श्रीमंत के दरबारी अब… पुनर्वास के इंतजार में

  • मंत्री सिंधिया के शरणार्थी अब सियासी सन्नाटे में
  • गौरव चौहान
श्रीमंत

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए ग्वालियर-चंबल संभाग के वे चेहरे, जिन्होंने कमलनाथ सरकार की विदाई और शिवराज सरकार की वापसी में निर्णायक भूमिका निभाई थी, आज सियासी सन्नाटे में हैं। सत्ता परिवर्तन के सूत्रधार रहे इन नेताओं को न अब भाजपा संगठन में जगह है, और न ये सत्ता के गलियारों में कहीं दिखाई दे रहे हैं। कभी कांग्रेस में प्रभावशाली और निर्णायक माने जाने वाले ये नेता अब बिना पद, प्रभाव या पहचान के सियासी हाशिए पर हैं। पांच वर्षों में इनका राजनीतिक क्षितिज सिमट चुका है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में ऐसे एक दर्जन से अधिक नेता (पूर्व विधायक) हैं, जिनमें से करीब 30 प्रतिशत ने उपचुनावों में वापसी की, लेकिन 70 प्रतिशत आज भी राजनीतिक पुनर्वास की प्रतीक्षा पंक्ति में खड़े हैं। सिंधिया के शरणार्थी कहे जाने वाले इन नेताओं की उम्मीद अब भी श्रीमंत की अनुशंसा शक्ति पर टिकी है। निगम-मंडलों या प्राधिकरणों में संभावित नियुक्तियों की सूची में जगह पाने की आस में वे सिंधिया के संकेत का इंतजार कर रहे हैं। परंतु भाजपा की बदलती प्राथमिकताएं, संघ की कसौटी और नए चेहरों का उभार, इनकी राह और कठिन बना रहा है। कभी सत्ता परिवर्तन के शिल्पकार रहे ये चेहरे अब पार्टी की नई संरचना में अप्रासंगिक माने जा रहे हैं।
सियासी हाशिए पर ये चेहरे
महेंद्र सिंह सिसोदिया (बमोरी, गुना)-2023 में चुनाव लड़े, हारे, अब संगठन में न पद, न दायित्व।
ओपीएस भदौरिया (मेहगांव, भिंड) उपचुनाव जीते, पर 2023 में टिकट काटा गया। अब कोई पद नहीं।
गिर्राज कंसाना (दिमनी, मुरैना) उपचुनाव हारे, 2023 में टिकट नरेंद्र सिंह तोमर को मिला।
उपचुनाव में पराजित, टिकट अब रणवीर जाटव (गोहद, भिंड) लालसिंह आर्य को।
मुन्नालाल गोयल (ग्वालियर माया सिंह को दिया गया। पूर्व) उपचुनाव में हारे, 2023 में टिकट
इमरती देवी (डबरा, ग्वालियर) निष्क्रिय। दो चुनावों में हार, अब संगठन में
रक्षा सिरोनिया (भांडेर, दतिया) नहीं। उपचुनाव में हार, 2023 में टिकट
कितने जीते, कितने हारे
कुल 22 विधायक सिंधिया के साथ कांग्रेस से भाजपा में आए थे।
इनमें से केवल 6-7 ने चुनाव जीतकर वापसी की।
बाकी 15-16 नेता सत्ता और संगठन-दोनों से बाहर हैं।
प्रारंभिक दौर में कुछ को निगम मंडलों में पद मिले, पर अब वह चरण भी समाप्त हो चुका है। गुमनामी के कारण
भाजपा में आंतरिक प्रतिस्पर्धा और नए चेहरों का उभार।
संघ-प्रधान क्षेत्र में बाहरी नेताओं की सीमित स्वीकार्यता।
सिंथिया की अनुशंसा शक्ति का कमजोर पडऩा।
लगातार चुनावी पराजयों से विश्वसनीयता का संकट।

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