सुनील अमृत ने जीता ब्रिटिश अकादमी पुस्तक पुरस्कार

लंदन। भारतीय मूल के इतिहासकार सुनील अमृत को उनकी किताब ‘द बर्निंग अर्थ: एन एनवायर्नमेंटल हिस्ट्री ऑफ द लास्ट 500 इयर्स’ के लिए ब्रिटिश अकादमी पुस्तक पुरस्कार का विजेता घोषित किया गया है। इस पुरस्कार के तहत विजेता को 25,000 पाउंड की रकम मिलती है, जो दुनिया की सर्वश्रेष्ठ गैर-काल्पनिक कृतियों को दिया जाता है। अमेरिका के येल विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर सुनील अमृत का जन्म केन्या में हुआ। वे सिंगापुर में पले-बढ़े और उन्होंने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ली। 46 वर्षीय अमृत की किताब को ब्रिटिश अकादमी पुस्तक अवार्ड के निर्णायकों ने जलवायु संकट के मामले में महत्वपूर्ण पठन सामग्री बताया। बुधवार शाम लंदन स्थित ब्रिटिश अकादमी में आयोजित एक समारोह में सुनील अमृत को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया गया।

अमेरिका से लाइव वीडियो लिंक के से कार्यक्रम से जुड़े अमृत ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि यह मानवीय और पर्यावरणीय, दोनों तरह के नुकसान और पीड़ा के बारे में बहुत विस्तार से बताती है। साथ ही ये दर्शाती है कि ये दोनों लगभग हमेशा आपस में जुड़े रहे हैं। लेकिन अंत में, मैं इस पुस्तक से जो पढ़ना चाहूंगा, वह यह है कि इसके कई हिस्से हमें इस मुकाम तक ले आए हैं। इसलिए कई ऐसे रास्ते भी थे जिन्हें अपनाया नहीं गया, ऐसे विचार जिन्हें भुला दिया गया, ऐसे आंदोलन जो भले ही विफल रहे हों, लेकिन उन्होंने एक स्थायी विरासत छोड़ी है, ऐसी प्रौद्योगिकियाँ जो अधिक विनम्र और टिकाऊ थीं।’

पुरस्कार की घोषणा करने वाले निर्णायक मंडल की अध्यक्ष, ब्रिटेन की इतिहासकार प्रोफेसर रेबेका अर्ल ने की, जिन्होंने सुनील अमृत की किताब द बर्निंग अर्थ को मानव इतिहास और पर्यावरणीय परिवर्तन के बीच के अंतर्संबंधों का एक शानदार विवरण बताया। ब्रिटिश अकादमी, जो ब्रिटेन की मानविकी और सामाजिक विज्ञान की राष्ट्रीय अकादमी है, का कहना है कि अमृत का वैश्विक पर्यावरणीय इतिहास पर अभूतपूर्व काम दशकों के और आंखें खोल देने वाले शोध पर आधारित है, जो यह बताता है कि कैसे उपनिवेशीकरण, औद्योगीकरण और मानव बस्तियों के बदलते स्वरूपों ने न केवल आधुनिक दुनिया को आकार दिया है, बल्कि उस जलवायु संकट को भी बढ़ावा दिया है जिसका हम आज सामना कर रहे हैं।

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