बीओटी मॉडल की सडक़ों से… निवेशक मालामाल

बीओटी मॉडल
  • सडक़ों की लागत के विरुद्ध 6522 करोड़ हो चुकी है उगाही

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में बोओटी (निर्माण परिचालन हस्तांतरण) मॉडल पर बनी सडक़ें निवेशकों को मालामाल कर रही हैं। लागत से कई गुना अधिक वूसली के बाद भी निवेशकों डाई से तीन दशकों तक टोल वसूली करने की छूट रहेगी। बीओटी मॉडल पर बनाई गई कुछ सडक़ों से 550 फीसदी तक की वसूली हो चुकी है। फिर भी ये टोल 2033 से लेकर 2038 तक चलते रहेंगे। कुछ सडक़ों से 2042 तक टोल वसूली होती रहेगी। भोपाल-देवास 141 किमी के चार लेन मार्ग पर ही 2009-10 से 30 जून 2025 तक 345 करोड़ की लागत के विरुद्ध 1889 करोड़ की टोल वसूली हो चुकी है। जो लागत का 500 फीसदी है।
तीन प्रमुख चारलेन मार्ग देवास-भोपाल, लेबड़-जावरा तथा जावरा-नयागांव की 1360 करोड़ की लागत के एवज में 30 जून 2025 तक 6522 करोड रुपए का टोल बूसली जा चुका है। विधानसभा में यह जानकारी लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने विधायक प्रताप ग्रेवाल और पंकज उपाध्याय के लिखित सवाल के जवाब में दी। मंत्री द्वारा विधानसभा में दिए गए उत्तर के अनुसार लेबड़-जावरा तथा जावरा-नयागांव सडक़ मार्ग पर टोल रोड़ पर लागत से कई गुना अधिक टोल वसूली होने पर टोल बंद करने के लिए पूर्व विधायक पारस सकलेचा की सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लंबित है। विधायकों ने अपने सवाल में पूछा कि न्यायालय में शासन याचिका का विरोध कर जनता के हित के स्थान पर कंसेशनर (निवेशक) के हित का संरक्षण क्यों कर रहा है? जिस पर मंत्री ने अनुबंध के नियमों का पालन कर न्यायालय में शासन का पक्ष रखा जा रहा है।
ऐसे होती है सडक़ों से कमाई
लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक देवास- भोपाल रोड पर वर्ष 2021-22 में कलेक्शन 151 करोड़ हुआ जो कि 2024-25 में बढक़र 253 करोड़ हो गया। 22 फीसदी तक वृद्धि हुई। इस अवधि में वाहन की संख्रा वर्ष 2021-22 में 35,740,77 से बढक़र वर्ष 2024-25 में 52,16,208 हो गई। 3 साल में वाहन की संख्या में 50 फीसदी तथा कलेक्शन में 70 फीसदी की वृद्धि हुई। वर्ष 2010-11 में वाहन की संख्या 26,83,488 तथा कलेक्शन 55 करोड़ था। 2010 11 की तुलना में 2024-25 में कलेक्शन 5 गुना हो गया।
क्या होता है बीओटी मॉडल
बीओटी (निर्माण-परिचालन-हस्तांतरित) मॉडल के तहत एक निजी कंपनी सडक़ का निर्माण करती है। फिर संचालन के जरिप लागत निकाली है। फिर सरकार को हस्तांतरित करेगी। यह एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी पीपीपी) मॉडल है, जिसमें निजी कंपनी परियोजना के वित्तपोषण, निर्माण, संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी लेती है।

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