- ओबीसी आरक्षण और पदोन्नति के लिए फैसले का दिन कल
- गौरव चौहान

कल यानी मंगलवार का दिन मप्र के लिए दो बड़े फैसले का दिन है। 12 अगस्त को जहां सुप्रीम कोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मामले में सुनवाई होनी है, वहीं हाईकोर्ट में मप्र के लाखों सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति के मामले में सुनाई होनी है। अब देखना यह है कि मंगलवार को किसका मंगल होता है। मप्र में ओबीसी आरक्षण का मामला राज्य की राजनीति में संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर पहले कई बार कोर्ट के आदेशों के बाद चुनावी प्रक्रियाएं प्रभावित हुई हैं।
गौरतलब है कि मप्र में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण और कर्मचारियों पदोन्नति का मामला वर्षों से अधर में लटका हुआ है। कभी हाईकोर्ट तो कभी सुप्रीमकोर्ट में दोनों मामले में सुनाई होती रही है। लेकिन हर बार कोई न कोई पेंच फंस जाता है। प्रदेश सरकार दोनों ही मामले में लाभ देने को तैयार है। कर्मचारियों की पदोन्नति को तो 9 साल बाद सरकार द्वारा हरी झंडी दे दी गई थी, लेकिन कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट चले गए जिससे मामला एक बार फिर फंस गया है। पदोन्नति मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ कर रही है। प्रदेश के पांच लाख से ज्यादा कर्मचारियों की नजर कोर्ट की सुनवाई पर रहेगी। बता दें कि प्रदेश में नौ साल से पदोन्नति पर रोक लगी होने के कारण इस अवधि में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी बगैर प्रमोशन मिले रिटायर्ड हो चुके हैं।
बेसब्री से कोर्ट में सुनवाई का इंतजार
दरअसल, मप्र के लिए कोर्ट में सुनवाई के लिहाज से 12 अगस्त का दिन महत्वपूर्ण है। इस दिन प्रदेश के बड़े वर्गों से जुड़े दो अहम मामलों की सुनवाई कोर्ट में होगी। एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई सुनवाई होगी, वहीं मप्र हाईकोर्ट में कर्मचारियों की पदोन्नति से जुड़ी याचिका पर सुनवाई होगी। इन दोनों ही मामलों में फैसलों का असर का असर प्रदेश की राजनीति पर पड़ेगा। यही वजह है कि अनारक्षित व अन्य पिछड़ा वर्ग के लाखों युवाओं और 5 लाख से ज्यादा कर्मचारियों के साथ ही सरकार की नजर इस दिन कोर्ट की सुनवाई पर रहेगी। दोनों याचिकाओं से जुड़े वर्ग बेसब्री से कोर्ट में सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं। वर्ष 2016 से सुप्रीम कोर्ट में मप्र के कर्मचारियों की पदोन्नति संबंधी याचिका विचाराधीन होने से प्रदेश में कर्मचारियों के प्रमोशन पर रोक लगी है।
कल आ सकता है अहम फैसला
पदोन्नति का रास्ता खोलने के लिए डॉ. मोहन यादव कैबिनेट ने 17 जून को मप्र लोक सेवा प्रमोशन नियम-2025 को मंजूरी दी थी। सरकार ने पदोन्नति के नए नियमों के संबंध में 19 जून को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने 26 जून को सभी विभागों को 31 जुलाई से पहले डीपीसी की पहली बैठक बुलाने के निर्देश दिए थे। सीएस के निर्देश पर सभी विभागों ने डीपीसी की बैठकें बुलाने की तैयारियां कर ली थीं। इस बीच पदोन्नति के नए नियमों के विरोध में कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट ने 7 जुलाई को कर्मचारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को अगली सुनवाई (15 जुलाई) में कर्मचारियों की पदोन्नति के पुराने नियम (वर्ष 2002) और नए नियम (वर्ष 2025) में अंतर संबंधी तुलनात्मक चार्ट पेश करने का आदेश दिया था। साथ ही अगली सुनवाई तक पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। तभी से सभी 54 विभागों में पदोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगी है। हाईकोर्ट में 15 जुलाई को सुनवाई टल गई थी। अब इस मामले में अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी। पदोन्नति प्रक्रिया शुरू होगी या पूर्व की तरह प्रमोशन पर रोक बरकरार रहेगी, यह हाईकोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा।
क्या ओबीसी को मिलेगी बड़ी सौगात
मंगलवार का दिन प्रदेश के ओबीसी वर्ग के लिए भी अहम है। मप्र में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का मामला 6 साल से कानूनी प्रक्रिया में उलझा है। तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने वर्ष 2019 में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी एक्ट को मंजूरी दी थी, जिसे अनारक्षित वर्ग की ओर से मप्र हाईकोर्ट में चैलेंज किया गया था। मप्र हाईकोर्ट ने 4 मई, 2022 को शिवम गुप्ता बनाम राज्य सरकार केस में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत तक सीमित रखने का अंतरिम आदेश दिया था। इसके साथ ही राज्य सरकार के संशोधित एक्ट और रूल्स पर रोक लगा दी गई थी। प्रदेश में ओबीसी को 13 प्रतिशत आरक्षण पर रोक को चुनौती देने संबंधी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इस मामले में गत 4 अगस्त को हुई सुनवाई में मप्र सरकार ने आरक्षण पर लगी अंतरिम रोक को हटाने की मांग की थी। सरकार की तरफ से कहा गया था कि जैसे छत्तीसगढ़ में 58 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है, वैसे ही मप्र को भी राहत दी जाए, ताकि भर्ती प्रक्रिया पूरी हो सके। ओबीसी पक्षकार ने भी एक्ट को लागू करने की मांग की, जबकि अनारक्षित पक्ष ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि मप्र और छत्तीसगढ़ के मामलों में अंतर है, क्योंकि मप्र में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया, जबकि छत्तीसगढ़ में एसटी आबादी अधिक होने के कारण वहां का आरक्षण पहले जैसा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बिना आदेश दिए अगली सुनवाई 12 अगस्त को तय कर दी थी। अब सवाल उठ रहा है कि क्या मंगलवार को ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण की सौगात मिल पाएगी?