भूमि के अभाव में अटकी परियोजनाएं

  • मप्र सरकारी जमीनों की हो गई बंदरबांट
  • गौरव चौहान
अटकी परियोजनाएं

मप्र में एक तरफ सरकार औद्योगिक विकास के लिए देश-विदेश से निवेशकों को आमंत्रित कर रही है। दूसरी तरफ स्थिति यह है कि प्रदेश में जमीनों की कमी होने लगी है। इसकी वजह यह है कि या तो सरकारी जमीनों पर कब्जा हो गया है, या फिर उनकी बंदरबांट हो गई है। सरकारी जमीनों पर कब्जा और बंदरबांट का असर यह हो रहा है कि भूमि के अभाव में कई परियोजनाएं अटकी हुई हैं।
दरअसल, प्रदेश में जिस तेजी से शहरीकरण हो रहा है, उसी तेजी से सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण भी किया जा रहा है। आलम यह है कि भू-माफिया वन क्षेत्रों में भी अतिक्रमण कर रहे हैं। प्रदेश में सरकारी जमीन हथियाने का खेल चरम पर है। अकेले भोपाल में 1000 से से ज्यादा स्थानों पर सरकारी जमीनें कब्जाई है। ये बीते 10 सालों का रिकार्ड है। इसमें कितनी जमीन है, यह प्रशासन को भी नहीं मालूम। इनमें से कुछ कब्जे चिह्नित है तो कुछ पर अब तक प्रशासन की नजर ही नहीं पड़ी। शहरों में ज्यादातर कब्जे धार्मिक स्थलों के निर्माण के नाम पर किए जा रहे हैं। इसके बाद झुग्गी माफिया भी सक्रिय है। जबकि वन क्षेत्रों में पट्टा पाने की होड़ मची है। कई लोग मूल घर को छोडकऱ दूसरे स्थानों पर भूमिहीन बनकर कब्जा कर रहे हैं।
15 से ज्यादा परियोजनाएं अटकी
एक तरफ सरकारी जमीन की बंदरबांट हो रही है तो दूसरी तरफ जमीन की कमी के कारण 15 से ज्यादा छोटी-बड़ी परियोजनाएं अटकी हैं। इनमें ज्यादातर तो केंद्र से जुड़ी है। आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे व राशिद नूर खान कहते हैं कि प्रदेश में साजिश के तहत जमीनों का बंदरबांट हो रहा है। इसके पीछे बड़े गिरोह हैं, जो सुनियोजित तरीके से यह काम कर रहे हैं। अभियान चलाकर जमीनों को कब्जा मुक्त किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं किया तो सरकारी जमीनें विवादों में घिर जाएंगी। वर्षों तक कोर्ट केस चलते रहेंगे। प्रदेश में जमीनें कब्जाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में सबसे पहले धार्मिक स्थलों के नाम पर पसंद की सरकारी जमीनों पर कार्यर म कराते हैं। फिर पक्का निर्माण करते हैं। झुग्गियों के लिए जमीन कब्जाने के मामले में पहले त्रिपाल या लकडिय़ों के सहारे झोपड़ी बनाते हैं, कुछ दिनों तक उसमें किराये के लोग रखते हैं फिर धीरे से निर्माण करने लगते हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन बनकर चरनोई व वन भूमि पर कब्जा करते हैं, झोपड़ी तानकर कुछ महीने तक खाली छोड़ते हैं। बाहर से निगरानी करते हैं और जब कोई विरोध नहीं होता तो निर्माण शुरू कर देते हैं। कई बार तो अतिक्रमण कर कब्जा करने के बाद दूसरों को बेच भी देते हैं। भोपाल शहर में सडक़ों के किनारे ग्रीन बेल्ट में पक्का निर्माण किया जा रहा है। 10 नंबर मार्केट, एम्स के सामने से बरखेड़ा, अमलताश चौराहे से सीमेंट रोड के दोनों किनारे बायपास की ओर कई स्थानों पर सैंकड़ों एकड़ जमीन कब्जा की जा रही है। समसगढ़ में छोटे झाड़ की कई एकड़ जमीन पर कब्जा है। मैहर में एक सीमेंट फैक्ट्री को करीब 200 एकड़ जमीन 100 साल के लिए दी थी। इस जमीन की आड़ में उक्त फैक्ट्री प्रबंधन ने 70 एकड़ जमीन कब्जा ली, उस पर निर्माण कर लिया। 2002 में यह मामला पकड़ में लाया, लेकिन तब से लेकर अब तक कार्रवाई के नाम पर कागज चल रहे हैं। विभाग के अधिकारी जमीन खाली नहीं करा पा रहे।
वन क्षेत्रों में लगातार अतिक्रमण
प्रदेश के वन क्षेत्रों में लगातार अतिक्रमण हो रहे हैं। जानकारों की माने तो इनमें से कई मामले ऐसे हैं, जो शुरुआत में अतिक्रमण थे, वन शुरुआत म विभाग के मैदानी अमले ने इन्हें ढिलाई दी, जिससे ये पुराने हो गए और फिर पट्टा पाने के हकदार हुए। प्रदेश में वनों में वर्ष 2020 में 1928 प्रकरणों में 2490 क्षेत्र में अतिक्रमण का मामला सामने आया। वहीं 2021 में 1825 प्रकरणों में 2110 क्षेत्र, 2022 में 1593 प्रकरणों में 3298 क्षेत्र, 2023 में 1257 प्रकरणों में 2161 क्षेत्र, 2024 में 1122 प्रकरणों में 1808 क्षेत्र में अतिक्रमण के मामले सामने आए। प्रदेश में वन विभाग ने वर्ष 2008 से 2023 तक 2 लाख 89 हजार 461 वनाधिकार दावे मान्य किए गए। वर्तमान में पुन: परीक्षण के लिए 87 हजार 283 और 1 लाख 86 हजार 224 नए दावे हैं। इस तरह कुल 2 लाख 73 हजार 457 दावे लंबित है। जबकि बड़वानी, धार, खरगोन, मंडला, बैतूल, छिंदवाड़ा, शहडोल, खंडवा, सिंगरौली, रायसेन, डिंडौरी, आलीराजपुर, बुरहानपुर, सिवनी, उमरिया और बालाघाट जिले में 7-7 हजार से भी अधिक वनाधिकार दावे मान्य किए जा चुके हैं।

Related Articles