
- भोपाल मेट्रो परियोजना की धीमी गति से बढ़ी लागत
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल में मेट्रो परियोजना निर्माण की धीमी गति अब परेशानी का सबब सबब बनने लगी है। परियोजना को पूर्ण करने का समय जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है उसकी लागत भी बढ़ती जा रही है। दरअसल, जमीन अधिग्रहण और अतिक्रमणों को हटाने में देरी के चलते भोपाल मेट्रो परियोजना का काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि डीपीआर बनाए जाने के दौरान मेट्रो प्रोजेक्ट की लागत 6941.40 करोड़ रुपए तय की गई थी, लेकिन देरी के चलते प्रोजेक्ट की लागत 7500 करोड़ रूपए के पार चली गई है।
गौरतलब है कि इस साल अक्टूबर में मेट्रो ट्रेन चलाने का दावा किया जा रहा था, लेकिन लगता है कि अब 2026 में ही मेट्र्रो ट्रेन का संचालन शुरू हो पाएगा। सितंबर 2019 में ऑरेंज और ब्लू लाइन के 27.87 किमी के रूट पर शुरू हुई इस परियोजना को दिसंबर 2022 में पूरा हो जाना था, लेकिन वर्तमान में केवल प्रायोरिटी कॉरिडोर के 6.2 किमी के रूट का ही काम पूरा हो सका है, जिसके चलते इस अवधि में लोहे व सीमेंट सहित अन्य सामग्रियों के दाम में इजाफा हुआ। जिसका असर मेट्रो की लागत पर दिखाई दे रहा है। भोपाल में एम्स से सुभाष ब्रिज तक महज 6.22 किमी का रूट बना है। इसमें अन्य क्षेत्रों से कनेक्टिविटी की परेशानी है। मौजूदा रूट भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में नहीं है। एम्स से सुभाष नगर ब्रिज तक कॉलोनियों से भी स्टेशन काफी दूर है। मेट्रो स्टेशन व्यावसायिक की बजाय आवासीय क्षेत्रों से लगा है, इससे कार्यालयों या अन्य प्रतिष्ठानों तक पहुंच नहीं है। एम्स से एमपीनगर, सुभाषनगर तक बस का किराया 14 रुपए है। प्रतिकिमी दो रुपए की दर है। भोपाल मेट्रो का किराया 20 रुपए जबकि अधिकतम 30 रुपए तय किया है। बस किराए से दोगुना है।
प्रोजेक्ट की लागत 560 करोड़ बढ़ गई
बता दें कि डीपीआर बनाए जाने के दौरान मेट्रो प्रोजेक्ट की लागत 6941.40 करोड़ रुपए तय की गई थी, लेकिन देरी के चलते प्रोजेक्ट की लागत 560 करोड़ रुपए तक बढ़ गई है। मेट्रो के अधिकारियों का कहना है कि 2028 में ब्लू लाइन का काम पूरा होने तक लागत में और इजाफा हो सकता है, लेकिन इस दौरान लागत कितनी बढ़ेगी इसकी सटीक जानकारी काम पूरा होने के बाद ही बताई जा सकेगी। लेकिन एम अनुमान के मुताबिक लागत में 25 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा सकती है है। वर्तमान में पूरे रूट की लागत 7500 करोड़ रुपए बताई जा रही है, लेकिन 2028 तक इसमें और बढ़ोत्तरी हो सकती है। 2022 तक ऑरेंज लाइन और ब्लू लाइन का काम तीन साल में पूर करने के लिए औसतन हर माह 145 करोड़ या रोजाना 4.83 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाना थी। यह राशि मेट्रो रूट के तहत आने वाले निर्माणों को हटाकर जमीन का अधिग्रहण करने और रूट के निर्माण पर खर्च की जाना थी, लेकिन पहले चरण में ही जमीन अधिग्रहित करने में बहुत लेटलतीफी की गई, जिसके चलते ब्याज पर ली गई राशि को खर्च नहीं किया जा सका। दूसरी ओर निर्माण न होने से संचालन नहीं हुआ, जिससे मेट्रो से होने वाली कमाई शुरू ही नहीं हो सकी। डीपीआर के तहत दोनों लाइन पर रोजाना सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक 60 हजार से ज्यादा लोग सफर करते, जिससे होने वाली आय व्याज पर ली गई राशि को चुकाने और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च की जाती। लेकिन धीमी गति के निर्माण के कारण न तो मेट्रो को आय हुई। बल्कि मेट्रो कंपनी को जेब से व्याज भरना पड़ रहा है। अधिकारियों का कहना है कि 2024 से मेट्रो की दोनों लाइन पर काम तेज गति से शुरू हो गया है और अब इसे दी गई डेडलाइन में पूरा कर लिया जाएगा। जिसके बाद संचालन भी शुरू कर दिया जाएगा।
निर्माण में अभी कई कमियां
अक्टूबर में मेट्रो का संचालन शुरू करने के लिए सीएमआरएस जनक कुमार गर्ग ने 25 सितंबर को मेट्रो के ट्रेक व रैक का निरीक्षण किया था। इसके बाद 17 अक्टूबर को प्रायोरिटी कॉरिडोर के आठ स्टेशनों का निरीक्षण सीएमआरएस की तीन सदस्यीय टीम द्वारा किया गया। टीम ने इस दौरान अल्कापुरी मेट्रो स्टेशन और एम्स स्टेशन पर सीलिंग का काम पूरा न होने के चलते इसे संचालन के लिए असुरक्षित माना। वहीं इस अवधि में सीएमआरएस गर्ग भी रिटायर हो गए। जिसके चलते स्टेशन का काम पूरा हो जाने के बाद भी संचालन शुरू करने की अनुमति नहीं मिल रही। अधिकारियों की मानें तो सीएमआरएस की अनुमति मिलते ही एक सप्ताह बाद मेट्रो का संचालन शुरू कर दिया जाएगा। जिससे यात्री मेट्रो की सुविधा का लाभ उठा सकेंगे।
बिना यात्री भी 12 से 15 लाख रुपए रोजाना का खर्च
मेट्रो ट्रेन संचालन में इस समय 132 कर्मचारी की टीम है। 6.22 किमी के एम्स से सुभाष ब्रिज तक के ट्रैक पर प्रतिकिमी प्रतिदिन दो लाख का औसत खर्च होगा। इसका एक बड़ा हिस्सा अभी से शुरू हो गया है। इंदौर में बिजली का बिल प्रतिमाह 50 लाख बन रहा, वह यहां भी रहेगा। प्रतिवर्ष देखें तो 5 से 8 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष प्रतिकिमी का खर्च होगा। इसमें 30 फीसदी बिजली, 33 फीसदी स्टॉफ के वेतन भत्ते व बाकी अन्य खर्च है।
