‘आदिवासियों’ पर कब्जे की जंग

  • सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस की नई चाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की राजनीति पर अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग (एससी, एसटी) के प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है।  इसलिए राजनीतिक पार्टियों का फोकस इस वर्ग को साधने पर रहता है। इसको देखते हुए कांग्रेस ने अभी से एससी, एसटी वर्ग को साधने की कोशिश शुरू कर दी है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी के लिए नई चाल चल दी है। कांग्रेस  ‘आदिवासियों’ पर अपना एक क्षत्र राज जमाना चाहती है। इसके लिए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा है कि मैं गर्व से कहता हूं कि हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं।
गौरतलब है कि मप्र में कांग्रेस और भाजपा के बीच सत्ता की जंग में आदिवासी समुदाय की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। यह समुदाय जिसके साथ चलता है, सत्ता उसी को मिलती है। पिछले दो दशक से आदिवासी समुदाय भाजपा के साथ है, अलबत्ता 2018 में कांग्रेस की ओर आदिवासी समाज का झुकाव होने से कमल नाथ को सरकार में आने का मौका जरूर मिल गया था। यही वजह है कि वर्ष 2028 के विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हो रही जनगणना को लेकर कांग्रेस सक्रिय हो गई है। कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय से अपील की है कि जनगणना में धर्म के कालम में वह स्वयं को हिंदू न बताएं। इधर, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इसे हिंदुओं का अपमान बताया है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के बयान गर्व से कहो हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं के बाद प्रदेश का सियासी माहौल गरमा गया है। भाजपा के आदिवासी नेताओं ने सिंघार के बयान को आदिवासी विरोधी बताया है। उन्होंने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के बयानों को आधार बनाकर कहा कि कांग्रेस की संस्कृति ही सनातन धर्म के विरोध की रही है। अब जनगणना के बहाने कांग्रेस हिंदू ही नहीं, बल्कि समाज का बंटवारा करना चाहती है। यह बयान हिंदू समाज के साथ ही आदिवासी समुदाय को भी कमजोर बनाने की साजिश है।
दोनों पार्टियों में शह- मात का खेल शुरू
आदिवासी वर्ग को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस में शह-मात का खेल शुरू हो गया है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को किसी एसटी आरक्षित सीट पर जीत नहीं मिली थी। उमंग सिंघार का बयान ऐसे समय पर आया है, जब सुप्रीम कोर्ट में लंबित ओबीसी आरक्षण के मामले में कांग्रेस ने सरकार का साथ देकर एक तरह से अपने हथियार डाल दिए हैं। उसने ओबीसी आरक्षण के मामले में सफलता और असफलता का अनुमान लगाए बिना यह कदम उठाकर बड़ा जोखिम लिया है। जनगणना में आदिवासी समुदाय को अलग से पहचान दिलाने की कांग्रेस की यह कोशिश भी नुकसान का कारण बन सकती है। कांग्रेस के पास आदिवासी समुदाय के बीच जाकर बताने के लिए फिलहाल कुछ खास नहीं है, वहीं द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति पद तक पहुंचाने का श्रेय भाजपा अपने खाते में रखती है। साथ ही पेसा एक्ट जैसी कवायद भी भाजपा सरकार कर चुकी है। देश के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के अनुषांगिक संगठन आदिवासी समुदायों के बीच मतांतरण रोकने के साथ उनके कल्याण के लिए कार्यक्रमों को लगातार जारी रखे हुए हैं। संघ की कोशिश है कि रामायण और महाभारत काल के तमाम उदाहरण के माध्यम से आदिवासियों को उनके ङ्क्षहदू होने का बोध कराते हुए मुख्य धारा में लाया जाए। इधर कांग्रेस के बयान इन कोशिशों के लिए चुनौती खड़ी करते हैं।

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