अभिनय से अधिक इंसानियत की पहचान थे पोतदार

  • जबलपुर में जन्मे और इंदौर में पले-बढ़े फिल्म अभिनेता अच्युत पोतदार का निधन

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनकी उपस्थिति किसी दीपक की लौ की तरह होती है- शांत, सौम्य, किन्तु जीवन भर अपने आसपास को प्रकाशमान करती रहती है। अच्युत पोतदार ऐसे ही व्यक्तित्व थे। 18 अगस्त को जब वे इस संसार से विदा हुए, तब भारतीय रंगमंच और सिनेमा ने केवल एक अभिनेता नहीं खोया, बल्कि एक संवेदनशील मन, एक उदार आत्मा और एक सच्चे कलानुरागी को खो दिया। जबलपुर में जन्मे और इंदौर में पले-बढ़े अच्युत जी ने जीवन के हर पड़ाव पर अनुशासन और सादगी को ही अपनी धरोहर बनाया। अर्थशास्त्र में स्वर्ण पदक लेकर पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सेना में कप्तान के पद पर सेवा दी। उसके बाद लगभग पच्चीस वर्षों तक इंडियन ऑयल के वरिष्ठ अधिकारी रहे, लेकिन यह सब उनके जीवन की बाहरी पहचान थी। उनके भीतर जो अभिनेता था, उसने चुपचाप अपना रास्ता चुना। चवालीस वर्ष की उम्र में जब अधिकांश लोग सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ने की तैयारी करते हैं, तब उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा और 125 से अधिक फिल्मों, 95 धारावाहिकों और दर्जनों नाटकों में अपनी गहरी छाप छोड़ दी।
लोकहित में समर्पित जीवन
सेवानिवृत्ति के बाद की अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उन्होंने सार्वजनिक कार्यों और संस्थाओं को दान कर दिया। शिक्षा और संस्कृति की अनगिनत संस्थाएं उनके सहयोग से आगे बढ़ीं। इंदौर के मार्तंड चौक में उनका साधारण-सा घर उनकी असाधारण सोच का साक्षी है। अच्युत पोतदार का जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि बड़ा कलाकार वही है, जो बड़ा इंसान भी हो। उन्होंने बिना शोर-शराबे के, बिना अभिमान के, कला और समाज दोनों की सेवा की। आज जब हम उन्हें याद करते हैं तो थ्री इडियट्स का किरदार, दबंग 2 और फेरारी की सवारी की झलकियाँ आँखों के सामने आती हैं। लेकिन असल श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी तरह कला और संस्कृति के प्रति संवेदनशील बने रहें और अपने जीवन में उपकार करने वालों का सम्मान करना सीखें। विदु विनोद चोपड़ा की फिल्मों के तो वे स्थायी हिस्सा रहे। थ्री इडियट्स में कहना क्या चाहते हो ? कहते हुए उनकी सरल मुस्कान ने उन्हें घर-घर पहुंचा दिया। लेकिन सच यह है कि उनकी लोकप्रियता का कारण केवल अभिनय नहीं था, बल्कि उनके व्यक्तित्व की सहजता और गहन संवेदनशीलता थी। वे जब भी इंदौर आते, मराठी नाटकों के दर्शक बनकर बैठ जाते थे।
कैसा रहा उनका फिल्मी सफर
22 अगस्त 1934 को जन्मे अच्युत पोतदार का जीवन किसी इंस्पिरेशन से कम नहीं है। भारतीय सेना और इंडियन ऑयल कंपनी में लगभग 25 वर्षों तक सेवाएं देने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। हालांकि उन्होंने करियर की शुरुआत थोड़ी देर से की, लेकिन उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें रंगमंच और सिनेमा दोनों में ही अलग पहचान दिलाई। उन्होंने सत्यदेव दुबे, विजया मेहता और सुलभा देशपांडे जैसे दिग्गज रंगकर्मियों के साथ नाटकों में काम किया और अपनी कला को निखारा।
125 से अधिक फिल्मों में किया काम
हिंदी और मराठी सिनेमा में अच्युत पोतदार ने लगभग 125 फिल्मों में अभिनय किया। वह अक्सर सपोर्टिंग रोल्स वाली भूमिकाओं में नजर आते थे और अपनी किरदार से दर्शकों का ध्यान अपनी और खींच लेते थे। 1980 और 90 के दशक की कई पॉपुलर फिल्मों जैसे ‘तेज़ाब’, ‘परिंदा’, ‘अंगार’, ‘राजू बन गया जेंटलमैन’, ‘रंगीला’ और ‘दिल है कि मानता नहीं’ में उनकी उपस्थिति दर्ज की गई।

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