- जीएसटी 2.0 से मप्र की जेब खाली…वित्तीय भार कम करने होगी खर्चों में कटौती
- गौरव चौहान

मध्यप्रदेश की वित्तीय स्थिति पर जीएसटी 2.0 का बड़ा असर पड़ा है। नए नियमों के चलते राज्य को 12,000 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। नतीजा यह होगा कि अब सरकार को अपने खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ेगी। सरकारी दफ्तरों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए आदेश जारी किए गए हैं। गाडिय़ों की खरीदी बंद कर दी गई है। नए दफ्तरों का निर्माण टल गया है। डायरी और कैलेंडर छपाई रुकी, वहीं विदेश यात्राओं पर ब्रेक और बड़े आयोजनों पर लगाम लगाई जा रही है। वित्त विभाग के अफसरों का मानना है कि अब राज्य सरकार को अपनी प्राथमिकताओं को फिर से तय करना होगा। जरूरी योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों को प्राथमिकता मिलेगी, जबकि बाकी खर्चों पर कैंची चलेगी।
जानकारी के अनुसार, जीएसटी 2.0 के कारण केंद्र के हिस्से में 12-13 प्रतिशत तक की कमी आई है। इसी वजह से राज्य सरकार को गाडिय़ों की खरीद, नए दफ्तरों का निर्माण, डायरी-कैलेंडर की छपाई और विदेश यात्राओं जैसे बड़े खर्चों पर रोक लगानी पड़ी है। सरकार ने हाल ही में पुलिस और अन्य विभागों के लिए नई वर्दियां देने की योजना बनाई थी, लेकिन अब इस पर भी रोक लगने की संभावना है। नए प्रोजेक्ट्स और योजनाओं के लिए फंड का इंतजार करना होगा। राज्य सरकार को मिलने वाली जीएसटी भरपाई (कंपनसेशन) घटने से सीधा असर विकास योजनाओं और कर्मचारियों के भत्तों पर पड़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश को हर साल लगभग 12 हजार करोड़ रुपये की मदद मिलती थी, लेकिन अब इस सहायता में बड़ी कटौती हो चुकी है।
आम आदमी पर कोई बोझ नहीं
जीएसटी में आम आदमी को मिलने वाली टैक्स छूट का असर प्रदेश के खजाने पर भी पड़ेगा पर सरकार आम आदमी पर कोई बोझ नहीं डालेगी बल्कि वह अपने खर्चों में कटौती करेगी। इसके लिए विभिन्न विभागों ने कवायद भी शुरू कर दी है। वित्त विभाग जहां एक अफसर, एक वाहन के फार्मूले पर विचार कर रहा है वहीं नगरीय निकायों में ई वाहन पर जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही सोलर सिस्टम बढ़ाकर बिजली पर होने वाले खर्चों में भी भारी कमी का प्लान तैयार किया गया है। जीएसटी में किए गए टैक्स छूट प्रावधानों का असर एमपी पर भी पड़ेगा। माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश को जीएसटी में केन्द्र सरकार से मिलने वाली राशि सालाना 25 सौ करोड़ रुपए की कमी आएगी। इसके लिए सरकार अब मितव्ययता पर गंभीरता से विचार कर रही है। जल्द ही सभी विभागों से कहा जाएगा कि वे अपने अनावश्यक खर्चों को कम करें और इस बात के भी सुझाव लिए जाएंगे कि खर्चों को कैसे कम किया जा सकता है। सूत्रों की माने तो इसमें सबसे पहले एक अफसर एक-एक वाहन पर विचार किया जा रहा है। यह फार्मूला मंत्रियों पर भी लागू किया जा सकता है।
अफसरों के वाहनों में कटौती
सरकार के संज्ञान में आया है कि अभी कई अफसरों के पास दो से चार वाहन है। दरअसल कई आला अफसरों के पास एक से अधिक विभागों समेत निगम मंडलों, बोर्ड आदि के प्रभार भी है। ये अधिकारी कई जगह से गाड़ी लिए हुए हैं। यह बात भी सरकार के ध्यान में लाई गई है कि कुछ अफसर जिन पुराने विभागों में थे, वहां से तबादला होने के बाद भी वे उस विभाग का एक वाहन अपने पास रखे हुए हैं। अब एक से अधिक वाहन वाले अफसरों की सूची तैयार हो सकती है। इसकी जानकारी अधिकारियों के विभाग से ही बुलवाई जा रही है। अधिकांश विभागों में सरकारी वाहनों के अलावा किराए के वाहन लिए गए हैं। इन पर होने वाले खर्चों का भी अनुमान लगाया जा रहा है। अफसरों को ई वाहन उपलब्ध कराने पर भी विचार हो रहा है। इसके अलावा किस अफसर के यहां कितने कर्मचारी तैनात है इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है। सूत्रों की माने तो आउटसोर्स का सिस्टम जबसे लागू हुआ है तब से अनेक विभागों में आला अधिकारी से लेकर प्रथम श्रेणी के अधिकारी तक के पास कई कर्मचारी तैनात हो गए हैं। अब इनमें भी कटौती की जा सकती है।
निकाय में लगेंगे सोलर पावर प्लांट
प्रदेश के नगरीय निकायों में बिजली आदि से होने वाले खर्चों को कंट्रोल किया जाएगा। नगरीय विकास विभाग ने अपने खर्चों को घटाने के लिए प्लान भी तैयार कर लिया है। विभाग ने सभी नगरीय निकायों को मितव्ययता अपनाने के निर्देश दिए हैं। निकायों से कहा गया है कि सबसे पहले अस्थाई बिजली कनेक्शन बंद करें और सोलर माडल को अपनाएं। अब प्रत्येक नगरीय निकाय में सोलर पावर प्लांट लगेगा। इससे बिजली की बचत होगी। इसके अलावा यह भी निर्णय लिया गया है कि कचरे के लिए अब जो भी नए वाहन खरीदे जाएंगे वे सभी ई वाहन होंगे। इसके लिए चार्जिंग पाइंट की भी व्यवस्था की जा रही है। विभाग का मानना है कि वह इन छोटे छोटे उपायों को अपनाकर हर साल 15 सौ करोड़ तक बचा सकता है। नगरीय निकायों से कहा गया है कि उनके पास जहां जगह है वे वहां सोलर प्लांट लगाने का प्रस्ताव संचालनालय को भेजें। गौरतलब है कि बिजली बिल में नगरीय निकायों की बड़ी राशि जा रही है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा जैसे शहरों में यह एक करोड़ से भी अधिक है। अब सबसे पहले इसे कम करने पर विचार हो रहा है।