कागजों में यूनिटें बनाकर ली जा रही सब्सिडी

सब्सिडी

मप्र में चल रहा है सब्सिडी का खेल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार ने लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित कर रखी हैं। वहीं विभिन्न योजनाओं के तहत सब्सिडी दी जा रही है, ताकि लोग उसका फायदा उठाकर अपनी आय बढ़ाएं। लेकिन देखा यह जा रहा है कि मप्र में हितग्राहियों, बैंक और अधिकारियों की मिलीभगत से सब्सिडी का खेल चल रहा है। ताजा मामला प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज (पीएमएफएमई) योजना में सामने आया है। जिसमें कागजों में यूनिटें दिखाकर सब्सिडी हडंपने का खेल खेला गया है।
गौरतलब है कि केंद्र ने पीएमएफएमई के तहत उद्यानिकी विभाग से जोडकऱ खाद्य पदार्थों की इकाई शुरू करने योजना शुरू की है। इस योजना में बैंक लोन पर 35 प्रतिशत या अधिकतम 10 लाख रु तक सब्सिडी मिलती है। उद्देश्य है फूड इकाईं शुरू होंगी तो बेरोजगार को रोजगार मिलेगा और युवा आत्मनिर्भर होंगे। जानकारी के अनुसार, पीएमएफएमई के तहत मध्यप्रदेश में बड़ा घोटाला हुआ है। ग्वालियर, भिंड और मुरैना में खेतों में केवल टीनशेड लगाकर फर्जी यूनिटें बनाई गई हैं। इन फर्जी यूनिटों के नाम पर करोड़ों रुपए के लोन और लाखों की सब्सिडी केवल 3 माह में ही ले ली गई।  प्रदेशभर में 7,985 लाभार्थियों को 1.03 लाख करोड़ रु. का लोन व 272 करोड़ की सब्सिडी दी गई, जिनमें से कई यूनिटें फर्जी हैं।  ज्यादातर यूनिट का वजूद ही नहीं है।  ग्वालियर के पिछोर में टीन शेड लगाकर फर्जी यूनिट दिखाया गया है। दावा है कि यहां पोहा इंडस्ट्री, ऑयल मिल, पास्ता, सोया बड़ी और पशु आहार समेत 8 यूनिटें हैं। हकीकत यह है कि केवल यूनिट के बोर्ड लगे हैं। अंदर गिट्टी और खाली जगह पड़ी है।
कपड़ा और किराना दुकानों के फर्जी कोटेशन
सब्सिडी पाने के लिए यह घोटाला मिलीभगत से हुआ है। इसका प्रमाण यह है कि माइक्रो फूड यूनिट के लिए कपड़ा और किराना दुकानों के फर्जी कोटेशन प्रस्तुत किए गए। उद्यानिकी विभाग ने बिना जांच इन्हें मंजूरी दी, जबकि बैंकों ने दलालों के जरिए लोन और सब्सिडी पास कर दी। ग्वालियर में उद्यानिकी के असिस्टेंट डायरेक्टर एमपीएस बुंदेला, ने बताया कि आंतरिक जांच करवाई गई है। कुछ गड़बडिय़ां मिली हैं। इस फर्जीवाड़ में  विभाग और बैंक की भूमिका संदिग्ध है। क्योंकि उद्यानिकी विभाग में पीएमएफएमई के लिए डीआरपी (डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स पर्सन) बनाए गए हैं, जो हितग्राही से डॉक्यूमेंटेशन कराने के साथ-साथ प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी बनाकर देते हैं। इसके बाद विभाग जांच कर संबंधित फाइल को बैंक में लोन के लिए बढ़ाता है। उद्यानिकी विभाग से प्रकरण मिलने के बाद बैंक की एप्रूवल कमेटी (बैंक का आरएएसी डिपार्टमेंट) लोन पर निर्णय लेती है। लोन मंजूर करने से लेकर राशि जारी करने तक संबंधित बैंक की दूसरी शाखा या बैंक के रीजनल ऑफिस से दल जाकर जांच करता है। पिछोर में कृषि मंडी के सामने खेत में फर्जी यूनिटें दिखाई गईं। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, तुरारी शाखा, ने अगस्त-सितंबर 2024 के बीच हर यूनिट को करीब 24.30 लाख का लोन व तीन माह में 10-10 लाख की सब्सिडी दी। बैंक की रीजनल मैनेजर प्रियंका बंसल ने इसे इंटरनल मैटर बताया। एलडीएम अमिता शर्मा ने जांच की बात कही है। भिंड में जयपाल सिंह को ऑयल मिल के लिए 1.15 करोड़ का लोन, 10 लाख की सब्सिडी मिली। जांच में यूनिट नहीं मिली। मोबाइल नंबर भी गलत था। इसी भूखंड पर कई लोन पास हुए थे। 5 साल में लाभार्थियों की संख्या 62 से बढकऱ 3,150 हो गई। इस तेजी से बढ़ती संख्या के साथ फर्जी यूनिटों और सब्सिडी/लोन घोटालों के जोखिम भी बढ़ गए हैं।

Related Articles