अशांत दुनिया में भारत का उदय एक असाधारण यात्रा: जयशंकर

 जयशंकर

नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘अरावली समिट’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। यह सम्मेलन जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईएस) की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया है। दो दिन चलने वाला यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन छह और सात अक्तूबर को आयोजित हो रहा है, जिसका विषय है ‘भारत और विश्व व्यवस्था- 2047 की तैयारी’। इस आयोजन का उद्देश्य यह समझना है कि स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करने की ओर बढ़ते भारत की वैश्विक भूमिका कैसी होगी। बता दें कि इसका आयोजन विदेश मंत्रालय और चिंतन रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से किया गया है।

संबोधन के दौरान एस. जयशंकर ने जेएनयू और एसआईएस के साथ अपने पुराने जुड़ाव को याद किया। उन्होंने बताया कि जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की पढ़ाई ने उनकी राजनयिक यात्रा में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपने शिक्षकों और साथियों का आभार भी व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि एसआईएस की शुरुआत उस समय हुई थी जब भारत ने आजादी के बाद फिर से दुनिया से संवाद शुरू किया था। अब समय है कि यह संस्थान विकासशील भारत (विकसित भारत) के एजेंडे को आगे बढ़ाए।

जयशंकर ने मौजूदा वैश्विक हालात पर बात करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि भारत का उदय एक ऐसे समय में हो रहा है जो काफी उथल-पुथल से भरा हुआ है। जब मैं विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक व्यवस्था पर अपने शोध को याद करता हूं, तो आज के बदलाव उससे कहीं तेज़ और व्यापक लगते हैं। उन्होंने बताया कि आज दुनिया में कई बड़े बदलाव हो रहे हैं। जैसे कि वैश्विक निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) का एक बड़ा हिस्सा एक ही क्षेत्र में सिमट गया है, जिससे आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ा है। कई देशों में वैश्वीकरण के खिलाफ भावना बढ़ रही है। व्यापार में टैरिफ की अनिश्चितता ने पुराने नियमों को पलट दिया है। साथ ही अमेरिका अब एक बड़ा तेल निर्यातक बन गया है, जबकि चीन अक्षय ऊर्जा में अग्रणी है।

जयशंकर ने कहा कि हथियारों की गुणवत्ता और युद्ध का तरीका भी बदल चुका है, यह अब ज्यादा दूर से, ज्यादा असरदार और कहीं अधिक जोखिम भरा हो गया है। उन्होंने चेताया कि तकनीक के कारण अब संप्रभुता पर खतरा बढ़ गया है। वैश्विक नियम बदल रहे हैं या कई बार पूरी तरह खारिज हो रहे हैं। अब सिर्फ लागत नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्वामित्व भी व्यापार में मायने रखते हैं। इसके साथ ही जयशंकर ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की रक्षा करते हुए कहा कि सोचिए अगर हम आज रणनीतिक स्वायत्तता नहीं अपनाते, तो किस देश के साथ जुड़कर आप अपना भविष्य सौंपना चाहेंगे? उन्होंने कहा कि जब दुनिया अस्थिर होती जा रही है, तब बहु-संबंधों और रणनीतिक स्वायत्तता की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।

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