उत्सव नहीं, जीवन का सम्बल है दोस्ती

  • प्रवीण कक्कड़
फ्रेंडशिप डे

जब अगस्त का पहला रविवार करीब आता है, तो माहौल में एक अलग-सी खुशी घुलने लगती है। सोशल मीडिया पर बधाइयों की बाढ़ आ जाती है, बाजार रंगीन फ्रेंडशिप बैंड्स से भर जाते हैं और युवाओं के दिलों में दोस्तों के साथ जश्न मनाने की उमंग जाग उठती है। यही तो है फ्रेंडशिप डे का उत्सव। लेकिन इस शोरगुल और चकाचौंध के बीच क्या हमने कभी रुककर सोचा है – क्या दोस्ती सिर्फ इन बाहरी उत्सवों तक सीमित है? क्या दोस्ती का मतलब केवल साथ घूमना, फिल्में देखना, पार्टी करना और इंस्टाग्राम पर तस्वीरें साझा करना है? बिलकुल नहीं। दोस्ती का रिश्ता इन सबसे कहीं ज्यादा गहरा, पवित्र और सार्थक है। दोस्ती का सच्चा स्वरूप मनोरंजन से बढक़र एक संबल है। आज की युवा पीढ़ी के लिए दोस्ती अक्सर साथ वक्त बिताने का एक जरिया बनकर रह गई है। वे साथ पढ़ते हैं, खेलते हैं, घूमते हैं और इसे ही दोस्ती का नाम देते हैं। लेकिन यह दोस्ती का केवल बाहरी आवरण है, उसकी आत्मा नहीं। दोस्ती की असली पहचान तब होती है, जब जिंदगी की धूप कड़ी हो और हालात मुश्किल।
सच्चा दोस्त वह नहीं जो आपकी हर हां में हां मिलाए, बल्कि वह है जो आपके गलत होने पर आपको आईना दिखाए। वह आपकी गलती पर पर्दा नहीं डालता, बल्कि उस गलती का एहसास कराकर आपको सही राह पर लाने की हिम्मत रखता है। वह आपकी सफलता पर जलता नहीं, बल्कि आपकी कामयाबी को अपनी कामयाबी मानकर खुश होता है। जब आप टूटकर बिखर रहे हों, तो वह आपका हाथ थामकर कहता है, मैं हूँ न! – यह तीन शब्द दुनिया की किसी भी दौलत से बढक़र होते हैं। यही वह संबल है, जो दोस्ती की नींव को मज़बूत करता है।
एक कहानी जो दोस्ती को परिभाषित करती है: दोस्ती की सबसे बड़ी मिसाल हमें भगवान कृष्ण और सुदामा के रिश्ते में देखने को मिलती है। सुदामा गरीबी में जी रहे थे और कृष्ण द्वारका के राजा थे। जब सुदामा अपने मित्र से मिलने गए, तो उनके मन में संकोच था। उनके पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ मु_ी भर चावल थे। लेकिन कृष्ण ने न केवल उन चावलों को दुनिया के सबसे बड़े तोहफे की तरह स्वीकार किया, बल्कि बिना बताए ही सुदामा की हर मुश्किल को दूर कर दिया। उन्होंने सुदामा की गरीबी नहीं, उनके मन का प्रेम देखा। यही सच्ची दोस्ती है – जो पद, प्रतिष्ठा और हालात से परे, केवल दिल के रिश्ते को समझती है।
आज के दौर में दोस्ती की जरूरत: आज के इस डिजिटल युग में, जहाँ हमारे हजारों ऑनलाइन फ्रेंड्स हैं, हम असल जिंदगी में उतने ही अकेले होते जा रहे हैं। दिखावे की इस दुनिया में एक ऐसा कंधा मिलना मुश्किल है, जिस पर सिर रखकर आप अपने मन की हर बात कह सकें, बिना इस डर के कि आपको जज किया जाएगा। एक सच्चा दोस्त आपकी बातों को ही नहीं, आपकी खामोशी को भी समझता है। वह आपके अनुभवों से सीखता है और आपको एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है। वह आपका मार्गदर्शक है, आपका आलोचक है और आपका सबसे बड़ा समर्थक भी। अगर आपका दोस्त आपको किसी बुरी लत से दूर रहने या अपने करियर पर ध्यान देने के लिए टोकता है, तो वह आपका दुश्मन नहीं, बल्कि सबसे बड़ा हितैषी है।
