- अंधकार मिटाकर आंतरिक ज्योति जगाने की प्रेरणा, दीया घर में जलाओ, पर रोशनी दिल में बसाओ
- प्रवीण कक्कड़

दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों की उजली पहचान है। यह वह समय है जब हम न सिर्फ अपने घरों को रोशन करते हैं, बल्कि भीतर के अंधकार को मिटाकर रिश्तों और समाज में उजास फैलाते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकाश सिर्फ दीयों में नहीं, इंसान के मन में भी जलना चाहिए।
आज दीपावली केवल भारत तक सीमित नहीं। यह विश्वभर में मनाया जाने वाला उत्सव बन चुका है। लाखों लोग इस दिन दीप जलाते हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि प्रकाश की कोई सीमा नहीं होती। यह पर्व संस्कृति के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था और मानवीय संबंधों को जोडऩे वाला एक सेतु बन चुका है।
धनतेरस: स्वास्थ्य और समृद्धि का पहला दीप: दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन हम धन्वंतरि देव का पूजन करते हैं, यह संदेश देते हुए कि सच्चा धन स्वास्थ्य है। साथ ही, धन के देवता कुबेर की पूजा भी की जाती है, जो धन की रक्षा और वृद्धि के लिए पूजे जाते हैं, ताकि जीवन में भौतिक समृद्धि बनी रहे। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह ऋतु परिवर्तन का समय है, जब शरीर को सुदृढ़ रखना आवश्यक होता है। जब तन और मन स्वस्थ हो, तभी जीवन में उजाला टिकता है।
नरक चतुर्दशी: भीतर जमी नकारात्मकता की सफाई: छोटी दीपावली यानी नरक चतुर्दशी हमें केवल घर की नहीं, दिल की भी सफाई का संदेश देती है। यह वह दिन है जब हम अपने भीतर जमी ईष्र्या, क्रोध, बैर और अहंकार को झाडक़र प्रेम और विश्वास का दीप जलाते हैं। जिस तरह दीवारों से धूल हटाते हैं, उसी तरह रिश्तों पर चढ़ी मनमुटाव की धूल भी साफ करनी चाहिए। इसी दिन को रूप चौदस भी कहते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन विशेष स्नान और सौंदर्य प्रसाधनों के प्रयोग से रूप-सौंदर्य में निखार आता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। यही आंतरिक शुद्धि असली रोशनी है।
दीपावली: सत्य, धर्म और आशा की विजय
मुख्य पर्व दीपावली भगवान राम के अयोध्या आगमन की याद दिलाता है, अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक। लेकिन इसके पीछे का गहरा संदेश है, हर लंबी रात के बाद उजाला आता है। लक्ष्मी पूजन समृद्धि और गणेश पूजन बुद्धि और शुभता का प्रतीक है। यह संतुलन ही सफलता की कुंजी है। दीपावली हमें प्रेरित करती है कि हम न सिर्फ अपने लिए, बल्कि दूसरों के जीवन में भी उजाला फैलाएं।
गोवर्धन पूजा: प्रकृति के प्रति आभार: दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा केवल आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का संदेश देती है। यह हमें याद दिलाती है कि असली समृद्धि भूमि और पर्यावरण से आती है। विकास तभी स्थायी है जब वह प्रकृति के साथ सामंजस्य में हो।
भाई दूज: विश्वास और सुरक्षा का बंधन: दीपोत्सव की श्रृंखला का अंतिम पर्व भाई दूज है, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का उत्सव। यह केवल तिलक और मिठाई का पर्व नहीं, बल्कि विश्वास और भावनात्मक सुरक्षा का प्रतीक है। एक बहन की मंगलकामना और एक भाई का वचन, समाज में रिश्तों की बुनियाद को मज़बूत बनाते हैं।
आओ, मन के दीप जलाएं
दीपावली हमें केवल घरों को नहीं, मन को भी रोशन करने की सीख देती है। जहां कोई दुखी हो, वहां एक दीप लेकर जाएं। जहां कोई अकेला हो, उसका हाथ थामें। जहां मतभेद हों, वहां प्रेम की लौ जलाएं। जब एक दीप जलता है, तो अंधकार मिटता है: जब हजारों मनों में दीप जलते हैं, तो समाज उजाला हो जाता है। दीपावली हमें प्रेरित करती है कि हम प्रकाश पर्व बनाएं, अपने भीतर भी और समाज में भी।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)
