
- अब गोलमटोल जवाब देकर नहीं बच पाएंगे विभागों
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा में माना जाता है कि यहां मंत्री जो वादे करेंगे, जो आश्वासन देंगे वे पूरे होंगे। लेकिन मंत्रियों के वादे पूरे होते हैं कि नहीं इसका हिसाब-किताब कोई नहीं रखता है। ऐसे में अब मप्र विधानसभा ने आगे कदम बढ़ाया है और मंत्रियों के वादों और विधायकों के सवाल का जवाब विभागों से लेने का वीणा उठाया है। यानी अब विभाग गोलमटोल जवाब देकर विभाग नहीं बच पाएंगे। विधानसभा संचालन के बने नियमों में साफ है कि यदि कोई मंत्री सत्र के दौरान सदन के भीतर कोई आश्वासन देता है तो उसे कम से कम 15 दिन और अधिकतम एक माह में पूरा होना चाहिए। मप्र की स्थिति यह है कि 15 साल से आश्वासन लंबित हैं। जिन आश्वासनों की एक बार भी जानकारी नहीं आई है, ऐसे 1251 आश्वासन 31 अगस्त 2025 तक पेंडिंग थे। इसी तरह जिनकी एक या दो बार जानकारी आ चुकी है, इनकी संख्या 2240 थी। एक माह बाद 13 अक्टूबर की स्थिति में जिनकी जानकारी नहीं आती थी, उसमें 300 जवाब आ गए। बाकी में 13 की जानकारी आई।
दरअसल, विधानसभा सत्र के दौरान विधायक सदन में सवाल पूछते हैं कि सरकार जवाब जरूर देगी। लेकिन सरकार कई सवालों के जवाब लगातार टालती आ रही है। विधायकों को कहना है कि यह सीधे-सीधे उनके हक पर प्रहार है। क्योंकि सदन में विधायकों का सबसे बड़ा अधिकार सवाल पूछने का है, लेकिन उन्हें उसी के जवाब नहीं मिल रहे हैं। अधिकांश सवालों का एक जवाब मिला है कि जानकारी जुटाई जा रही है। मप्र विधानसभा सत्रों में विभागों की तरफ से विधायकों के प्रश्नों का द्वारा उत्तर नहीं देने का मुद्दा उठता है। गौरतलब है कि जनता के कामों को पूरा करने के लिए मंत्रियों ने सदन में जो वादे किए, विधानसभा अब उनका जवाब लेने के लिए विभागों के पीछे पड़ गई है। एक हजार से ज्यादा ऐसे आश्वासन थे, जिनके बारे में बार-बार पूछने पर भी विभागों ने जानकारी नहीं भेजी थी, उसमें से 300 के जवाब पहली बार एक महीने के भीतर आए हैं। शासकीय आश्वासनों संबंधी समिति की बैठकें ऐसी हो रही हैं, जैसे सत्र चलता है। विभागों के जिन अधिकारियों को मौखिक साक्ष्य के लिए बुलाया जाता है, उन्हें लंच दिया जा रहा है ताकि कोई बहानेबाजी न चल सके।
लंबित आश्वासनों की लिस्ट तैयार
विधानसभा सूत्रों की मानें तो इस समय 2009 से अभी तक लंबित आश्वासनों की संख्या 3130 है। सबसे ज्यादा नगरीय विकास विभाग के 500 आश्वासन हैं। कृषि विभाग के 222 आश्वासन हैं। