जांच के बाद ईओडब्ल्यू ने दर्ज की एफआईआर

एफआईआर
  • नियम विरुद्ध नियुक्तियों, नियमितीकरण के मामले में भोज विवि के पूर्व निदेशक पर केस

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मुक्त आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने भोज मुक्त विश्वविद्यालय के तत्कालीन निदेशक और अन्य अधिकारियों पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है। तत्कालीन निदेशक को महज एक दिन के लिए कुलसचिव का अस्थाई प्रभार मिला था। इसी दौरान उन्होंने 66 कर्मचारियों को स्थाई नियुक्ति दे दी।
इनमें कंप्यूटर ऑपरेटर, लिपिक, भृत्य वाहन चालक, तकनीकी स्टाफ, सहायक प्राध्यापक, स्टेनोग्राफर आदि शामिल हैं। ईओडब्ल्यू ने बताया कि सुधाकर सिंह राजपूत ने 25 फरवरी 2020 को आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ, भोपाल में लिखित शिकायत की थी। शिकायत में उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल के तत्कालीन निदेशक और प्रभारी कुलसचिव प्रवीण जैन ने शासन के निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं की अवहेलना की है। उन्होंने बड़ी संख्या में दैनिक वेतनभोगी और संविदा कर्मचारियों को अवैध रूप से नियमित कर दिया। यह नियुक्तियां बिना शासकीय स्वीकृति, बिना चयन प्रक्रिया और बिना पद सृजन के की गई हैं। इससे शासन को करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ। साथ ही यह भी आरोप था कि जैन ने विभागीय आदेशों को गलत तरीके से लागू कर कर्मचारियों को नियम विरूद्ध लाभ पहुंचाया है।
इन पदों पर कर डाली नियुक्तियां
ईओडब्ल्यू की जांच में यह तथ्य सामने आए कि वर्ष 2013-14 में भोज मुक्त विश्वविद्यालय में कुलसचिव की अनुपस्थिति में निदेशक प्रवीण जैन को 1 अक्टूबर 2013 और 27 नवंबर 2014 कुलसचिव का अस्थायी प्रभार दिया गया था। शासन के आदेशानुसार इस प्रकार का प्रभार निदेशक जैसे शैक्षणिक पदाधिकारी को देना न केवल अनुचित था, बल्कि स्पष्ट रूप से नियमों के खिलाफ था। बावजूद इसके प्रवीण जैन ने इस अल्पकालिक प्रभार का दुरुपयोग करते हुए कुल 66 कर्मचारियों की नियम विरूद्ध, नियुक्तियां की और नियमित कर दिया। इनमें कंप्यूटर ऑपरेटर लिपिक, मृत्यु वाहन चालक,  तकनीकी स्टाफ, सहायक प्राध्यापक, स्टेनोग्राफर आदि शामिल हैं।
भ्रामक आदेश जारी कर कीं अवैध नियुक्तियां
05 अक्टूबर 2013 को उच्च शिक्षा विभाग ने आदेश जारी कर सभी नियमितीकरण तत्काल निरस्त करने के निर्देश दिए थे, लेकिन जैन ने आदेश को स्थगित बताया और नियुक्तियां जारी रहीं। उन्होंने कुछ कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति योग्य पदों पर सीधी नियुक्ति दी और कई को गलत पद वर्ग में समायोजित किया। सरकार की अनुमति के बिना पदों का अवैध सृजन भी किया गया, जो विश्वविद्यालय अधिनियम का उल्लंघन है।

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