
- खंडपीठ ने सरकार से इस मामले में दो सप्ताह में जवाब मांगा है
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सुप्रीम कोर्ट ने एमपी के महाधिवक्ता कार्यालयों से लेकर जिला स्तर पर नियुक्त होने वाले सरकारी वकीलों की जानकारी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एम सुंदरेश और जस्टिस सतीश शर्मा की खंडपीठ ने सरकार से इस मामले में दो सप्ताह में जवाब मांगा है। दरअसल ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने याचिका दायर की है, जिस पर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट को बताया कि मप्र में ओबीसी, एससी, एसटी, की लगभग 88 प्रतिशत आबादी है और 49.8 फीसदी महिलाओं की आबादी है फिर भी महाधिवक्ता कार्यालय में इस वर्ग के अधिवक्ताओं को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा। इस कारण हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इन वर्गों के जजों का नाममात्र का प्रतिनिधित्व है।
अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद
प्रदेश के जिला न्यायालयों मे एक हजार से ज्यादा पद हैं। निगम, मंडल और बैंकों को मिलाकर लगभग 1800 पद हैं। इन नियुक्तियों मे आरक्षित वर्ग और महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन तकों को गंभीरता से लेते हुए मप्र सरकार को निर्देशित किया कि अगली सुनवाई के पहले ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाओं के प्रतिनिधित्व की जानकारी के साथ सर्वोच्च न्यायालय में पूरा डाटा पेश किया जाए। अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की गई है।
आरक्षण का पालन नहीं
याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट को बताया कि मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 2, बी एवं 2, एफ तथा धारा 3 एवं 4:2 में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि महाधिवक्ता कार्यालय, जिला न्यायालयों, निगम, मंडल में नियुक्त विधि अधिकारियों की नियुक्तियों मे आरक्षण लागू होगा। महाधिवक्ता कार्यालय जबलपुर, इंदौर एवं ग्वालियर और सुप्रीम कोर्ट मे एडिशनल एडवोकेट जनरल, डिप्टी एडवोकेट जनरल, गवर्नमेंट एडवोकेट, डिप्टी गवर्नरमेन्ट एडवोकेट के 150 से ज्यादा सरकारी वकीलों के
स्वीकृत पद हैं। इसके साथ ही 500 से ज्यादा पेनल लॉयर के पद हैं।