फ्रेंडशिप डे: कुछ रोचक तथ्य और वर्तमान परिदृश्य
फ्रेंडशिप डे की शुरुआत कब हुई?: आधिकारिक तौर पर फ्रेंडशिप डे का विचार पहली बार 1958 में पैराग्वे में वल्र्ड फ्रेंडशिप क्रूसेड द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इसके बाद 2011 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने 30 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाने की घोषणा की।
भारत में अगस्त के पहले रविवार को क्यों मनाया जाता है?: संयुक्त राष्ट्र की घोषणा से पहले ही, कई देशों में फ्रेंडशिप डे मनाने की परंपरा शुरू हो चुकी थी। इसकी शुरुआत 1930 में हॉलमार्क काड्र्स के संस्थापक, जॉयस हॉल द्वारा की गई थी, जिन्होंने 2 अगस्त को दोस्तों के लिए एक दिन के रूप में प्रचारित किया था। हालांकि यह अमेरिका में सफल नहीं हुआ, लेकिन भारत, बांग्लादेश, मलेशिया और यूएई जैसे कई एशियाई देशों ने अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाने की परंपरा को अपना लिया और यह आज भी जारी है।
इसका स्वरूप कैसे बदलता गया?: शुरुआत में लोग एक-दूसरे को ग्रीटिंग काड्र्स भेजकर फ्रेंडशिप डे मनाते थे। समय के साथ, इसका स्वरूप बदला और हाथों में फ्रेंडशिप बैंड बांधने का चलन शुरू हुआ, जो दोस्ती के अटूट बंधन का प्रतीक बन गया। आज डिजिटल युग में, यह मुख्य रूप से सोशल मीडिया पोस्ट, स्टेटस अपडेट्स, पार्टियों और गेट-टुगेदर के जरिए मनाया जाता है।
फ्रेंडशिप बैंड का क्या महत्व है?: फ्रेंडशिप बैंड सिर्फ एक धागा या बैंड नहीं है, यह एक वादा है, एक प्रतीक है। इसे दोस्त की कलाई पर बांधना यह दर्शाता है कि आप इस रिश्ते की कद्र करते हैं और हमेशा उसके साथ खड़े रहेंगे। यह दोस्ती के सम्मान और स्नेह का एक सुंदर और सरल इजंहार है।
मौजूदा भारतीय परिदृश्य में फ्रेंडशिप डे: भारत में फ्रेंडशिप डे, विशेष रूप से युवाओं और स्कूली बच्चों के बीच, बेहद लोकप्रिय है। यह एक बड़े व्यावसायिक अवसर में भी बदल गया है। बाजारों में तरह-तरह के गिफ्ट्स, काड्र्स और बैंड्स की भरमार होती है। कैफे और रेस्टोरेंट्स में विशेष ऑफर्स दिए जाते हैं। जहां एक ओर यह दिन दोस्तों के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक सुंदर अवसर प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर इसका बहुत अधिक व्यावसायीकरण और डिजिटलीकरण भी हो गया है, जिससे कभी-कभी इसका गहरा और वास्तविक अर्थ पीछे छूट जाता है।
दोस्ती कोई त्यौहार नहीं, एक अनुभूति है, जो बिना कहे समझती है, बिना मांगे देती है, और बिना शोर किए जीवन को सहारा देती है। इस फ्रेंडशिप डे पर एक दिन की पोस्ट नहीं, जीवन भर की मौजूदगी का वादा कीजिए। तो इस फ्रेंडशिप डे, एक बैंड बांधने या पार्टी करने से आगे बढ़ें। अपने उस दोस्त को धन्यवाद कहें, जो आपके लिए हर मुश्किल घड़ी में खड़ा रहा। उससे मिलें, बातें करें और उसे बताएं कि वह आपकी जिंदगी में कितना मायने रखता है। दोस्ती को एक दिन के जश्न में न बांधें, इसे जीवन की सबसे बड़ी ताकत बनाएं। क्योंकि सच्ची दोस्ती एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन भर का सबसे अनमोल और अटूट विश्वास है।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

Related Articles