
- विरोध में प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों ने सरकार को लिखा पत्र
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में आयुष्मान भारत निरामय योजना से जुड़े अस्पतालों को लेकर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है। सरकार ने आदेश जारी किया है कि अप्रैल 2026 से केवल वही अस्पताल आयुष्मान योजना में बने रहेंगे जिनके पास राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली प्राधिकरण (एनएबीएच) का फाइनल सर्टिफिकेट होगा। जिन अस्पतालों के पास यह मान्यता नहीं है, वे योजना से बाहर कर दिए जाएंगे। इस सख्ती के बाद भोपाल समेत पूरे प्रदेश के सैकड़ों अस्पतालों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।
सवाल उठे, सरकारी अस्पतालों पर क्यों नहीं नियम
सवाल यह उठाया है कि जब प्रदेश के ज्यादातर सरकारी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल खुद एनएबीएच से मान्यता प्राप्त नहीं हैं, तो सिर्फ निजी अस्पतालों पर यह शर्त क्यों थोपी जा रही है। उनका कहना है कि यह भेदभावपूर्ण और अनुचित है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आयुष्मान योजना का उद्देश्य सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों की साझेदारी से गरीबों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना है। एनएबीएच यानी नेशनल एक्रेडिटेबिलिटी बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स का सर्टिफिकेट अस्पतालों की गुणवत्ता, सुरक्षा और सेवाओं की पुष्टि करता है। इसमें 600 से ज्यादा पैरामीटर की जांच की जाती है। मरीजों की सुरक्षा, सफाई, दवा की उपलब्धता, नर्सिंग स्टाफ की मौजूदगी, इमरजेंसी सुविधाएं, सर्जरी और इलाज की स्टैंडर्ड प्रक्रियाएं इसमें शामिल होती हैं। यह स्वास्थ्य सेवाओं के लिए देश का सबसे उच्च स्तर का सर्टिफिकेट माना जाता है। सरकार का मानना है कि एनएबीएच सर्टिफिकेट मरीजों को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण इलाज दिलाने का भरोसा देता है।
निजी अस्पतालों की आपत्ति
मध्यप्रदेश नर्सिंग होम एसोसिएशन (एमपीएनएच) और आईएमए स्टेट जबलपुर ने इस आदेश का विरोध किया है। दोनों संगठनों ने 23 सितंबर 2025 को जारी सर्कुलर के खिलाफ आयुष्मान भारत के राज्य कार्यालय को पत्र लिखा है। जिसमें कहा गया है कि जब अस्पतालों को योजना में जोड़ा गया था, तब एंट्री लेवल एनएबीएच या अन्य क्वालिटी सर्टिफिकेट ही पर्याप्त माने गए थे। अब अचानक 6 महीने के भीतर फाइनल एनएबीएच लागू करना एग्रीमेंट की शों का उल्लंघन है। क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में भी फाइनल एनएबीएच की कोई अनिवार्यता नहीं है। यह एक वॉलंटरी एक्रिडिटेशन है, जिसे मजबूरी बनाना गलत है। जबकि, अभी देश के ज्यादातर राज्यों में फाइनल एनएबीएच जरूरी नहीं है। न ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने इसे अनिवार्य किया है। ऐसे में मध्यप्रदेश की यह शर्त अलग-थलग और अनुचित है।
प्रदेश में 984 सरकारी व 640 प्राइवेट अस्पताल
फिलहाल पूरे प्रदेश में 984 सरकारी और 640 प्राइवेट यानी कुल 1,624 अस्पताल आयुष्मान योजना से इम्पैनल हैं। इनमें से सिर्फ 295 अस्पतालों को ही फाइनल एनएबीएच का सर्टिफिकेट मिला है। भोपाल में 29 सरकारी और 194 प्राइवेट अस्पताल इस योजना से जुड़े हैं। लेकिन इनमें से बहुत कम अस्पताल एनएबीएच से मान्यता प्राप्त हैं। इसका सीधा मतलब है कि अप्रैल 2026 के बाद बड़ी संख्या में अस्पताल आयुष्मान से बाहर हो सकते हैं।
मरीजों पर पड़ेगा असर
गरीब और आयुष्मान कार्डधारक मरीजों को इलाज के विकल्प बेहद कम हो जाएंगे। सरकारी अस्पतालों पर अचानक भार बढ़ेगा। दूर-दराज से आने वाले मरीजों को राजधानी और बड़े शहरों में भर्ती होना मुश्किल होगा। कई छोटे निजी अस्पताल भी आयुष्मान योजना से जुड़े हैं। जो योजना के तहत मरीजों का मुफ्त इलाज करते हैं। लेकिन एनएबीएच की प्रक्रिया इतनी महंगी और जटिल है कि छोटे अस्पताल इसे पूरा ही नहीं कर पाएंगे। नतीजा यह होगा कि ये अस्पताल आयुष्मान से बाहर हो जाएंगे।