- भोपाल, जबलपुर और कटनी में बेची थी जमीनें
- गौरव चौहान

सहारा जमीन घोटाले में आशुतोष (मनु) दीक्षित, दीपेंद्र सिंह ठाकुर और हिमांशु पवैया की तीन अलग-अलग शिकायतों के बाद ईओडब्ल्यू जांच के बाद एफआईआर दर्ज कर ली है। 1000 करोड़ रुपए की जमीन को मात्र 98 करोड़ रुपए में बेच दिया गया था। जमीन बेचने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी पालन नहीं किया गया। भोपाल, जबलपुर और कटनी में सहारा की जमीन को बेचा गया था। ईओडब्ल्यू ने यह बताया कि सहारा की ओर से जमीनों को बेचकर कुल 72.82 करोड़ रुपए का गबन किया है। जबलपुर और कटनी की भूमि बिक्री के निर्णयों में कॉर्पोरेट कंट्रोल मैनेजमेंट प्रमुख सीमांतो रॉय सीधे तौर पर शामिल पाए गए। डीएमडब्ल्यू भोपाल के डीजीएम जेबी रॉय की भूमि सौदे के वित्तीय लेन-देन और निर्णयों में सक्रिय भूमिका थी। सागर भूमि सौदे के निर्णयों में सहारा के लैंड डिवीजन के प्रमुख होने के नाते डिप्टी मैनेजिंग वर्कर ओपी श्रीवास्तव शामिल पाए गए। आरोपियों ने भोपाल और सागर में बिक्री की पूरी राशि 62.52 करोड़ को सेबी सहारा खाते में जमा नहीं किया गया। वहीं जबलपुर, कटनी और ग्वालियर में अवैध कटौतियों के माध्यम से 10.29 करोड़ की हेराफेरी की गई।
जमीन खरीदने वाले छोटे-छोटे निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप में मध्य प्रदेश आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने सहारा समूह के कारपोरेट कंट्रोल मैनेजमेंट (सीसीएम) प्रमुख सीमांतो राय व अन्य के विरुद्ध एफआइआर दर्ज की है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, समूह की जमीनें बेंचकर राशि सेबी-सहारा रिफंड अकाउंट के खाते में जमा कराई जानी थी, जिससे निवेशकों को लौटाई जा सके। इसकी अनदेखी कर जमीन बेचने के लिए अधिकृत कंपनियों और अधिकारियों ने साजिश कर इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और कटनी में 310 एकड़ जमीन मात्र 72 करोड़ 82 लाख रुपये बेंचकर राशि सेबी की जगह शैल कंपनियों में जमा कराई। भोपाल, जबलपुर और कटनी में कुछ जमीन भाजपा विधायक संजय पाठक के स्वजन की भागीदारी वाली कंपनियों ने भी खरीदी है। इसमें वित्तीय अनियमितता, न्यायालय के आदेशों की अवहेलना और निवेशकों की राशि के दुरुपयोग के आरोप हैं। मामले में जनवरी 2025 में प्राथमिक जांच पंजीबद्ध कर 15 से अधिक लोगों के बयान लिए जा चुके हैं। इसके बाद अब मेसर्स सहारा इंडिया, श्रीसहारा प्राइम सिटी लिमिटेड कंपनी, सीमांतो ग्रर्थ, जेबी राय और ओपी श्रीवास्तव के विरुद्ध प्रकरण कायम किया गया है। जांच में सामने आया है कि सहारा समूह के बड़े अधिकारियों ने मिलकर साजिश कर करीब 72.82 करोड़ की हेराफेरी की।
निवेशकों को पैसा नहीं लौटाया
सहारा की जमीन को बेचने के बाद भी सहारा में निवेश करने वालों को पैसा नहीं मिला था। ईओडब्ल्यू ने इन कंपनियों द्वारा सहारा ग्रुप की जमीन खरीदने की पीई दर्ज कर की थी और इसी साल फरवरी महीने में जांच शुरू की थी। मामले में ईओडब्ल्यू ने क्रेता पक्ष और विक्रेता पक्ष के 9 लोगों से पूछताछ के बाद एफआईआर दर्ज की है। सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग कॉर्पोरेशन इन्वेस्टमेंट ग्रुप द्वारा कई शहरों में निवेशकों से धन जुटाकर सहारा सिटी बनाने के उद्देश्य से जमीनें खरीदी गई थीं। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट और सेबी द्वारा सहारा समूह को निवेशकों की राशि लौटाने के लिए कम्पनी की प्रॉपर्टी बेचने की अनुमति दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जमीन के सौदे की सीमा अधिकतम 90 प्रतिशत या उससे ज्यादा तक तय की गई थी। प्रॉपर्टी बेचने की अनुमति इस शर्त पर दी गई थी कि, पैसे खरीदार द्वारा सीधे मुंबई में बैंक ऑफ इंडिया के सेबी-सहारा रिफंड खाता नंबर 012210110003740 में जमा किए जाएंगे। ईओडब्ल्यू के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार भोपाल स्थित जमीन बेचकर सेबी-सहारा रिफंड खाते में रुपए जमा कराने के नियम का भी उल्लंघन किया गया है। सहारा ग्रुप ने ये रुपए सहारा इंडिया रियल एस्टेट लिमिटेड, सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कार्पोरेशन और निजी शैल कम्पनियों के खातों में जमा कराए।
इस तरह की गई गड़बडिय़ां
सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत एक मूल्यांकन रिपोर्ट में मक्शी गांव की 110 एकड़ भोपाल चर्ष 2014 में सहारा समूह द्वारा जमीन का अनुमानित मूल्य 125 करोड़ रुपये बताया गया। इस भूमि को मात्र 47.73 करोड़ में बेचा गया। यह राशि सेबी-सहारा के खाते की जगह समूह ने अपनी ही एक सोसाइटी हमारा इंडिया क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड के खातों में ट्रांसफर की। सागर में लगभग 99.76 एकड़ भूमि 14.79 करोड़ रुपये में बेची गई, सेबी सहारा के खाते में एक रुपये भी जमा नहीं कराया।राशि को सहारा की सहायक कंपनियों और फिर हमारा इंडिया और सहारा क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी के खातों में रखकर उपयोग किया गया। एक बिक्री विलेख 1.61 करोड़ रुपये का चेक बाउंस होने के बावजूद भुगतान मिलना बताकर रजिस्ट्री करा दी गई। वास्तविक भुगतान लगभग दो साल बाद किया गया। जबलपुर और कटनी भूमि बिक्री से प्राप्त राशि में से भूमि विकास व्यय, कस्टमर लायबिलिटी, और विवित्र शासकीय कर के तहत कुल 9.06 करोड़ रुपये से अधिक की राशि अवैध रूप से काटी गई। ग्वालियर भूमि बेचने में अन्य कटौती के नाम पर 1.22 करोड़ रुपये की राशि अवैध रूप से काटी गई। विक्रय के लिए अधिकृत प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी फर्जी तरीके से की गई थी। जिनके नाम से विक्रय विलेखों पर हस्ताक्षर कर संपत्तियां बेची गईं वे प्रतिनिधि वास्तविक में सहारा समूह के कर्मचारी ही थे। इनकी नियुक्ति केवल दिखावे के लिए की गई थी।