
- रकबा घट रहा है, लेकिन खाद की खपत बढ़ रही
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में खेती की जमीन (रकबा) घटने के बावजूद रासायनिक खाद की खपत बढ़ रही है, जो चिंता का विषय है, क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। जैविक खेती का दायरा बढऩे के बावजूद रासायनिक खादों पर किसानों की निर्भरता जारी है, जिसका एक कारण पर्याप्त सिंचाई और उच्च उपज वाली किस्मों के साथ रासायनिक खादों का इस्तेमाल करना है। इस स्थिति में सरकार को खाद के वितरण पर नियंत्रण रखने और किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में खेती का रकबा हर साल घटने के बावजूद रासायनिक खाद की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। जैविक खेती के मामले में देश में पहले स्थान पर होने के बाद भी किसानों की रासायनिक खाद पर बढ़ती निर्भरता चिंताजनक है। कृषि विज्ञानियों का कहना है कि जिस तरह से अधिक उत्पादन के लिए मृदा की गुणवत्ता से खिलवाड़ किया जा रहा है, वह खतरनाक है। वर्ष 2022-23 में 149.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलें बोई गई थीं, जो 2025-26 में 146 लाख हेक्टेयर रह गईं। इससे विपरीत इस अवधि में खाद का उपयोग 29 लाख टन से बढकऱ 33.29 लाख टन (सितंबर प्रथम सप्ताह) पहुंच चुका है।
रासायनिक खाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
फसलों के उत्पादन बढ़ाने की खातिर रासायनिक खाद का अत्यधिक प्रयोग लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है। रसायनिक खादों के प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति भी कम होती जा रही है, वहीं मानव शरीर क्षारीय होने की वजह से लोग एसिडिटी से पीडि़त होते हैं। इसके बाद उनमें हाई ब्लड प्रेशर, शुगर और कैंसर की बीमारियां भी बढ़ रही हैं। पूर्व कृषि संचालक डॉ. जीएस कौशल का कहना है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान अधिक खाद का उपयोग करता है। तात्कालिक रूप से भले ही इससे लाभ मिलता है लेकिन दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होते। मृदा की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने के साथ भूजल पर भी असर पड़ता है। जो उपज होती है, उसकी गुणवत्ता भी ठीक नहीं होती। सह प्राध्यापक मेडिसिन डॉ. आरआर वर्डे का कहना है कि रासायनिक खाद के माध्यम से एक सीमा से अधिक रसायन मानव शरीर में पहुंचने पर दुष्प्रभाव पेट पर पड़ता है। पेट संबंधी बीमारियों के बाद अन्य अंगों पर भी प्रभाव होने लगता है। पोषक तत्व घटने से शरीर में विटामिन व मिनरल्स की कमी होती है। किडनी पर असर के साथ कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
एक लाख टन मांग बढ़ी
दरअसल, मप्र में सोयाबीन का रकबा घट गया और मक्का का रकबा पांच लाख हेक्टेयर बढ़ गया है, जिससे प्रदेश में यूरिया की मांग बढ़ गई है। यही कारण है कि प्रदेश के किसानों को समय पर खाद नहीं मिल पा रहा है। सितंबर महीने में करीब साढ़े तीन लाख मीट्रिक टन खाद की कमी है। खाद की किल्लत के कारण प्रदेश के कई जिलों के किसानों में आक्रोश है। कई जिलों में आए दिन प्रदर्शन भी हो रही है। घंटों लाइन में लगने के बाद भी किसान खाली हाथ लौट रहे हैं। इस साल प्रदेश में मक्का का रकबा बढऩे से यूरिया की मांग 1 लाख मीट्रिक टन बढ़ गई है। ऐसे में कई जिलों में मांग के अनुसार समय पर खाद पहुंच नहीं पा रही है। वहीं, जिन जिलों में खाद उपलब्ध है वहां इसका वितरण ठीक से नहीं हो पा रहा है। इन दो कारणों से ही जिलों में खाद के लिए मारामारी की स्थिति बन रही है।
जैविक खेती को प्रोत्साहन
देश में जैविक खेती के मामले में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। कुल जैविक उत्पादन में 40 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश से आता है। देश में 65 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती होती है जिसमें 16 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश का है फिर भी विरोधाभास यह है कि किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता बढ़ रही है। रासायनिक खाद-कीटनाशकों के नुकसान को देखते हुए वर्ष 2011 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने जैविक खेती को प्रोत्साहित करने विशेष नीति बनाई थी।