
- 2023-24 में मप्र को 42.51 करोड़ मिले, देशभर में हुआ 208.28 करोड़ का आवंटन…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
केंद्र सरकार का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 में देशभर के विभिन्न टाइगर रिजर्व को 208.28 करोड़ रुपए का अनुदान जारी किया गया है। जारी राशि में मप्र को सबसे अधिक 42 करोड़ 51 लाख 31 हजार रुपए मिले। इसके बाद भी बाघों के संरक्षण में मप्र पिछड़ा हुआ है। बाघों की सबसे ज्यादा मौत के मामले प्रदेश के टाइगर रिजर्व और रिजर्व के बाहर दर्ज ही रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछली गणना के मुताबिक मप्र में सबसे अधिक बाघ हैं। प्रदेश 785 बाघों के साथ टाइगर स्टेट है। इसको देखते हुए केंद्र सरकार प्रदेश में बाघों के संरक्षण को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसके बाद भी मप्र में ही बाघों की सबसे ज्यादा मौत हो रही है। पिछले तीन साल से यह स्थिति बनी हुई है। स्थिति यह हो गई है कि मौतों का आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है। हालांकि इसकी मुख्य वजह प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बाघों की बढ़ती संख्या बताई जा रही है।
टाइगर रिजर्व में बाधों की संख्या अधिक होने की वजह से उनके बीच आपसी संघर्ष बढ़ गया है। इससे मौतों के आंकड़े बढ़ रहे हैं। मप्र सबसे अधिक टाइगर रिजर्व वाला प्रदेश भी है। मप्र में इस समय 9 टाइगर रिजर्व हैं। पिछले दो साल में तीन नए टाइगर रिजर्व प्रदेश को मिल चुके हैं। इससे बाघों की संख्या में भी अब इजाफा होगा। अगली गणना में प्रदेश में 1000 बाथ होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
अब तक 35 बाघों की मौत
मप्र में बाघों की मौत के मामले में भी सबसे आगे चल रहा है। प्रदेश में इस साल अब तक 35 बाघों की मौत हो चुकी है। बाघ और मानव संघर्ष के मामले भी बढ़ रहे हैं। शिकारियों का नेटवर्क भी प्रदेश में मजबूत हो रहा है। हाल ही में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के पास एक बाघ का शिकार हुआ है। इसके अलावा बालाघाट वनक्षेत्र में भी बाध के शिकार का मामला पकड़ में आ चुका है। पिछले साल भी प्रदेश में बाघों की सबसे ज्यादा मौत हुई थी। पिछले साल बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की ज्यादा मौत हुई थी। इस साल कान्हा और पेंच टाइगर रिजर्व बाधी की मौत के नए हॉट स्पॉट बन गए है।
इसलिए मिलता है फंड
प्रोजेक्ट टाइगर के तहत मध्यप्रदेश को मिले 42. 51 करोड़ रुपए का उपयोग बाघों की सुरक्षा और उनके आवास क्षेत्र को मजबूत बनाने में किया जाता है। इससे कैमरा ट्रैप. ड्रोन, रेडियो कॉलर जैसी आधुनिक निगरानी तकनीक की खरीदी होती है। साथ ही फॉरेस्ट स्टाफ के प्रशिक्षण, वन ग्रामों के पुनर्वास, पर्यटन प्रबंधन और मानव-बाघ संघर्ष कम करने से जुड़ी गतिविधियों पर भी राशि खर्च की जाती है। इसका उद्देश्य न सिर्फ बाघों की संख्या और सुरक्षा बढ़ाना है, बल्कि वन्य पर्यटन और स्थानीय रोजगार को भी प्रोत्साहन देना है।