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इन सभी आश्वासनों की लिस्ट बनाकर इसके निपटारे की व्यवस्था बना दी है। गौरतलब है कि अधिकांश विधायकों का दर्द यह है कि वे बड़ी उम्मीद के साथ कोई सवाल लगाते हैं, लेकिन उनका जवाब नहीं मिलता है। मिली जानकारी के अनुसार 2019 से अब तक एक जैसे 500 सवालों का एक ही जवाब जानकारी जुटा रहे। विधायकों को ज्यादातर राज्य में हुए घोटालों, सरकारी योजनाओं की असफलता, अनाब-शनाब खर्च से जुड़े हैं। इन सवालों के जवाब नहीं मिले हैं, जिसके जवाब आने और जनता के बीच जाने से सरकार की किरकिरी होती। इस किरकिरी से बचने के लिए सरकार लगातार सवालों के जवाब टालती रही। गौरतलब हे कि सत्र की अधिसूचना के साथ ही विधायक लिखित सवाल विधानसभा सचिवालय को देते हैं। सचिवालय इनके जवाब सरकार से लेकर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करता है। सदन में ये जवाब पेश होते हैं। मंत्री जवाब देते हैं। यदि एक सत्र में कोई जवाब नहीं आता तो उसे अगले सत्र में पेश करना अनिवार्य होता है, लेकिन विभाग इसमें लापरवाही करते हैं।
घपल-घोटालों से संबंधित अधिक वादे
मंत्रियों द्वारा दिए गए वे अधिकांश वादे लंबित हैं, जो घपले-घोटालों से संबंधित हैं। जनजातीय और अनुसूचित जाति विभाग में स्कॉलरशिप घोटाला जो अलग-अलग ब्लॉक में पकड़ा गया। मंत्री ने सदन में कार्रवाई का आश्वासन दिया, लेकिन विभाग ये कह रहे हैं कि 4 से 6 साल से विभागीय जांच चल रही है। ग्राम पंचायतों में सुविधाएं बढ़ें, इसलिए क्षेत्रों को नगर परिषद या नगर पंचायत में जोडऩे का वादा था। आज तक नहीं हुआ पूरा। शहरों की पॉश कॉलोनी के पास से झुग्गी हटाने की आश्वासन जो लंबित है। शहरी और ग्रामीण आवास की शिकायतें, लोगों को आवास नहीं मिले, भ्रष्टाचार की जानकारी आदि मामले लंबित हैं। हाल ही में आश्वासन समिति की बैठक 10 नवंबर को विधानसभा में बुलाई गई है। इसमें राजस्व, पीडब्ल्यूडी, सहकारिता, जल संसाधन और इंडस्ट्री के अधिकारियों को बुलाया गया है। इनसे मौखिक साक्ष्य लिए जाएंगे। हाल ही में 13 अक्टूबर को पंचायत एवं ग्रामीण विकास, नगरीय प्रशासन और विकास, गृह, जनजातीय और अनुसूचित जाति कल्याण विभाग तलब हुए थे। 29 सितंबर को गृह, इंडस्ट्री, एमएसएमई, जनजातीय कार्य और खनिज विभाग को साक्ष्य के लिए विधानसभा में बुलाया जा चुका है। इसी वजह से आश्वासनों की स्थिति बेहतर होती जा रही है।
विधानसभा की कार्यवाही में हर घंटे ढाई लाख खर्च
गौरतलब है कि जनता के टैक्स के पैसे से जवाब तैयार होता है। बता दें कि विधायकों की एक सवाल की कीमत औसतन हजारों में है। सदन में पूछे गए कुछ सवालों के जवाब जुटाने में गांव से भी जानकारी मंगाई जाती है। विधानसभा की कार्यवाही में हर घंटे ढाई लाख रुपये तक का खर्च आता है। इस हिसाब से यदि 5 घंटे सदन चला तो कुल खर्च 12.50 लाख तक आता है। विधायक द्वारा पूछे गए किसी एक सवाल का जवाब तैयार करने में विधायक उनके स्टाफ का वेतन, विधानसभा के स्टाफ, संभाग और जिला स्तर पर खर्च होने वाला खर्च शामिल है। इसमें कर्मचारी का वेतन, विशेष भत्ता फोटोकॉपी डाक या व्यक्ति द्वारा दस्तावेज भोपाल ले जाने का खर्च शामिल है।
