, उनके आधार पर संबंधित अधिकारियों को नोटिस देने की तैयारी है। कारण बताओ नोटिस जारी करके 15 दिन में उनका पक्ष लिया जाएगा और फिर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
