- अब पुलिस अमले को दिलाई जाएगी स्पेशल ट्रेनिंग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
देश का हृदय प्रदेश ड्रगिस्तान बनने लगा है। प्रदेश मादक पदार्थों की तस्करी का कॉरिडोर बन गया है। हालांकि पुलिस की सतर्कता से मादक पदार्थों की तस्करी करने वालों को पकड़ा जा रहा है, लेकिन सबूतों के अभाव में आधे तस्कर बरी हो जाते हैं। इस स्थिति को देखते हुए एनडीपीएस मामलों में धरपकड़ और सजा का ग्राफ बढ़ाने के लिए विवेचकों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी।
गौरतलब है कि मप्र में युवाओं के बीच नशे का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। पुलिस इसे पकडऩे के लिए हर बार जाल डालती है, लेकिन उसमें सिर्फ छोटे सप्लायर ही पकड़े जाते हैं, जबकि उस धंधे के मास्टरमाइंड छुपे रह जाते हैं। पुलिस से बचकर यही मास्टरमाइंड नए तस्कर तैयार कर लेते हैं और फिर उनके जरिए नशे का कारोबार शहर में पैर जमाए रहता है। एडीजी नारकोटिक्स विंग केपी वेंकटेश्वर राव का कहना है कि एनडीपीएस के मामलों में कई बार तस्कर जांच प्रक्रिया में कमियों का फायदा उठाकर सजा से बच जाते हैं। सजा का ग्राफ बढ़ाने के लिए जांच अधिकारियों के लिए स्पेशल ट्रेनिंग का प्लान है। जल्द ही इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।
विवेचकों को मिलेगी स्पेशल ट्रेनिंग
मध्य प्रदेश पुलिस मादक पदार्थो की तस्करी एनडीपीएस के मामलों में सख्त है और आरोपियों की धरपकड़ में भी तेजी दिखा रही है लेकिन हकीकत यह है कि पचास प्रतिशत से ज्यादा आरोपी पुख्ता सबूतों के अभाव या अन्य कारणों से अदालत से बरी हो रहे है। इससे पुलिस की मेहनत पर पानी फिर रहा है। अब इसके लिए नारकोटिक्स विंग का पुलिस अमले को स्पेशल ट्रेनिंग दिलाए जाने का प्लान है ताकि आरोपियों को सजा दिलाने का ग्राफ बढ़ाया जा सके। इसके लिए रिटायर्ड अफसरों की मदद भी ली जाएगी। पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों पर नजर डाली जा, तो वर्ष 2024 में ही एनडीपीएस एक्ट से संबंधित 1444 मामलों में पुलिस और लोक अभियोजन केवल 536 तस्करों को ही अदालत से सजा दिला सके। वहीं 686 तस्कर अदालत से बरी हो गए। इसके अतिरिक्त 7 आरोपियों को सजा से डिस्चार्ज कर दिया गया और 210 आरोपी फरार ही रहे। पुलिस मुख्यालय के अफसरों की माने तो इस तरह के मामलों में आरोपियों को सजा दिलाने पर पूरा फोकस है। इसके लिए अब जांच अधिकारियों और विवेचकों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी।
नवीन तकनीकों से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाएगी
तस्करों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए नारकोटिक्स विंग अब ऐसे मामलों में डिजिटल सबूत जुटाने, मादक पदार्थों की जब्ती और फोरेंसिक दस्तावेजों की सटीक जांच के लिए पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों को नवीन तकनीकों से जुड़ी ट्रेनिंग देगा। इस दौरान एफएसएल वैज्ञानिक और साइबर विशेषज्ञों सहित रिटायर्ड अफसरों की मदद भी ली जाएगी। प्रदेश भर में एनडीपीएस के वर्ष 2020 के आंकड़ों को देखा जाय तो सजा का प्रतिशत 58.82 प्रतिशत रहा। 222 मामलों में से 110 आरोपियों को सजा मिली, जबकि 77 बरी हुए। 32 अभी तक फरार है। इधर वर्ष 2021- सजा का आंकड़ा बढकऱ 63.36 फीसदी रहा। 924 मामलों में से 268 को सजा हुई और 156 बरी हो गए। 496 फरार हुए जबकि 2 केस वापस लिए गए। इसी क्रम में वर्ष 2022- कुल 1013 मामलों में से 530 को सजा हुई, जबकि 327 अदालत से दोषमुक्त कर दिए गए। 111 आरोपी फरार रहे। सजा का प्रतिशत 61.84 रहा। वर्ष 2023-1651 मामलों में से 788 में सजा हुई, जबकि 632 बरी कर दिए गए। सजा का प्रतिशत 55.49 फीसदी रहा। 214 फरार घोषित हुए।
मप क्यों बना ड्रग माफिया का ठिकाना
मप्र की भौगोलिक स्थिति ही तस्करों के लिए मुफीद है। तस्करों के लिए ब्यावरा के रास्ते राजस्थान में सीधी एंट्री हो जाती है। मप्र से हरियाणा और दिल्ली तक सीधी पहुंच है। चेक पोस्ट की कमी और पुलिस निगरानी के अभाव के कारण यह तस्करों के लिए मुफीद है। सुनसान इलाके, जहां ड्रग फैक्ट्रियां बिना रोकटोक चलाई जा सकती हैं। फैक्ट्रियों को इस तरह प्लान किया गया है कि उनकी स्थानीय आपूर्ति न के बराबर हो, ताकि पुलिस की नजरों से बचा जा सके। सप्लाई सीधे हाईवे के जरिए अन्य राज्यों तक पहुंचाई जाती थी।